बीकानेर,दुनिया भर में कोरोना मामलों में कमी आ गई है, लेकिन उसके बाद की बीमारियों या शारीरिक कमियों का क्रम चिकित्सा विज्ञानियों की चिंता बढ़ा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना संक्रमण से उबरे अनेक लोगों को पूरी तरह से ठीक होने में कुछ साल तक लग जाएंगे। कोरोना बाद की कमियों के लक्षण अलग-अलग हैं। एक आम शिकायत ‘ब्रेन फॉग’ है। इससे कामकाजी याददाश्त को नुकसान पहुंचा है। कोरोना से उबरे अनेक लोग छोटी-छोटी बातों को भूल जा रहे हैं।
किसी बात पर मानसिक स्थिति स्पष्ट न होना, किसी बात पर ध्यान न लगना या मन एकाग्र न होने की समस्या भी देखी जा रही है। एक साथ कई काम करने में भी लोग तकलीफ महसूस कर रहे हैं।
पहले लोगों का मन एक साथ अनेक कामों में लग जाता था, लेकिन अब लोगों को अपनी पुरानी कामकाजी शैली में लौटने में परेशानी हो रही है। चिंता इसलिए ज्यादा है, क्योंकि अभी इसके उपचार की कोई स्थापित विधि नहीं है। इसमें कोई शक नहीं है कि ‘ब्रेन फॉग’ व्यक्ति को समग्रता में कमजोर बना सकता है।
येल विश्वविद्यालय के शोधकर्ता एक निश्चित नतीजे तक पहुंचने की कोशिश में हैं और अपने अध्ययन के दायरे को व्यापक बनाते जा रहे हैं। शोधकर्ताओं ने दो मौजूदा दवाओं के साथ अपने व्यापक अनुभव का उपयोग करते हुए शोध के शुरुआती साक्ष्य प्रकाशित किए हैं। ब्रेन फॉग मतलब मस्तिष्कीय कोहरे को समाप्त करने की निश्चित दवा की खोज जरूरी है। हो सकता है, यह कोरोना के बाद आई कोई मामूली कमी हो, जिसे आसानी से दवाओं के मार्फत कम किया जा सके।
इस शोध में बड़ी संख्या में मनोचिकित्सक भी शामिल हैं। सबको पता है, कमजोर स्मरण शक्ति से पूरी मानवता और जीवन की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कुछ दवाओं को प्रयोग में कारगर पाया गया है, लेकिन अभी बड़े पैमाने पर मरीजों में परीक्षण की जरूरत है। इस शोध से जुड़े डॉक्टर फेशरकी जादेह कहते हैं, उपचार में कमी है, पर अभी तक जो सफलता मिली है, उसका प्रसार जरूरी है। वह कहते हैं कि आपको शोध परीक्षण का हिस्सा बनने के लिए इंतजार करने की जरूरत नहीं है। आप चिकित्सक से पूछ सकते हैं, ये दवाएं सस्ती और व्यापक रूप से उपलब्ध हैं और अनेक देशों में अनुमोदित भी हैं।
शोधकर्ताओं ने न्यूरोइम्यूनोलॉजी रिपोर्ट्स में अपने शोध को प्रकाशित कराया है और दुनिया भर में मनोचिकित्सकों के बीच चर्चा तेज हो गई है। डॉक्टर अर्नस्टेन कहते हैं कि मस्तिष्क में हाल ही में विकसित क्षेत्र, जिसे प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स कहा जाता है, नियमित कामकाज, कामकाजी स्मृति और ध्यान विनियमन का काम करता है। इस क्षेत्र में तंत्रिका सर्किट किसी भी तरह के सूजन और तनाव के लिए उल्लेखनीय रूप से कमजोर है। सर्किट की कार्य क्षमता जब बाधित होने लगती है, तब याददाश्त पर कोहरा छाने लगता है।
एक दवा जिसे गुआनफासिन कहा जा रहा है, वह मस्तिष्क के इस हिस्से को सूजन या तनाव से बचाने में कारगर हो सकती है। डॉक्टर यह पुष्ट रूप से स्वीकार कर रहे हैं कि 12 मरीजों पर परीक्षण हुआ था और आठ मरीजों में कामयाबी मिली है। बहरहाल, कोरोना का असर शरीर के अन्य अंगों पर भी पड़ा है और प्रयोग हर ओर जारी है, किंतु नियमित दिनचर्या और सही जीवन-शैली के जरिये भी लोगों को कोशिश करनी चाहिए कि कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों से बचा जाए।