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बीकानेर,राजस्थान में उप चुनाव बीजेपी हार जाएगी यह दिखने वाली बात थी। सवाल यह है कि भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया, प्रतिपक्ष उप नेता राजेंद्र सिंह राठौड़, केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने पूरे चुनाव की कमान संभाली और पूरी ताकत झोंक दी। उनका जनता पर कितना असर हुआ है। यह बात सार्वजनिक हो गई कि ये नेता अपना असर नहीं दिखा पाए। पुनिया ने यह बात सही कही कि सरदार शहर सीट कांग्रेस डोमिनेट सीट है। भाजपा अब तक एक बार ही जीत पाई है। प्रदेशाध्यक्ष पुनिया के घर में कांग्रेस की डोमिनेसी बनी रह गई फिर आप के प्रदेशाध्यक्ष रहने और भाजपा की राजनीति में क्या मायने है ? इसका अर्थ यह हुआ कि प्रदेश अध्यक्ष, प्रतिपक्ष के उप नेता और केंद्रीय मंत्री कांग्रेस की इस सीट पर डोमीनेसी को तोड़ नहीं पाए। क्या इन नेताओं के भरोसे अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा की सरकार बनने की उम्मीद करना ठीक रहेगा ? क्या इन नेताओं ने पूरे चार साल संगठन को डोमिनेट करने के लिए कुछ किया या वसुंधरा राजे को किनारे करने में ताकत लगाए रखी। खैर जो भी है ये नेता वाहवाही वाला काम नहीं कर पाए हैं। पार्टी की जनता में कोई इन नेताओं के कारण पैठ बनी हो कहा नहीं जा सकता। इन्हीं नेताओं की साख का एक पैमाना भाजपा की जनाक्रोश यात्रा भी है। जो प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया के नेतृत्व में चल रही है। जनाक्रोश यात्रा में जनता की कांग्रेस के खिलाफ कहीं भागीदार नहीं दिखाई दी। और तो और भाजपा केडर, विधायक और अन्य नेताओं की भूमिका कैसी है उल्लेख करने की जरूरत नहीं है। वैसे भाजपा की देश में प्रथम राजनीतिक दल की साख बनी हुई है। जनता आज कांग्रेस से ज्यादा भाजपा को मानती है। राजस्थान में भी मोदी की साख है, परंतु प्रदेश में भाजपा की जिन नेताओं को कमान सौंप रखी है वे जनता में पार्टी, संगठन, को और खुद अपने आप को स्थापित नहीं कर पाए है। सरदार शहर चुनाव को जनता भूल जाएगी, परंतु क्या जनाक्रोश यात्रा के इंप्रेशन को अगले चुनाव तक भुलाया जा सकेगा ? यह बात राष्ट्रीय नेतृत्व को समझने की है कि राजस्थान की जनता में अशोक गहलोत की सरकार के प्रति किसी भी तरह का जनाक्रोश नहीं है। भले ही भाजपा के वरिष्ठ नेता गुलाब कटारिया राजनीतिक नजरिए से कुछ भी बयान दें। जनाक्रोश यात्रा का सच भाजपा,कांग्रेस और जनता के सामने है। यह यात्रा भाजपा के लिए जनता के बीच जाने का तरीका तो अच्छा ही था, परंतु इसका इंपेक्ट वो हुआ नहीं जिस उद्देश्य से यात्रा निकाली जा रही है। कई जगह तो यात्रा उपहास का कारण बनी और भाजपा की ढकी ढकाई कई बातें (पोल) जनता के सामने आ गई। जिसमें आपसी तनातनी, राजे समर्थक और पुनिया गुट के बीच की दूरियां। स्थानीय स्तर पर नेताओं के बीच की अदावते इस यात्रा के चलते खुलकर सामने आई। यात्रा के क्या राजनीतिक फायदे और नुकसान होंगे यह आकलन तो पार्टी नेतृत्व ही करेगा। यह साफ है कि जनता ने जनाक्रोश यात्रा को कोई समर्थन नहीं दिया। यह बात अब तक की यात्रा में उभर कर जन चर्चा में बन गई है। भाजपा की राष्ट्रीय स्तर पर निखरी साख राजस्थान भाजपा में छीतरी हुई दिखाई पड रही है। जनता कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा को भाजपा की जनाक्रोश यात्रा से भी तोल रही है।

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