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बीकानेर.मरुनगरी बीकानेर में पिछले करीब दस वर्ष से सौहार्द्र की अनूठी अदबी रवायत निभाई जा रही है। यहां दिवाली से पहले आने वाले रविवार को उर्दू रामायण के वाचन का आयोजन होता है। साम्प्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल वाले इस अनूठे कार्यक्रम में रामायण का वाचन मुस्लिम भाइयों की ओर से किया जाता है।

आयोजक उर्दू के व्याख्याता डॉ. जिया उल हसन क़ादरी ने बताया कि तत्कालीन महाराजा गंगासिंह के शासन काल में यहां सार्दुल स्कूल में लखनऊ मौलवी बादशाह हुसैन खां राना लखनवी उर्दू एवं फारसी के शिक्षक थे। उनको शायरी का शौक था। वर्ष 1937 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने तुलसीदास जयंती पर उर्दू पर रामायण की रचना की प्रतियोगिता कराई थी। उस समय मौलवी बादशाह हुसैन खां राना लखनवी के एक कश्मीरी पंडित शिष्य थे। उन्होंने मौलवी राना को इस प्रतियोगिता में भाग लेने को कहा। राना के सहमत होने पर कश्मीरी पंडित ने उन्हें रामचरित मानस सुनाई और वे इसे उर्दू में नज्म के रूप में अनुवाद करते रहे। इस नज्म को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भेजा गया। वहां पूरे देश में इसे प्रथम पुरस्कार मिला। विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में वहां सर तेज बहादुर सप्रू बीकानेर आए और मौलवी बादशाह हुसैन खां राना को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया।

इस रचना को नागरी भंडार में गणमान्य लोगों एवं विद्वानों को सुनाया। एक मुस्लिम द्वारा हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथ को उर्दू भाषा में कविता के रूप में सरलता से संक्षिप्त रूप में ढाल दिया। उनकी इस रचना को काफी सराहा गया। उस वक्त इस नज्म को आठवीं कक्षा में भी पढाया जाता था।

बीकानेर में ही हुआ हिंदी लिपियांतरण
डॉ. कादरी ने बताया कि इस नज्म का हिंदी लिपियांतरण बीकानेर के शाइर लेखक हाजी खुर्शीद अहमद ने शीरो शक्कर के नाम से किया। इस नज्म की मूल प्रति मौलवी राना के शिष्य यहीं के शायर गाजी के पास थी। शाइर अशफाक कादरी ने बताया कि बीकानेर में लोगों को इस बारे में जानकारी मिले, इस उद्देश्य से संस्था की ओर से यह आयोजन दीपावली से पहले जो रविवार आता है उस दिन किया जाता है। यह सिलसिला निरंतर दस साल से चल रहा है।

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