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बीकानेर,राजस्थानी के प्रसिद्ध साहित्यकार नरोत्तम दास स्वामी की 117वीं जयंती के अवसर पर सोमवार को सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट और सूचना एवं जनसंपर्क कार्यालय के संयुक्त तत्वावधान् में सूचना केन्द्र सभागार में विचार गोष्ठी आयोजित हुई।
गोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शंकर लाल स्वामी थे। उन्होंने कहा कि राजस्थानी व्याकरण और इतिहास लेखन के क्षेत्र में नरोत्तम स्वामी के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। उन्होंने देश की आजादी से पूर्व के सीमित संसाधनों के दौर में राजस्थानी साहित्य लेखन को नए आयाम दिए। उन्होंने कहा कि युवा साहित्यकारों को इनके कृतित्व से सीख लेनी चाहिए।
अध्यक्षता करते हुए राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के कोषाध्यक्ष और कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि नरोत्तम स्वामी ने अनेक राजस्थानी पत्रिकाओं का संपादन किया। उन्होंने अपना जीवन राजस्थानी साहित्य की सेवा को समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा कि सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा ऐसे साहित्यकारों की स्मृति में साहित्यिक गतिविधियों का सतत आयोजन किया जाएगा।
विशिष्ठ अतिथि के रूप में बोलते हुए डॉ. अजय जोशी ने कहा कि नरोत्तम स्वामी ने शोध परम्परा को विशेष पहचान दिलाई। उन्हें राजस्थानी साहित्य का ‘पाणिनी’ कहा जाता है। उन्होंने कहा कि आज के दौर में उनके रचना कर्म की प्रासंगिकता में वृद्धि हुई है।
मुख्य वक्ता के रूप में पत्रवाचन करते हुए डॉ. गौरी शंकर प्रजापत ने नरोत्तम स्वामी के रचना संसार के संबंध में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि नरोत्तम स्वामी ने सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट की मासिक पत्रिका ‘राजस्थान भारती’ का संपादन भी किया।
इससे पहले अतिथियों ने उनके चित्र के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित की। राजाराम स्वर्णकार ने स्वागत उद्बोधन दिया। एडवोकेट महेन्द्र जैन ने आभार जताया। कार्यक्रम का संचालन नवरत्न जोशी ने किया। इस दौरान वरिष्ठ गीतकार-रचनाकार निर्मल कुमार शर्मा, राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के पूर्व सचिव पृथ्वीराज रतनू, कृष्ण कुमार बिश्नोई, नृसिंह बिन्नाणी, कमलकिशोर पारीक ने भी विचार रखे। संगोष्ठी में कवि-संस्कृतिकर्मी चन्द्रशेखर जोशी ,सखा संगम के अध्यक्ष एन. डी.रंगा , इतिहासकार डाॅ.मोहम्मद फारुख चौहान, विक्रम स्वामी आदि मौजूद रहे।

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