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बीकानेर,किसी भी कार्य में जब हमारी रूचि होती है, वह कार्य हमारे लिए सुगम बन जाता है। बगैर रूचि के किया गया कार्य ना सफल होता है, ना आसान होता है। इसलिए शास्त्रकार कहते हैं कि शास्त्र श्रवण से पहले हमारे अंदर उसके प्रति रूचि होनी चाहिए। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने श्रावक-श्राविकाओं को यह सद्ज्ञान सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में अपने चातुर्मास प्रवास के दौरान नित्य प्रवचन में दिया।
महाराज साहब ने फरमाया कि   गीतिकारों ने कहा है कि मानव अलग-अलग रूचि के होते हैं। किसी की खेल में, किसी की व्यापार में और किसी की कोई ओर कार्य में रूचि रहती है। यह मानव के व्यवहार पर निर्भर करती है। आचार्य श्री ने स्वयं की रूचि शास्त्र श्रवण में बताते हुए कहा कि जो रूचिपूर्वक शास्त्र श्रवण करता है, उसके लिए यह वरदान बन जाता है। इसलिए सत्संग में, प्रवचन में रूचि जगाइए।
आचार्य श्री ने श्रावक की गुरुभक्ति का प्रसंग सुनाते हुए बताया कि गुरु की दृष्टि से श्रावक के कष्टों का निवारण हो जाता है। शास्त्र श्रवण ही नहीं रूचिपूर्वक सुना गया प्रवचन भी फलदायी, पुण्यकारी होता है। एक श्रावक नित्य प्रवचन में जाता था। एक दिन वह प्रवचन सुनने के लिए जा रहा था कि रास्ते में कार से बाइक टकरा गई। इसके बाद उसके पैरों में भंयकर चोट आई, डॉ. ने जांच के बाद ऑपरेशन के लिए कहा। श्रावक ने गुरु जी से आशीर्वाद लेने पहुंचे और आपबीती बताई। इस पर गुरु ने जहां चोट लगी, वहां दृष्टि डाली और कहा कि तीन दिन तक आराम कर लो, ऑपरेशन की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी। महाराज साहब ने कहा कि तीन दिन में युवक बगैर किसी चिकित्सा के स्वस्थ हुआ तो  डॉ. भी हैरान रह गए। आचार्य श्री ने कहा कि मन में श्रद्धा और विश्वास हो, प्रवचन की रूचि हो तो विपदा भी टल जाती है।
नित्य प्रवचन का श्रवण करो
आचार्य श्री ने फरमाया कि प्रवचन सुनने से कौनसी बात कब लग जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। आचार्य आसकरण जी छोटी- साधु, बड़ी साधु कहा करते थे, इक वचन सद् गुरु कहणो, यह भजन मेरे माता-पिता भी गाया करते थे। मैं भी खूब सुना करता था। धीरे-धीरे यह रूचि बढ़ती गई। महाराज साहब ने कहा कि शास्त्र श्रमण की पहली भूमिका, पहली पात्रता है रूचि होना, बगैर रूचि के भोजन भी अच्छा नहीं लगता है। हमारा आचार-विचार, व्यवहार रूचि की बुनियाद पर हमारी यह इमारत टिकी है। इसलिए कहते हैं, मानव रूचिशील कहलाता है। महाराज साहब ने कहा कि रूचि अगर सुरूचि बन जाए तो शास्त्र श्रमण करने का आनन्द आता है, बुरे कर्मों का क्षीण हो जाता है, पुण्यशाली हो जाता है। आचार्य श्री ने भजन ‘खुद को पहचाने, खुदा वह बन गया, फिर निरविकारी आत्मज्ञाता बन गया, स्वयं ज्योतिपुंज तू परमात्मा, सत्य को जाना वही शिव बन गया। खोल चक्षु देख अंतर जग यहां, मोह-बंधन तोड़ भव से तिर गया’ सुनाकर भजन के भावों को अभिव्यक्त किया।
भीलवाड़ा  संघ ने लिया आशीर्वाद
श्री शान्त-क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि शनिवार को भीलवाड़ा, नासिक और अन्य स्थानों से श्रावक-श्राविकाओं का संघ महाराज साहब के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद  लेने पहुंचा। भीलवाड़ा के श्रावकों ने आगामी समय में आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. से भीलवाड़ा में पधारने और धर्म-ध्यान का लाभ देने का आग्रह किया। इस अवसर पर बीकानेर संघ की ओर से आगंतुकों का सम्मान किया गया।

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