बीकानेर,नवजात शिशुओं को संक्रमण से बचाने के लिए तत्काल और एंटीबायोटिक विकसित करने की जरूरत है, क्योंकि ये सबसे ज्यादा एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रति संवेदनशील होते हैं। नवजात शिशुओं में संक्रमण से बचाव की मांग उठाते हुए दुनियाभर के स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले में दुनिया के सभी प्रमुख देशों को साथ में रहकर काम करना चाहिए।
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपने बुलेटिन में जानकारी दी थी कि दुनिया में हर साल लगभग 23 लाख नवजात शिशु गंभीर जीवाणु संक्रमण की चपेट में आने से मौत के शिकार हो रहे हैं। पिछले एक दशक में, रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) उस बिंदु तक बिगड़ा है जहां लगभग 50-70% सामान्य रोगजनकों की उपलब्धता ने एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम किया है।
डब्ल्यूएचओ ने जिस अध्ययन का हवाला देते हुए यह बात कही है, वह ग्लोबल एंटीबायोटिक रिसर्च एंड डेवलपमेंट पार्टनरशिप और नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के विशेषज्ञों ने तैयार किया है। इन शोधार्थियों का मानना है कि चिकित्सा अनुसंधान में पर्याप्त प्रगति और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या में भारी गिरावट के बावजूद बाल स्वास्थ्य से संबंधित कई समस्याओं का समाधान किया जाना बाकी है जिनमें गंभीर जीवाणु संक्रमण शामिल है।
दवाओं तक पहुंच बढ़ानी होगी
सेंट जॉर्ज, लंदन विश्वविद्यालय (एसजीयूएल) के माइक शारलैंड ने कहा, यह समझने के लिए उच्च प्राथमिकता वाले एंटीबायोटिक दवाओं की पहचान करने की तत्काल आवश्यकता है कि कौन से बच्चों में सबसे अच्छा और सुरक्षित असर हो रहा है। फिर उन्हें उपलब्ध कराएं। वहीं, ग्लोबल एंटीबायोटिक रिसर्च एंड डेवलपमेंट पार्टनरशिप की कार्यकारी निदेशक मनिका बालसेगरम ने कहा, वैश्विक सहमति प्राप्त करके, हम एंटीबायोटिक विकास की प्रक्रिया को व्यवस्थित कर सकते हैं। साथ ही एंटीबायोटिक दवाओं तक तेजी से पहुंच की अनुमति देकर नवजात आबादी की सुरक्षा कर सकते हैं।
11 देशों के बच्चों पर हुआ अध्ययन
विशेषज्ञों ने अध्ययन के दौरान 11 देशों के 19 अस्पतालों में भर्ती 3200 नवजात शिशुओं की चिकित्सा स्थितियों पर चर्चा की है। साथ ही बताया कि आगामी वर्षों में दक्षिण अफ्रीका में इसे लेकर क्लिनिकल परीक्षण भी शुरू होने वाला है। इनका कहना है कि नवजात शिशुओं में सेप्सिस जैसे गंभीर संक्रमण के इलाज के लिए बहुत कम एंटीबायोटिक दवाएं हैं और इन पर चिकित्सा अध्ययन भी काफी सीमित हैं। साल 2000 से लेकर अब तक कुल 40 एंटीबायोटिक दवाओं को इलाज में शामिल किया है। इनमें से केवल चार नवजात शिशुओं के लिए दी जा रही हैं।