बीकानेर,कन्हैयालाल सेठिया ने ‘पाथळ और पीथळ’ तथा ‘धरती धोरां री’ जैसे कालजयी गीत रचकर दुनिया में राजस्थानी का मान बढ़ाया। युवा लेखकों को उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से सीख लेनी चाहिए।’
शार्दूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट और राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय के संयुक्त तत्वावधान् में कन्हैयालाल सेठिया की 14वीं पुण्यतिथि के अवसर पर शुक्रवार को ‘राजस्थानी भाषा अर साहित्य में कन्हैयालाल सेठिया रो योगदान’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी के दौरान वक्ताओं ने यह उद्गार व्यक्त किए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सहायक निदेशक (जनसंपर्क) हरि शंकर आचार्य थे। उन्होंने कहा कि कन्हैयालाल सेठिया के साहित्यिक अवदान का सम्मान करते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री और ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी साहित्य पुरस्कार से नवाजा। सेठिया ने राजस्थानी के अलावा हिंदी और उर्दू में भी साहित्य रचा।
अध्यक्षता करते हुए इंस्टीट्यूट के सचिव तथा राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के कोषाध्यक्ष राजेन्द्र जोशी ने कहा कि राजस्थानी साहित्य में कन्हैयालाल सेठिया के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। राजस्थान साहित्य अकादमी की मासिक पत्रिका ‘मधुमति’ ने सेठिया की काव्य यात्रा पर आधारित विशेषांक प्रकाशित किया।
गीतकार राजाराज स्वर्णकार ने कहा कि कन्हैयालाल सेठिया की मींझर, लीलटांस, मायड़ रो हैलो जैसी कृतियां बेहद लोकप्रिय रही। राजस्थानी साहित्य के पाठ्यक्रम में उनकी कई पुस्तकों को सम्मिलित किया गया है।
सखा संगम के अध्यक्ष एन.डी. रंगा ने कहा कि राजस्थानी साहित्य सृजन के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने वालों महापुरूषों को याद करना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने सेठिया के जीवन के संस्मरण साझा किए।
राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय के पुस्तकालयाध्यक्ष विमल कुमार शर्मा ने कहा कि पुस्तकालय द्वारा इंस्टीट्यूट के संयुक्त तत्वावधान् में राजस्थानी के मूर्धन्य साहित्यकारों की स्मृति में सतत कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। जनसंपर्क कार्यालय के परमनाथ सिद्ध ने आभार जताया।
कार्यक्रम में हेमंत तंवर, राजू सिंह, मोहित गहलोत, दीपक सोनी, प्रीति कुमारी तथा किरण शेखावत ने भी विचार रखे।