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बीकानेर,नागपुर का अजीत पारसे पिछले करीब दो साल से आए दिन खबरों में छाया रहा है। पुलिस की सायबर अपराध शाखा उसे इंटरनेट टेक्नोलॉजी से जुड़े अपराधों की छानबीन में मदद के लिए बुलाती थी, स्थानीय समाचार पत्रों में साइबर ठगी से जुड़े हर मामले में उसका एक्सपर्ट ओपिनियन लेकर छापा जाता था, विभिन्न कॉलेज और संस्थायें उसे इस बारे में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित करती थीं।उसके व्यक्तित्व का स्याह पहलू पहली बार तब लोगों के सामने आया, जब शहर के एक होम्योपैथ डॉक्टर राजेश मुरकुटे ने उसके खिलाफ पुलिस में धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करायी। डॉ. मुरकुटे का आरोप था कि पारसे ने उसे ब्लैकमेल कर साढ़े चार करोड़ रूपये वसूले हैं। पुलिस यह जानकर हैरान रह गयी कि कैसे पारसे ने ठगी के लिए पीएमओ और सीबीआई जैसी संस्थाओं का नाम इस्तेमाल किया।

डॉ. मुरकुटे द्वारा पुलिस को दी गई जानकारी के मुताबिक पारसे ने उन्हें यकीन दिलाया कि उसकी पीएमओ में अच्छी पैठ है और वह होम्योपैथी कॉलेज खोलने के लिए पीएमओ से ग्रांट दिला सकता है। जल्दी ही उसने पीएमओ के नाम से एक फर्जी मेल आईडी क्रिएट किया और डॉक्टर को मेल भेजकर आश्वस्त किया कि उसके कॉलेज के लिए फंड रिलीज हो चुका है।डॉक्टर मुरकुटे को फंड तो नहीं मिला, लेकिन अजीत पारसे ने मदद के नाम पर उनसे करीब डेढ़ करोड़ रुपए ऐंठ लिये। इसी बीच पारसे को पता चला कि डॉ. मुरकुटे ने अपने एक दोस्त को बैंक से कर्ज दिलाने में गारंटर की भूमिका अदा की थी तो उसने नया पैंतरा चला और डॉ. मुरकुटे को बताया कि सीबीआई ने उनके नाम अरेस्ट वॉरंट जारी किया है। डॉक्टर को यकीन दिलाने के लिए उसने सीबीआई के नकली लेटरहेड पर वारंट बनाकर उसकी कॉपी भी उन्हें व्हाट्सएप्प पर भेजी। उसने डॉक्टर को भरोसा दिलाया कि वह केस सेटल करा सकता है और उसने डॉक्टर से डेढ़ करोड़ रूपये वसूलकर उन्हें सीबीआई की ओर से फिर से एक लेटर भेज दिया कि उनका मामला बंद कर दिया गया है। जब तक डॉक्टर मुरकुटे को पारसे के इरादों पर शक होना शुरू हुआ, वह उन्हें साढ़े चार करोड़ रूपये का चूना लगा चुका था।

लेकिन, पारसे न ऐसा पहला ठग है और न अकेला। वर्षों से साइबर ठग इंटरनेट यूजर्स को निशाना बनाते आ रहे हैं। जब तक आप उनकी एक चाल को भॉंपते हैं, वे ठगी का कोई नया तरीका इजाद कर लेते हैं। टेक्नोलॉजी के हिसाब से वे भी खुद को लगातार अपडेट करते गये हैं।इंटरनेट यूजर्स को दो दशक पहले अक्सर ऐसी मेल आया करती थीं, जिनमें उन्हें अरबों की लॉटरी लगने की सूचना, किसी खरबपति विधवा द्वारा भारत में निवेश के लिए भागीदारी का आमंत्रण, विदेशों में नौकरी दिलाने का दावा, सामाजिक कार्यो के लिए फंडिंग उपलब्ध कराने जैसे संदेश हुआ करते थे। इसके पीछे अमूमन नाइजीरियाई ठगों का गिरोह सक्रिय पाया जाता था।

