बीकानेर,क्या अशोक गहलोत सरकार चाहती है कि गोचर, ओरण , जोहड़ पायतन और बहाव की भूमि पर अतिक्रमण हो और प्रशासन अतिक्रमण नहीं हटाए ? क्या यह वोटो की राजनीति है और प्रशासन इसमें इस्तेमाल होता रहे। अगर ऐसा नहीं है तो बीकानेर की गोचर से कब्जे हटाने की 2018 से चल रही कार्रवाई पर प्रशासन अमल क्यों नहीं कर रहा है। बीकानेर से राजस्थान सरकार के मंत्री डा.बी.डी कल्ला, भंवर सिंह भाटी को गोचर पर अतिक्रमण होने की चिंता नहीं है क्या? इन मंत्रियों को प्रशासन को निर्देश देने चाहिए की गोचर से कब्जे हटाए आइंदा नहीं हो प्रशासन सजग रहे। कल्ला और भाटी चुप क्यों है? वे गोचर सुरक्षित रहे ऐसा चाहते नहीं है क्या? जब देवी सिंह भाटी गोचर से जुड़े लोगों और संस्थाओं के आग्रह पर नेतृत्व कर कलक्टर से मिलते हैं तो इन मंत्रियों की क्या कोई ड्यूटी बनती है? या गोचर मुद्दे का जनता में श्रेय देवी सिंह भाटी को नहीं जाए इसकी राजनीतिक व्यूह रचना रची जाने लगती है। प्रशासन राजनेताओं के दवाब में आकर घोषित तय कार्रवाई रोक क्यों देता है ? गोचर भूमि का सरकारे अन्य उपयोग नहीं कर सकती। यह गाय के चारागाह के रूप में ही उपयोग हो सकती है। अतिक्रमण करना कानूनी रूप से अपराध है ही सामाजिक रूप से भी निंदनीय माना जाता है। फिर भी लोकतांत्रिक व्यवस्था गोचर को निगल रही है। प्रशासन अतिक्रमणों पर चुप्पी साधे हुए हैं तो सरकार वोटों की राजनीति के दवाब में गोचर के अन्य उपयोग की अनुमति दे रही है। गोचर पर अतिक्रमण हटाने को लेकर पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी ने शिष्ट मंडल के साथ जिला कलक्टर बीकानेर से कार्रवाई का आग्रह किया। गोचर पर अतिक्रमण के मामले में सीधे सीधे प्रशासन जिम्मेदार है। भाटी ने अतिक्रमण हटाने के प्रशासन के निर्णय, निर्देश की पालना नहीं होने को लेकर कलक्टर को आड़े हाथों लिया। कलक्टर भगवती प्रसाद कलाल ने शिष्ट मंडल को आश्वस्त किया कि गंगाशहर गोचर के बाडेनुमा कब्जे दीपावली से पहले तथा पक्के कब्जे दीपावली के बाद हटा दिए जाएंगे। कलक्टर ने तय कार्रवाई शिष्ट मंडल के समक्ष दिए आश्वासन के मुताबिक नहीं की है। देवी सिंह भाटी ने गोचर पर कब्जे के मामले को लेकर नाराजगी जताई कहा था कि सोचना पड़ेगा क्या करें। हालांकि तत्काल कलक्टर के निर्देश पर हल्का पटवारी ने तहसील कार्यालय को मौका रिपोर्ट दे दी। गिरदावर ने गोचर से जुड़े लोगों को अवगत करवाया कि अतिक्रमण हटाने के लिए फोर्स मांगी है। इस आश्वासन पर सप्ताह पर सप्ताह बीतता जा रहा है। कार्रवाई दूर की कोड़ी बन गई है। अतिक्रमण नहीं हटे इसके लिए राजनीतिक और अन्य प्रयास किए जा रहे हैं जिसमें कब्जाधारी स्टे लाने की कार्रवाई भी शामिल है। प्रश्न यह है कि क्या गोचर में कब्जे हटने चाहिए या नहीं? जनता, गोचर से जुड़े लोग, नेता चाहे भंवर सिंह भाटी हो या देवी सिंह अथवा डा कल्ला, सबकी जिम्मेदारी है कि अतिक्रमण हटे। यह मुद्दा राजनीति से ऊपर रखकर ही गोचर सुरक्षित रख सकते हैं। गोचर भूमि के सार्वजनिक महत्व बताने की किसी को जरूरत नहीं है।इसके बावजूद भी हर स्तर पर महत्व को अनदेखा किया जा रहा है।
भारतीय कृषि तंत्र और ऋषि तंत्र दोनों में ही गाय और गोचर की भूमिका अहम रही है। भारत की महान संस्कृति के यही कारक रहे हैं। गाय और गोचर का संरक्षण हर किसी का स्वत: स्फूर्त कर्तव्य रहा है। यही भारतीय जीवन संस्कृति बन गई। गोचर भूमि का चारागाह के रूप में ही उपयोग करने की उच्चतम न्यायालय के आदेश हैं । गोचर को लेकर राज्य सरकारों के भी स्पष्ट नीति निर्देश हैं। उच्चतम न्यायलय के आदेशों और राज्य सरकार के नीति निर्देशों के बावजूद राजस्थान में कमोबेश पूरे राज्य में गोचर ओरण पर अतिक्रमण है। बीकानेर में गोचर पर अतिक्रमण हटाने को लेकर आंदोलन चल रहा हैं। सरेह नथानिया, गंगा शहर, भीनासर गोचर की जन सहयोग से चाहर दिवारी बन रही है। गंगा शहर गोचर में अतिक्रमण हटाने की मांग 2018 से चल रही है। क्या ये अतिक्रमण हटेंगे कलक्टर साहब ?