बीकानेर,पंडित नेहरू ने इस पुस्तक पर 50 से अधिक पन्ने लिखे हैं और इनमें महाराणा प्रताप, राजपूतों की महान विरासत, उनकी बहादुरी, मारवाड़ी घोड़ों, युद्धों में राजपूतों के कौशल, मुगल और राजपूत संबंध जिन्हें इतिहासकारों ने नकारात्मक प्रस्तुत किया है।वहां नेहरू ने बताया है कि जयपुर, जोधपुर, उदयपुर और बीकानेर सहित विभिन्न राजघरानों और दिल्ली के बीच रिश्तों के कारण ही आज का राजस्थान इतना बेहतरीन प्रदेश बना है।
जयपुर। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्रसिद्ध पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ राजस्थान के इतिहास, संस्कृति और इस प्रदेश के लोगों की तारीफों के बिना पूरी नहीं होती। पंडित नेहरू ने इस पुस्तक पर 50 से अधिक पन्ने लिखे हैं और इनमें महाराणा प्रताप, राजपूतों की महान विरासत, उनकी बहादुरी, मारवाड़ी घोड़ों, युद्धों में राजपूतों के कौशल, मुगल और राजपूत संबंध जिन्हें इतिहासकारों ने नकारात्मक प्रस्तुत किया है। वहां नेहरू ने बताया है कि जयपुर, जोधपुर, उदयपुर और बीकानेर सहित विभिन्न राजघरानों और दिल्ली के बीच रिश्तों के कारण ही आज का राजस्थान इतना बेहतरीन प्रदेश बना है। सवाई राजा जयसिंह के कार्यकाल में बनी वेधशालाओं और युद्धों के दौरान राजपूतों के साहस और उनके मूल्यों की तारीफ ों से यह पुस्तक महक रही है। जवाहरलाल नेहरू ने पुस्तक में एक जगह तो यह भी लिखा है कि ‘अकबर के बाद के मुगल शासकों को मुगल कहना ही गलत है। वे पचास प्रतिशत मुगल और पचास प्रतिशत राजपूत खून से थे।’ ऐसे में वे अगर भारत में लंबे समय टिक सके तो अपनी माताओं से पैदा होने के कारण ही। उन्होंने जहांगीर का तो बाकायदा नाम लिखकरबताया है कि वह आधा हिन्दू और आधा राजपूत था। उन्होंने एक जगह लिखा है कि राजस्थान का राजपूत जितना अपनी मातृभूमि से प्रेम करता है, उतना ही वह अपने घोड़े से प्रेम करता है और उसके जीवन में स्त्री की मर्यादा की रक्षा और उसके सम्मान को अक्षुण्ण रखने से बढ़कर कोई और मूल्य नहीं है।
अहमदनगर जेल में लिखी पुस्तक
नेहरू ने यह पुस्तक अहमदनगर किला जेल में कैदी के रूप में बिना संदर्भ सामग्री और पुस्तकों के लिखी थी। नेहरू ने राणा प्रताप के शौर्य की तारीफ करते हुए लिखा कि ‘अकबर ने बहुत से लोगों को अपनी तरफ कर लिया और साथ ही रखा, लेकिन वह राजपूताना में मेवाड़ के राणा प्रताप की स्वाभिमानी और अदम्य आत्मा का दमन करने में कामयाब न हुआ और राणा प्रताप ने एक ऐसे व्यक्ति से, जिसे वह विदेशी विजेता समझता था, रिश्ता जोड़ने की अपेक्षा जंगल में मारा-मारा फिरना अच्छा समझा।’ इससे समझा जा सकता है कि राणा प्रताप को अपनी दासता स्वीकार कराने में अकबर नाकाम ही रहा।
जयसिंह ने वेधशालाएं तैयार कराई
नेहरू ने राजा जयसिंह की चर्चा करते हुए लिखा कि ‘जयसिंह ने जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, बनारस और मथुरा में बड़ी-बड़ी वेधशालाएं बनवाई थीं। वेधशालाएं बनाने और ज्योतिष का सही रिजल्ट आने के लिए पुर्तगाल में एक पादरी के साथ अपना एक आदमी भेजकर सामग्री जुटाई थी। यह माना जाता था कि पुर्तगाल का ज्योतिष अधिक सटीक होता है।
पुस्तक कैदियों को समर्पित
पुस्तक को अपने साथी जेल कैदियों और मित्रों को समपर्ति करते हुए नेहरू ने लिखा ‘अहमदनगर किला जेल के 9 अगस्त 1942 से 28 मार्च 1945 तक के साथी कैदियों और मित्रों को…। ‘ वे इस अवधि में जेल में बंद रहे।