लेकिन अब ऐसी ई-मेल आउटडेटेड हो गयी हैं और हमारे लोकल ठगों ने उन्हें बहुत पीछे छोड़ दिया है। किसी भी दिन का अखबार उठाकर देख लीजिये, शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो, जब साइबर ठगी की कोई न कोई खबर आपकी ऑंखों के सामने से न गुजरती हो। यह ठगी कुछ हजार की भी हो सकती है और कई करोड़ की भी। रकम के साथ-साथ शिकार भी बदलते रहते हैं और शिकारी भी। अगर कुछ नहीं बदलता, तो वह है मानव का मनोविज्ञान, जिसे ये ठग अच्छी तरह समझते हैं। ये जानते हैं कि इंसान को दो ही वजह से पैसा निकालने के लिए मजबूर किया जा सकता है, एक तो लालच देकर और दूसरा, डर दिखाकर।इसीलिए, हम साइब्रर फ्रॉड के जितने भी मामले देखेंगे, उनमें अधिकतर में किसी न किसी प्रलोभन या भय की भावना को प्रमुखता से मौजूद पायेंगे। यही कारण है कि कहीं किसी को कौन बनेगा करोड़पति में इनाम जीतने की सूचना देकर ठग लिया जाता है। कहीं हजारों का सामान सैंकडों में बेचने का झॉंसा देकर, कभी आपको मैसेज आता है कि आपके बैंक ट्रांजिक्शन के लिए आपको कुछ हजार पॉइंट मिले हैं, कभी आयकर रिफंड की सूचना दी जाती है, कभी नौकरी दिलाने के बहाने आपसे लाखों रुपये ठगे जा सकते हैं, कभी शादी कराने के नाम पर, कभी आपका कोई ऑनलाइन विदेशी दोस्त आपको गिफ्ट भेजने का दावा करता है और फिर उसका साथी कस्टम अधिकारी बनकर आपसे रिश्वत की रकम मॉंगता है तो कभी आपका बिना मंगाया पार्सल डिलीवरी के लिए आता है और आपसे फोन पर आया वेरीफिकेशन कोड पूछा जाता है।लालच देने के सैंकड़ों तरीके इन साइबर ठगों द्वारा आजमाये जा रहे हैं, और जो लालच में नहीं फँसते उन्हें डर दिखाकर ठग लिया जाता है। कभी आपको सूचित किया जाता है कि आपके खिलाफ साइबर क्राइम ब्रांच में शिकायत दर्ज हुई है, गिरफ्तारी से बचने के लिए फलां-फलां नंबर पर फोन करें और कभी आपकी बिजली काट दी जायेगी या इंश्योरेंस पॉलिसी डिएक्टीवेट कर दी जायेगी, यह डर दिखाकर आपसे ओटीपी कोड मॉंगा जाता है और आपको मोटी रकम की चपत लगा दी जाती है। इन सबमें सबसे ज्यादा कॉमन फैक्टर है आपके फोन पर आया ओटीपी… यह शेयर करते ही, साइबर ठग आपके बैंक अकाउंट तक पहुँच हासिल कर लेते हैं और उसे खाली कर देते हैं। इसलिए एक सामान्य नागरिक को सदैव इस बात के लिए सावधान रहना है कि वह अपने फोन पर आया ओटीपी कभी भी किसी ऐसे कॉलर से साथ शेयर न करें।ठगी के दूसरे अनेक प्रचलित तरीकों में एक है, आपका भावनात्मक दोहन। इसमें ओटीपी की जगह आइडेंटिटी थेफ्ट का फंडा अपनाया जाता है। आपको पता भी नहीं चलता और कोई आपके सोशल मीडिया प्रोफाइल का क्लोन बनाकर उसके जरिये आपके सारे कॉन्टेक्ट्स तक पहुँच हासिल कर लेता है और आपके नाम से उनसे आर्थिक मदद की गुहार करता है। हालांकि यह तरीका अब ओवर एक्सपोज हो जाने की वजह से बहुत ज्यादा काम नहीं करता, फिर भी इन ठगों को उम्मीद रहती है कि कोई न कोई तो इस भावनात्मक फंदे में फँस ही जायेगा।

यही वजह है कि साइबर ठगी के मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अगर दर्ज मामलों की बात करें तो पिछले पॉंच सालों में ऐसे मामलों की संख्या में 21 गुना बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है। 2020-21 में फायनेंशियल फ्रॉड के 69, 410 मामले दर्ज किये गये थे, जिनमें करीब दो सौ करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की गयी। जबकि 2016-17 के दौरान ये आंकड़े क्रमश: 3,323 और 45.46 करोड़ रुपये का था। बैंकिंग फ्रॉड के बाद सबसे ज्यादा ठगी के मामले क्रमश: ऑनलाइन शॉपिंग और सोशल मीडिया से संबंधित होते हैं।आज देश की करीब आधी आबादी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इंटरनेट का इस्तेमाल कर रही है और इनमें बहुत कम ऐसे होते हैं जो अपनी साइबर सिक्योरिटी को लेकर हर समय सतर्क रह पाते हैं। कोई न कोई कॉल, मैसेज या व्हाट्सएप्प् पोस्ट या नौकरी/शादी/डेटिंग का प्रपोजल हमें चुंबक की तरह अपनी ओर खींच ही लेता है और हम ठगी का शिकार बन ही जाते हैं। इनकी ठगी के शिकारों में भोले-भाले आम लोगों से ज्यादा राजनेता, पुलिस अधिकारी, जज-वकील, शिक्षक, इंजीनियर, डॉक्टर जैसे खासे पढ़े-लिखे और अनुभवी लोग शामिल होते हैं। जिससे पता चलता है कि ठगे जाने का संबंध हमारे ज्ञान या अनुभव से नहीं, बल्कि उस लालच और डर से है जिसका लाभ ठग उठाते हैं और हमें ठगकर चले जाते हैं।

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Bikaner 24X7 News उत्तरदायी नहीं है।

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