बीकानेर,नव वर्ष का समय आशा और उम्मीद का समय होता है। चाहे समस्याएं कितनी भी रहें, हम यही सोचना चाहेंगे कि नया वर्ष समस्याओं के समाधान को लेकर आए, भविष्य के लिए अच्छा संदेश लेकर आए। यह हम अपने लिए भी सोचते हैं, अपने परिवार व प्रियजनों के लिए भी तथा सारी दुनिया के लिए भी। वर्ष का आरंभ ऐसा समय भी है जब हम तन-मन से कई तरह की अच्छी शुरुआत के लिए, कई शुभ संकल्पों के लिए अधिक तत्पर व तैयार होते हैं। मेहनत और निष्ठा के बल पर क्या हम वह लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं जो बहुत महत्त्वपूर्ण तो है पर पीछे छूटता जा रहा है?
क्या हम ऐसी किसी बुरी आदत या व्यसन से इस नये वर्ष में छुटकारा प्राप्त कर लेंगे, जिससे पीछा छुड़ाना बहुत समय से चाह रहे हैं?
इस तरह की सोच नये वर्ष में अधिक उमड़ती है और हम नये संकल्पों के लिए तैयार होते हैं। चाहे ऐसे सभी संकल्प हम पूरे न कर पाते हों, तो भी नये वर्ष का समय इस तरह के निर्णयों के लिए अधिक अनुकूल होता है और कई बार तो इन संकल्पों से बहुत बड़ी उपलबि वास्तव में प्राप्त हो जाती है। इस आशावादी नजरिए से देखें तो तमाम कठिनाइयों व अवरोधों के बावजूद, हम में से अधिकतर के पास अपने जीवन को बेहतर करने की, व उससे भी बड़ी बात यह है कि अपने जीवन के सुधार को दुनिया के, समाज के सुधार से जोड़ने की बहुत सी संभावनाएं मौजूद हैं।
आज सामाजिक स्तर पर इस तरह की सोच की बहुत जरूरत है कि घोर व्यक्तिवाद के इस युग में भी अधिक लोग अपनी प्रगति व बेहतरी का सामंजस्य पूरी दुनिया की प्रगति व बेहतरी से बनाने का प्रयास करें व इस दृष्टि से ही सोचने-समझने की प्रवृत्ति विकसित करें। आधुनिकता की मिथ्या समझ व प्रचार-प्रसार के असर में अनेक व्यक्ति शराब व अन्य नशे के आदि हो जाते हैं। इस नशे को छोड़ना एक ओर उनके स्वास्थ्य की रक्षा व उनके तथा उनके परिवार की भलाई के लिए जरूरी है, पर दूसरी ओर इससे समाज की भलाई और पर्यावरण की रक्षा भी जुड़ी है। शराब सामाजिक स्तर पर हिंसा, अपराध और दुर्घटनाओं का एक बहुत बड़ा कारण है और साथ में इसके उत्पादन की प्रक्रिया में बहुत पर्यावरण विनाश भी होता है।
इस तरह जो लोग नशा छोड़ते हैं वे अपनी और अपने परिवार की भलाई के साथ समाज की भलाई व पर्यावरण की रक्षा में भी अपना छोटा सा ही सही पर एक योगदान अवश्य कर रहे हैं। अनेक छोटे प्रयासों से ही बड़ा योगदान होता है। अत: लाखों लोग नशा छोड़ेंगे तो अपने आप यह सामाजिक व पर्यावरणीय योगदान भी बहुत बड़ा हो जाएगा। बड़ी संख्या में लोगों के दैनिक जीवन में हिंसा दुख-दर्द का एक बड़ा कारण है। बहुत आचर्य की बात है कि दैनिक जीवन की बहुत सी हिंसा अपने ही परिवार के सदस्यों के प्रति होती है। विश्व स्तर के घरेलू हिंसा के आंकड़े तो यही बताते हैं कि विश्व की सबसे व्यापक स्तर पर होने वाली हिंसा दैनिक जीवन की हिंसा है, जिसकी मार सबसे अधिक महिलाओं को फिर बच्चों को झेलनी पड़ती है।
