जयपुर,रविवार को गुजरात के मोरबी में घटी दुर्घटना से केवल गुजरात ही नही बल्कि पूरे देश मे मातम सा छा गया है, प्रत्येक नागरिक की जुबान पर केवल मोरबी दुर्घटना की ही चर्चा ही सुनाई दे रही है। इस घटना से पूरे देश मे दहशत का माहौल बन चुका है। क्योकि देश का नागरिक ना सड़क पर सुरक्षित है ना रेल यात्रा में सुरक्षित है किंतु यह घटना एक पुल पर घटी है जिसकी मरम्मत को लेकर राज्य सरकार ने 8 करोड़ रु खर्च किये थे और घटना से 4 दिन पहले ही बिना अनुमति इस पुल पर लोगों का आवागमन चालू कर दिया, इस गंभीर लापरवाही का परिणाम यह हुआ कि जिस पुल की क्षमता 100 लोगों की थी उस पुल पर दोगने से अधिक लोगों को बिना व्यवस्था और सिक्योरिटी के खड़ा कर दिया गया। जिसके कारण अत्याधिक लोगों के आने से पुल वजन सहन नही कर पाया और कंपनी ने 12 और 17 रु टिकट का चार्ज वसूले के कारण अधिक लोगों को पुल पर जाने दिया। जिसकी वजह से यह लापरवाही बरती गई और इसका परिणाम 150 से अधिक लोगों ने अपनी जिंदगी से समझौता कर भुगतना पड़ा। इतनी ही संख्या में लोगों का इलाज चल रहा है जिसमे से भी कुछ लोग जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे है और कुछ लोग नदी में गिरने के चलते गायब तक हो गए है। यह कोई छोटी लापरवाही नही बल्कि गंभीर लापरवाही है जिसके चलते देश के नागरिकों में सरकार और प्रशासन के खिलाफ आक्रोश भर चुका है। अब गुजरात सरकार जिन लोगों की मौत हुई है उन परिवारों को हर्जाना देकर मामले को दबाने का प्रयास कर रही है, जिसके चलते घटना की जिम्मेदार कंपनी ओरेवा ग्रुप को बचाया जा रहा है जिसका सबूत यह है कि मोरबी प्रशासन ने घटना एफआईआर तो दर्ज की किन्तु उसमें दोषियों के नाम शामिल नही किये, जहां कंपनी के मालिक को हिरासत में लेना चाहिए था वहां मजदूरों, सिक्योरिटी गार्ड और क्लर्क को हिरासत में लेकर केवल खानापूर्ति की गई। जिसका खामियाजा राज्य सरकार, प्रशासन और ओरेवा ग्रुप को भुगतना ही पड़ेगा।
घटना को लेकर राजधानी जयपुर के सामाजिक कार्यकर्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा कि घटना को लेकर राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारियों से नही भाग सकती है, राज्य सरकार को इस घटना को लेकर जवाब देना ही होगा। सरकार ने घटना को लेकर गैर इदारतन हत्या के तहत एफआईआर दर्ज की गई है, जबकि इस एफआईआर में पुल की मरम्मत करने और बिना अनुमति पुल को शुरू करने वाली कंपनी ओरेवा ग्रुप का नाम शामिल नही कर दोषियों को पहले ही संरक्षण दे दिया है, वही दूसरी तरफ घटना को लेकर गुजरात सरकार ने एसआईटी का गठन किया है, किन्तु अबतक जितनी भी घटना हुई है कितने मामलों पर एसआईटी ने अपनी जांच पूरी कर आरोपियों को सज़ा दिलवाई है, एसआईटी गठन की बजाय राज्य सरकार को पूर्व रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में घटना की जांच करवानी चाहिए। साथ ही घटना को लेकर दर्ज की गई एफआईआर में पुल की मरम्मत और रख-रखाव का वादा करने वाली कंपनी ओरेवा ग्रुप और लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों का नाम शामिल करना चाहिए।
*गुजरात सरकार से पूछे सवाल*
अभिषेक जैन बिट्टू ने घटना को लेकर गुजरात सरकार से सवाल पूछे है, जिसमे उन्होंने पूछा कि
1) घटना से पूर्व 4 दिनों में 12 हजार से अधिक पब्लिक पुल पर आई, तो प्रशासन जागरूक क्यो नही हुआ।
2) बिना अनुमति कंपनी ने पुल शुरू कर दिया तो सरकार और प्रशासन ने कंपनी पर कार्यवाही अब तक क्यो नही की।
3) पुल की मरम्मत होते समय मरम्मत में यूज की गई साम्रगी की गुणवत्ता क्यो नही जांची गई।
4) पुल टूटने को लेकर पुल से छेड़छाड़ का भी दावा किया जा रहा है, किन्तु सवाल यह कि 8 करोड़ रु मरम्मत में लगाने के बावजूद क्या पुल पैरों के मरने मात्र से टूट सकता था।
5) एक दावा यह भी किया गया कि पुल पर लगी केबल जिनको जल्दी से हाथी भी नही तोड़ सकते, क्या वह केबल कोई भी नागरिक खिसका सकता था, क्या खिसकाने मात्र से पुल टूटने की संभावना थी।
6) जब पुल पर एक बार मे 100 लोगों ही जा सकते थे तो क्षमता से अधिक लोगों को जाने क्यों दिया गया। ऐसी स्थिति में कंपनी पर सोची-समझी साजिश के तहत हत्या करने की रिपोर्ट दर्ज क्यो नही की गई।
7) डीएम के मना करने के बावजूद ओरेवा ग्रुप को पुल की मरम्मत की जिम्मेदारी जबर्दस्ती क्यो दी गई, कंपनी को टेंडर देने का दबाव किसने बनाया।
8) पुल टूटने की घटना को लेकर कर्लक, सिक्योरिटी गार्ड, मजदूर और कंपनी के मैनेजर को हिरासत में लिया गया है क्या यह असली जिम्मेदार है।
9) घटना को लेकर दर्ज की गई एफआईआर में दोषियों के नाम शामिल क्यो नही किये गए।
10) घटना में मारे गए लोगों के परिजनों को हर्जाना देकर क्या समझौता किया जा रहा है।