बीकानेर,खारड़ा,हरिराम जी मंदिर में चल रही नो दिवसीय रामकथा मे हरिदास जी महाराज ऋषिकेश ने रामकथा मे अपनी वाणी से भक्तों को निहाल किया। उन्होंने कहा कि गृहस्थ को नर्क मत बनाएं गृहस्थी का काम राष्ट्रीय को मजबूत करना है।
गुरुदेव जो वचन दे उसका पालन अवश्य करें आज के प्रसंग में जब राम के राजतिलक की तैयारियां की जा रही थी तभी महारानी कैकई ने महाराजा दशरथ से अपने दो वचन मांगती है और कहती है कि पहले हराम की सौगंध खाएं और मेरे वचन मुझे दे। राजा दशरथ खुशी में रानी से कहता है कि जो मांगे मैं वहीं दूंगा, तब महारानी कैकई दशरथ से मांगती है कि मेरे बेटे भरत को राजगद्दी मिले और राम को 14 वर्ष का वनवास मिले इतना सुनते ही महाराजा दशरथ धरती पर गिर जाते हैं राम सहित सब यहां पहुंचते हैं, राम जी जब वनवास को जाने लगते हैं तो उनके साथ सीता व लक्षमण भी तैयार हो जाते हैं। श्रीराम के वन की जाने की बात सुनकर पूरा अवधपुरी रो पड़ा। माता कौशल्या अवधपुरी के नारी जहां तक की पशु पक्षी और वहां की वनस्पति भी मुरझा जाती है। राम का इतना प्रेम अब तो अवधपूरी के प्रति था कि राम का राज्य होना था लेकिन माता और पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए राम 14 वर्ष के लिए वनवास को निकल पड़े,
माता सीता व लक्ष्मण के साथ वन को चल दिए। रास्ते में श्री राम गंगा तट पर पहुंचते हैं, जहां केवट से गंगा पार कराने की आग्रह करते हैं। केवट ने अपनी नाव पर चढ़ाने के लिए प्रभु श्रीराम को इंकार कर दिया, उसे मालूम था कि पत्थर बनी अहिल्या श्री राम के चरणों के स्पर्श से पुन: नारी बन गई, प्रभु श्रीराम केवट के भाव को समझ जाते हैं और अपना पैर उससे धोने का कहते हैं।