यदि केवल शारीरिक हिंसा को न देखकर भावनात्मक हिंसा को भी देखें तो यह और भी व्यापक है। इसके अतिरिक्त दैनिक जीवन की हिंसा में आस-पड़ोस की हिंसा व बदले की भावना से जुड़ी हिंसा भी शामिल है। यदि हिंसा व हिंसक सोच के दायरे से बाहर निकलने का सोचा-समझा, सतत् प्रयास किया जाए तो न केवल अपना व अपने परिवार का भला होगा अपितु सामाजिक स्तर पर भी हिंसा में कमी आएगी व हिंसा की निर्थकता से मुक्त होने पर प्रगति की संभावनाए भी बढ़ेंगी। इंसानियत की एक बहुत बुनियादी सोच है कि सभी लोगों की समानता और एकता में विश्वास रखना व धर्म, नस्ल, लिंग, रंग, क्षेत्र, जाति, वर्ग आदि के आधार पर भेदभाव न करना।
जो लोग इस भेदभाव के निशाने पर हैं, उन्हें तो अपमान व अन्याय सहना ही पड़ता है पर जो यह भेदभाव करते हैं वे स्वयं भी अपनी भेदभाव भरी सोच की संकीर्णता में इसकी गिरफ्त में रहते हैं और इस कारण उदार व खुली सोच का जीवन नहीं जी पाते हैं, तरह-तरह की संकीर्णता व इससे जुड़ी हिंसक सोच से त्रस्त रहते हैं। यदि इसके स्थान पर वे यह सोचा-समझा व सतत् प्रयास करें कि हमें बिना किसी भेदभाव के सभी मनुष्यों को समानता व एकता की सोच पर आधारित ही जीवन जीना है और सोच अपनानी है तो इससे उनका अपना जीवन निश्चित तौर पर बेहतर होगा व साथ में वे एक समानता व एकता पर आधारित समाज, देश व दुनिया को बनाने में भी अपना योगदान देंगे। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ यानी पूरी दुनिया ही अपना परिवार है-यह बहुत सार्थक सोच है और जी-20 की अपनी अध्यक्षता के वर्ष में भारत ने इसे जी-20 के लिए यह कहते हुए अपनाया है कि यह तो हमारी प्राचीन संस्कृति का संदेश है।
हमारे सामने आज भी शहीद भगत सिंह का यह सवाल खड़ा है कि वास्तव में अन्याय, विषमता और भेदभाव दूर करने के कितने प्रयास हुए हैं व हो रहे हैं, उन्हें कितना महत्त्व मिल रहा है-स्थानीय स्तर पर, देश व दुनिया में। अत: यदि हम अपनी भलाई को समाज व दुनिया की भलाई के साथ जोड़ कर आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमें यह भी ध्यान में रखना पड़ेगा कि इस प्रयास को पूरी ईमानदारी से ही किया जाए।
केवल अपने कॅरियर या बिजनेस की सोच संकीर्ण सोच है, पर यदि अपने जीवन-यापन की जिम्मेदारी का सामंजस्य वि, समाज व देश की भलाई से जोड़ा जाए तो यह सही अथरे में सार्थक रहेगी। इस तरह के लाखों प्रयास एक साथ होंगे तो इससे पूरा समाज बेहतर बनेगा व ऐसे प्रयास अधिकांश देशों में होंगे तो बेहतर दुनिया बनेगी। इस तरह छोटे प्रयासों का भी बड़ा असर हो सकता है; वर्ष 2023 में हम इस सोच को लेकर ही आगे बढ़ें तो इससे जीवन में नई आशा व नया उत्साह भी मिलने की पूरी संभावना है।
हम तमाम कठिनाइयों के बावजूद बेहतर जीवन के लिए प्रयासरत हैं और अपने जीवन की बेहतरी के साथ दुनिया की बेहतरी में भी निरंतर योगदान दे रहे हैं-यह सोच निश्चय ही जीवन को एक मजबूत व सार्थक आधार देती है। तमाम अवरोधों के बीच, कठिनाइयों के बीच अपनी मेहनत, निष्ठा और दृढ़ निश्चय के आधार पर हम इस सार्थकता की राह को सफलता से अपना सकते हैं।