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बीकानेर,कम्प्यूटर, इंटरनेट व स्मार्टफोन के दौर में आज भी शहर में बहीखातों का अस्तित्व बरकरार है। आधुनिकता के रंग में रंगने के बावजूद लोगों ने परंपरा को नहीं छोड़ा है। इसका उदाहरण पुष्य नक्षत्र पर बहीखाता खरीददार है। व्यापारी, बड़े उद्योग के व्यावस्याई या फिर सामान्य कारोबार करने वाले छोट व्यापारी शुभ मुहूर्त में शगुन के बहीखाते खरीदते है। बहीखातों के .महावीर अग्रवाल बताते है कि कम्प्यूटर का प्रचलन बढऩे से अब बहीखाते का युग समाप्त हो गया है। इसके बाद भी पुष्यनक्षत्र के पूर्व लोग शगुन के रूप में खरीदी करते हैं। दशक भर पहले तक बीकानेर मे ंबहीखातों का कारोबार पचास लाख के करीब होता जो अब सिमट कर दस पन्द्रह लाख हो गया है। ज्यादात्तर बहीखाते दिवाली के आस पास ही बिकते है। शहर में बहीखातों की गिनी चुनी दुकानें है जहां कारोबारी शगून के तौर पर बहीखाते खरीदते है । बही-खाता को घुन या कीड़े से बचाने के लिए केवल खास किस्म का कागज ही इस्तेमाल किया जाता है। यह कागज मुंबई से आगे डंडेली इलाके से सप्लाई होता है। ग्राहक समय के साथ बहीखातों का इस्तेमाल व इन्हें तैयार करने वाले कम हुए हैं। इसीलिए इंदौर के खजूरी बाजार में लोग दूर-दूर से बहीखाते खरीदने आते है। किराना व्यापारी धमेन्द्र अग्रवाल ने बताया कि दीपावली बहीखाता का पूजन परंपरानुसार किया जाता है इसे व्यवसायिक लाभ की दृष्टि से शुभमंगल माना जाता है । लक्ष्मी जी के पूजन का आरंभ इसी भाव से होता है कि नुतनवर्ष धनधान्यता के साथ पल्लवित होता रहे । दीपवाली के पूर्व पहला पुष्यनक्षत्र पर परम्परागत तौर पर मारवाड़ी व्यापरी बहीखाते के पूजन से मोहरत कर देता है । धनदेवी श्री महालक्ष्मी जी रिद्धि सिद्धि दातार भगवान गणेश जी के नाम पर बहीखाता पूजन किया जाता है।

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