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बीकानेर,जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाएं बढ़ने के साथ-साथ सामान्य मौसम स्वरूपों में भी बदलाव आ रहे हैं. आज से 50 साल पहले जैसी बारिश होती थी और जैसे तापमान में विविधताएं आती थीं अब वैसा देखने को नहीं मिलता.आपने देखा होगा कि वैज्ञानिक समय से पहले ही इस बात का अनुमान लगाकर बता देते हैं कि इस साल कितनी बारिश होने वाली है. लेकिन क्या यह जानने की कोशिश की है कि ये अंदाजा आखिर लगाया कैसे जाता है? कैसे पता चलता है कि इस साल शानदार बारिश होगी या सूखा पड़ेगा. आइए जानते हैं…

भारत का मानसून और प्रशांत महासागर

प्रशांत महासागर भारत की जलवायु को प्रभावित करता है. भारत का मानसून मुख्य रूप से प्रशांत महासागर की जलवायु पर आधारित है. इसलिए प्रशांत महासागर के मौसम में बदलाव भारत को सीधे तौर पर प्रभावित करता है. प्रशांत महासागर में होने वाले अल नीनो और ला नीना दो विपरीत प्रभाव हैं. इनको कहते हैं.

दरअसल, भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के पश्चिमी और पूर्वी बेसिन में समुद्री हवाएं के तापमान के पैटर्न पर ध्यान रखते हुए वैज्ञानिक मानसून का पता लगाते हैं. ये दोनों स्थितियां अपने हिसाब से मानसून को प्रभावित करती हैं. इनका पूरी दुनिया के मौसम, जंगल की आग, पारिस्थितिकी तंत्रों और यहां तक कि अर्थव्यवस्थाओं पर भी सीधा असर पड़ता है.

कब होती है अच्छी बारिश?

भारत में ‘ला नीना’ को अच्छी बारिश के लिए जिम्मेदार माना जाता है. पूर्वी प्रशांत महासागर क्षेत्र की सतह पर हवा का दबाव निम्न होने पर यह स्थिति पैदा होती है. इससे समुद्र की सतह का तापमान कम हो जाता है और इस पर चक्रवात का असर होता है और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की दिशा बदलती है. ला नीना की स्थिति बनने पर भारत में अच्छी बारिश होती है.

कब होती है कम बारिश?

प्रशांत महासागर में की सतह गर्म होने पर एल-नीनो की स्थिति बनती है. इससे हवाओं की दिशा बदलती है और मौसम बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है. कहीं बाढ़ आ जाती है तो कहीं सूखा पड़ जाता है. एन-नीनो की स्थिति बनने पर भारत में सूखा पड़ता है.

सामान्यतः ये दोनों स्थितियां नौ से 12 महीने तक या कभी-कभी सालों तक प्रभावी रहती हैं. इनके आने का कोई नियमित क्रम भी नहीं होता है और ये हर दो से सात साल के बीच आती हैं. वैज्ञानिकों इनकी स्थिति के आधार पर ही बताते हैं कि इस साल बारिश ज्यादा होगी या कम.

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