Trending Now












बीकानेर,मंत्री जी को अपना भाषण महत्वपूर्ण लगता है। दूसरों की बात सुनना नहीं।खुद आम लोगों की कितनी सुनते हैं और तो और मुख्यमंत्री और एआईसीसी के अध्यक्ष का भाषण भी सुनते हैं क्या? कलक्टर के साथ सार्वजनिक व्यवहार मंत्री का निंदनीय कृत्य हैं। कलक्टर और जिला मजिस्ट्रेट लोक सेवक है। मंत्री के नौकर नहीं है । कलक्टर सबका है। क्या पत्ता फोन देखते समय उनकी क्या प्राथमिकता रही होगी ? मंत्री ने जैसे खुद का नौकर समझ लिया हो। कलक्टर लोक सेवक की भूमिका में केवल मंत्री का भाषण सुने बाकी प्राथमिकता मंत्री के खातिर खूंटी पर टांग दे । ऐसे कोई समझदार लोक सेवक कैसे करेगा? मंत्री ने भाषण सुनने को बाध्य करने के लिए अपना आपा खो दिया। वैसे भाषण में रखा ही क्या है? मंत्री को कोई सुने ऐसा था भी क्या?

पढ़ो भाषण में ये बोले थे ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग मंत्री रमेश चंद मीना। मंत्री ने कहा कि महिलाएं स्वयं को दक्ष बनाएं, अपनी क्षमताओं का विकास करें और अवसरों का अधिकतम उपयोग करते हुए स्वयं को सशक्त बनाएं। राज्य सरकार महिलाओं के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है। क्या है इस भाषण में बताओ मंत्री जी? सैध्दांतिक बातों के अलावा। चुनाव नजदीक आते ही मंत्री स्थानीय नेताओं वीरेंद्र बेनीवाल, लक्ष्मण कड़वासरा, मदन मेघवाल के साथ राजीविका स्वयं सहायता समूहों की महिला सदस्यों से संवाद करने पहुंच गए ? सवाल यह की पिछले चार सालों में कितनी बार संवाद किया और कितना ऋण दिया ? भाषण तो वहां बैठी महिलाओं ने भी नहीं सुना। कार्यक्रम प्रायोजित था और हो गया। इतना ही होना था। बाकी जो हुआ वो मंत्री जी की साख पर बट्टा लगाना था वो लग गया। बाकी तो बातें हैं बातों का क्या। योजना में सरकारी तंत्र के जरिए काम हो ही रहा है। मंत्री जी ने ऋण के चैक बांट दिए। माला पहन ली इतना ही तो होना था। यह बात सही हो सकती है कि ब्यूरोक्रेसी हावी और मनमानी करती है। ब्यूरोक्रेसी व्यवस्था में रहने को सरकार पाबंद करें। इसका यह मतलब नहीं है कि मंत्री लोक सेवक का अपमान कर दें। कल आपको भी इस ब्यूरोक्रेसी से व्यवस्था की उम्मीद रहेगी। फिर कहां से लाओगे ब्यूरोक्रेट ?

Author