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बीकानेर,राजस्थान में फिर से उपजे सत्ता संघर्ष से पूरे प्रदेश और देश में कांग्रेसी सकते में हैं। बीकानेर के तीन मंत्री डा. बी डी कल्ला, भंवर सिंह भाटी और गोविंद चौहान घोषित रूप से गहलोत गुट के साथ है। ऐसा नहीं है कि बीकानेर में पायलट गुट से वास्ता नहीं है। पायलट गुट या गहलोत विरोधी समय के इंतजार में बैठे हैं। रामेश्वर डूडी, राज कुमार किराडू समेत कई लोगों का पायलट से वास्ता है। अब राजस्थान में गहलोत पायलट के बीच टकरार निर्णायक मोड़ पर है। अशोक गहलोत की सोनिया गांधी के साथ मुलाकात से संकट का समाधान नहीं हुआ है, बल्कि गुत्थी और उलझ गई है। ऐसे में जो भी निर्णय होना है उसके व्यापक और दूरगामी दुष्प्रभाव पार्टी और नेताओं के राजनीतिक जीवन पर होने हैं। वैसे राजस्थान कांग्रेस के मुंह पर तो कालिख पुत गई है। इसका कांग्रेस पार्टी और कार्यकर्ताओं पर ही नहीं पूरे देश में निराशाजनक संदेश गया है। इससे ज्यादा राजस्थान की जनता को निराशा हुई है। इस घटनाक्रम से पूरे प्रदेश में प्रशासनिक व्यवस्था में ठहराव आ गया है। अफसर शाही किम कर्तव्य विमुढ की स्थिति में है। सरकार के काम काज ठप्प है। जनता का कोई सुनने वाला नहीं है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार पिछले सत्ता संघर्ष और कोरोना अभी उबरी ही है और फिर वो ही खेल शुरू हो गया। इसका जनता को कितना खामियाजा भुगतना पड़ रहा है किसी को चिंता नहीं है। प्रदेश में विकास की बात तो दूर जन जीवन कठिन होता जा रहा है। पहले से ही अफसर शाही हावी है। फिर इस कमजोर सरकार से क्या उम्मीद कर सकते हैं ? लोकतंत्र में जनता की चुनी हुई सरकार अपनी ही पार्टी में सत्ता संघर्ष से जनता का भला कैसे कर पाएगी। कांग्रेस की तो नाक ही कट गई है। राजस्थान में सत्ता पाने का यह खेल कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व की अयोग्यता का नमूना है। सवाल यह है कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को राजनीतिक दल लोकतांत्रिक तरीके से क्यों नहीं चलने देते ? कोई आलाकमान चाहे कांग्रेस, बीजेपी या अन्य पार्टी के वे जनता से ऊपर क्यों है? सरकार तो जनता ने चुनी है। पार्टी आलाकमान ने नहीं। फिर सरकार बनाने का निर्णय आलाकमान क्यों लेता है? वे अपनी पार्टी और संगठन का निर्णय लें। चुनी सरकार के काम में दखल क्यों देते है? यही लोकतंत्र की दुर्दशा के कारण हैं। नेता सत्ता के लिए लड़ते हैं और जनता दुखी है…।

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