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बीकानेर,कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस से बाहर होने के साथ ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ताजा बयान ने एक बार फिर से राजस्थान में राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है. दरअसल, अशोक गहलोत ने रविवार को कहा कि इस बात पर मंथन किया जाना चाहिए कि राज्य में नए मुख्यमंत्री के नाम पर विधायकों में नाराजगी क्यों है.अशोक गहलोत ने कहा कि जिन्होंने हमारी सरकार बचाई, उन्हें मैं धोखा नहीं दे सकता.

अशोक गहलोत ने कही ये बात

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने कहा कि राजस्थान में नए मुख्यमंत्री की नियुक्ति किए जाने पर 80 से 90 फीसदी विधायक पाला बदल लेते हैं और वे नए नेता के साथ हो जाते हैं, जिसको मैं भी गलत नहीं मानता. लेकिन, राजस्थान में ऐसा नहीं हुआ.सचिन पायलट का नाम लिए बिना गहलोत ने कहा कि जब नए मुख्यमंत्री के आने की संभावना थी तो क्या कारण था कि उनके नाम से ही विधायक बुरी तरह से भड़क गए,जो आज तक कभी नहीं हुआ.नौबत क्यों आई कि विधायक भड़क गए?

राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ऐसी नौबत क्यों आई कि विधायक भड़क गए? जब हमारे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने विधायकों से कहा कि चलो एक प्रस्ताव आया है उसे पास करवाना है, उसका कोई कायदा होता है. इस पर विधायक भड़क गए और बोलने लगे कि हमने इस्तीफा दे दिया, हमने ये कर दिया. इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष ने विधायकों से कहा कि अशोक गहलोत फिर अध्यक्ष पद का फॉर्म नहीं भरेंगे. विधायकों ने कहा कि ना भरे फॉर्म. जैसलमेर के अंदर हमारे अभिभावक थे, लेकिन अब हमारा अभिभावक दिल्ली जा रहा है.

हम सब में कमियां हैं, उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिएगहलोत ने अपने त्यागपत्र सौंपने वाले अपने वफादारों का बचाव करते हुए कहा कि 102 विधायक ऐसे थे, जिन्होंने 2020 के विद्रोह के दौरान उनकी सरकार को बचाया था. मैं उन्हें कैसे धोखा दे सकता हूं? इसलिए मैंने सोनिया गांधी से माफी मांगना स्वीकार किया. उन्होंने एक निवर्तमान सीएम के साथ बड़ी संख्या में विधायकों के पक्ष लेने की घटना को ऐतिहासिक करार दिया. अशोक गहलोत ने कहा कि हम सब में कमियां हैं, उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए. हमारे लिए राजस्थान में सरकार बनाना जरूरी है.

आलाकमान को लेना है निर्णय

राजस्थान में ऑल इज वेल के सवाल पर गहलोत ने कहा कि मैं तो अपना काम कर रहा हूं. मेरा मानना है काम करते करते जाओ. जो भी निर्णय लेना है, उसे अलाकामान को करना है. मैंने तो सोनिया गांधी से जाकर माफी मांग ली, 50 साल के इतिहास में पहली बार एक लाइन का प्रस्ताव पारित नहीं करवा पाया. प्रस्ताव पारित नहीं करवाने का दुख आज भी है और रहेगा.

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