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बीकानेर,कांग्रेस नेता सचिन पायलट (Sachin Pilot) चुनावी साल में नई ऊर्जा और नई रणनीति के साथ एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं. वो सोमवार से किसान सम्मेलनों की शुरुआत कर रहे हैं.पहला किसान सम्मेलन 16 जनवरी को नागौर में आयोजित किया जाएगा. पांचवां और अंतिम 20 जनवरी को जयपुर में आयोजित होगा.नागौर के अलावा सचिन पायलट का किसान सम्मेलन 17 जनवरी को हनुमानगढ़, 18 जनवरी को झूंझुनू, 19 जनवरी को पाली और 20 जनवरी को राजधानी जयपुर में आयोजित किया जाएगा.सचिन ने कहा है कि इस दौरान वो लोगों और पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलेंगे और उनके बीच रहेंगे.

राजस्थान के जाटलैंड में कांग्रेस

राजस्थान में करीब 10 महीने बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं.ऐसे में पायलट की सक्रियता को काफी अहम माना जा रहा है.पायलट जिन इलाकों में किसान सम्मेलनों को संबोधित करेंगे,वो जाट बहुल इलाके हैं.दरअसल 2003 और 2013 के विधानसभा चुनाव में इन इलाकों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था.लेकिन 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने अपने इस गढ़ को फिर से हासिल कर लिया था.शेखावटी का इलाका भी जाट बहुल माना जाता है.इसके सीकर जिले में विधानसभा की कुल आठ सीटें हैं.साल 2018 के चुनाव में इनमें से सात पर कांग्रेस और एक सीट निर्दलीय ने जीत दर्ज की थी. सीकर में 2018 में बीजेपी का खाता तक नहीं खुला था.वहीं झुंझुनूं जिले की सभी सात सीटें कांग्रेस ने जीत ली थी.वहीं सचिन की बगावत के बाद कांग्रेस ने गोविंद सिंह डोटासरा को अध्यक्ष बनाया था.कांग्रेस के इस कदम को जाट समुदाय को साधने के तौर पर देखा गया था. प्रदेश की करीब 60 सीटें जाट बहुल मानी जाती हैं.पिछले चुनाव में जाट समाज के 31 उम्मीदवार जीते थे.इसलिए सचिन पायलट ने बहुत सोच-समझकर किसान सम्मेलन के लिए झूंझनू, नागौर, हनुमानगढ़, पाली और जयपुर का चुनाव किया है.

राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस

राजस्थान में जिस तरह से पारी-पारी से कांग्रेस-बीजेपी की सरकार बनने की परंपरा है, उसे देखते हुए सचिन सक्रिय हुए हैं. वो प्रदेश के जाट बहुल इलाके में पार्टी की ताकत और पकड़ को बचाए रखना चाहते हैं. हालांकि बीजेपी ने अभी यह नहीं कहा है कि वह किसके चेहरे पर चुनाव में जाएगी. लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे प्रमुख दावेदार हैं. वो प्रदेश की चार प्रमुख जातियों में से तीन से अपने संबंध गिनाती रहती हैं. वो राजपूत की बेटी हैं तो जाट की बहू हैं और गुर्जर की समधन हैं. राजस्थान की राजनीति में राजपूत, गुर्जर, जाट और मीणा अहम रोल निभाते हैं. इसलिए प्रदेश की सत्ता की चाहत रखने वाला हर दल इन जातियों को अपने-अपने तरह से साधने की कोशिश करता है.सचिन पायलट की राजनीति

सचिन पायलट इन सम्मेलनों को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से अपनी अदावत के बीच ताकत दिखाने के अवसर के रूप में नहीं बल्कि पार्टी को मजबूत करने के अवसर के रूप में पेश करना चाहते हैं.सूत्रों का कहना है कि इसकी इजाजत उन्होंने ‘भारत जोड़ो यात्रा के दौरान’ राहुल गांधी से ले ली थी. अशोक गहलोत के गद्दार वाले बयान के बाद भी सचिन पायलट ने बहुत आक्रमकता नहीं दिखाई थी. उन्हें हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव का जिम्मा दिया गया था. वहां पार्टी ने जीतकर अपनी सरकार बना ली है. वहीं अशोक गहलोत के पास गुजरात का प्रभार था, जहां कांग्रेस को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा है. इन बदली हुई परिस्थितियों में सचिन पायलट इन जनसंपर्क अभियानों से अपनी ताकत और प्रभाव को बढ़ाना चाहते हैं. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में काफी मेहनत करने के बाद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी अशोक गहलोत के पास चली गई थी. इसे देखते हुए सचिन पायलट अपनी जमीनी तैयारी को पुख्ता कर लेना चाहते हैं.

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