बीकानेर,गुजरात में विधानसभा चुनाव अपने आखिरी पड़ाव की ओर बढ़ रहा है जहां अब मतदान से पहले बचे कुछ दिनों में सभी राजनीतिक दल अपनी जोर-आजमाइश और हर दाव चलना चाहते हैं. चुनावी प्रबंधन में माहिर बीजेपी ने देशभर से अपने नेताओं की फौज गुजरात में उतार दी है जहां हर राज्य के बड़े चेहरे को विधानसभा के मुताबिक जिम्मेदारी दी गई है.
वहीं पड़ोसी राज्य होने के नाते राजस्थान के नेताओं पर चुनावों का खासा दारोमदार है जहां राजस्थान के नेताओं की एक बड़ी टीम गुजरात भेजी गई है लेकिन हैरान कर देने वाली बात यह है कि बीजेपी की चुनावी टीम से पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे का नाम नदारद है.
राजे को गुजरात चुनाव में कहीं भी प्रचार की कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है. राजे का नाम नहीं होने से सियासी गलियारों में अब यह चर्चा का विषय बन गया है. बता दें कि हाल में बीजेपी आलाकमान की ओर से कारपेट बॉम्बिंग रणनीति के तहत राजस्थान से 6 नेताओं को बुलाया गया जिनमें भी राजे को शामिल नहीं किया गया.
वहीं गुजरात में राजस्थान से केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, कैलाश चौधरी, गजेंद्र सिंह शेखावत, सतीश पूनिया, राज्यसभा सांसद किरोड़ीलाल मीणा, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ अलग-अलग विधानसभाओं में प्रचार कर रहे हैं.
पिछली बार राजे थी स्टार प्रचारक
बता दें कि गुजरात चुनाव के लिए बीजेपी ने पहले स्टार प्रचारकों में 40 नेताओं की एक सूची बनाई थी जिसमें वसुंधरा राजे समेत किसी भी राजस्थानी नेता को जगह नहीं दी गई थी हालांकि 2017 के चुनावों में सीएम रहते राजे को स्टार प्रचारक बनाया गया था. बीजेपी के कुछ नेताओं का कहना है कि बीजेपी सरकार वाले राज्यों के सीएम को ही स्टार प्रचारक बनाया जाता है.
वहीं हाल में राजस्थान के 38 सीनियर नेताओं को 30 विधानसभा सीटों पर भेजा गया जिसमें सूबे के कई प्रमुख नेता शामिल किए गए हैं लेकिन इस लिस्ट में भी राजे का नाम शामिल नहीं किया गया है. बता दें कि बीजेपी ने चुनाव से काफी समय पहले अपने कई नेता और उनके साथ पदाधिकारी गुजरात में भेजे थे.
इधर सरदारशहर उपचुनाव के स्टार प्रचारकों में वसुंधरा राजे को प्रचारक बनाया गया है लेकिन राजे अभी तक नहीं गई है. इससे पहले भी पिछले सालों में हुए उपचुनाव में राजे प्रचार करते हुए नहीं देखी गई.
बीजेपी ने दिया राजे को संदेश ?
गौरतलब है कि गुजरात चुनाव से राजे को इस तरह दूर रखने के पीछे आलाकमान की सोची-समझी रणनीति बताई जा रही है. जानकारों का कहना है कि राजे चुनावों में बीजेपी की ध्रुवीकरण और आक्रामक हिंदुत्व पॉलिटिक्स वाले एजेंडे को हवा नहीं दे पाती है और उसमें कम फिट बैठती है.मालूम हो कि पिछले काफी समय से राजे के आलाकमान से रिश्तों में कशमकश बनी हुई है. वहीं राजे समर्थकों का कहना है कि राजे हमेशा से ही चुनाव प्रचार को लेकर ज्यादा रुचि नहीं दिखाती है इस कारण से उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं मिली है.