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नई दिल्ली,सुप्रीम कोर्ट ने 13 साल पहले दायर एक आपराधिक अपील को खारिज करते हुए कहा कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली अपने आप में एक सजा हो सकती है। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने कहा कि आरोप तय करने से पैदा हुई एक अपील 13 वर्षों तक सुप्रीम कोर्ट में लंबित रही।अदालत एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें अप्रैल, 2008 में एक छात्र ने शराब के नशे में एक सहपाठी से कक्षा में बदसलूकी की थी। इसके बाद उस छात्र को अनुशासनात्मक कार्यवाही के तहत कक्षा से निलंबित कर दिया गया और अपने माता-पिता को स्कूल लाने को कहा गया।

13 साल पुरानी आपराधिक अपील का निस्तारण करते हुए सर्वोच्च अदालत ने की टिप्पणी

उसने अभिभावकों को लाने के बजाय एक नहर में कूदकर जान देने से पहले यह बात एक एसएमएस में अपने भाई को बता दी। आत्महत्या करने वाले छात्र के पिता द्वारा दर्ज की गई शिकायत पर शिक्षक, विभागाध्यक्ष और प्रधानाचार्य के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था कि उन्होंने आत्महत्या के लिए उकसाया था। ट्रायल कोर्ट ने वर्ष 2009 में अभियुक्तों के खिलाफ आरोप तय किए थे। अभियुक्तों ने हाईकोर्ट के समक्ष आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की, जिसे यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि कार्यवाही प्रारंभिक चरण में थी और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी।

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शिक्षक, विभागाध्यक्ष व प्रधानाचार्य ने आत्महत्या के लिए उकसाने में 14 साल जेल में बिताए

इस प्रकार आरोपित ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने वर्ष 2009 में अंतरिम रोक लगा दी। पीठ ने 13 साल बाद अपील के निस्तारण के आदेश में कहा,”वर्तमान अपीलों को इस एि दायर किया गया था कि आदेश और अंतरिम रोक दहलीज पर दी गई थी। स्वाभाविक रूप से इस न्यायालय द्वारा रोक के मद्देनजर मुकदमा आगे नहीं बढ़ा। यह मामला पिछले तेरह वर्षों से उसी पर टिका हुआ है!’ पीठ ने आदेश में कहा,”हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली स्वयं एक सजा हो सकती है! इस मामले में वास्तव में ऐसा ही हुआ है। एक प्रकरण में आत्महत्या के लिए उकसाने के मुद्दे पर 14 साल..एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति।” पीठ ने अपील पर विचार किया और कहा कि शिकायत के आधार पर चार्जशीट को पढ़ने के बाद भी आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई मामला नहीं बनता है। अंतत: अपील को अभियुक्तों को छोड़ने की अनुमति दी गई।

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