बीकानेर,जब कभी भी जीवन में परिवर्तन आता है, उसमें सम्यक ज्ञान की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है। जीवन में परिवर्तन सम्यक ज्ञान ही लाता है। सम्यक ज्ञान किसी का मत बदले, ना बदले मन बदलता है। मन बदलता है तो बुद्धी बदलती है और बुद्धी से हद्धय बदलता है, हद्धय के बदलाव से जीवन बदल जाता है। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने गुरुवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में नित्य प्रवचन के दौरान यह बात कही। आचार्य श्री साता वेदनीय कर्म के आठवें बोल सम्यक ज्ञान में रमण करता जीव साता वेदनीय कर्म के बंध का उपार्जन करता है की अंतिम देन जीवन में परिवर्तन विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि संसार में मत बहुत है लेकिन सम्यक ज्ञान का विश्वास मत बदलने में नहीं मन बदलने में है, इस ज्ञान के जागरण से जीवन की दिशा और दृष्टि बदल जाती है तो दशा बदलते देर नहीं लगती।
मानव की परिभाषा क्या ..?
आचार्य श्री ने श्रावक-श्राविकाओं से पूछा कि मानव की परिभाषा क्या है..?, फिर इसका उत्तर देते हुए बताया कि जो दूसरों के दुख में काम आए, उनके दुख-दर्द- पीड़ा को समझे और झेलता है। वह सही अर्थ में मानव है। ऐसी भावना जब मन में आती है, हम सही अर्थ में सच्चे इंसान बन जाते हैं। ऐसी इच्छा हमारे मन में जागृत होनी चाहिए कि भविष्य में हम इंसान बनेंगे तब बनेंगे लेकिन वर्तमान में इंसान बन जाएं तो बहुत बड़ी बात है। इसका एक ही मार्ग है और वह सम्यक ज्ञान है।
सच्चे इंसान के गुण क्या..?
सच्चे इंसान के गुण बताते हुए आचार्य श्री ने कहा कि मेरे से कोई कष्ट ना पावे, अपितु में किसी के कष्टों को हर लूं, यह भावना ही सच्चा इंसान बनाती है। महाराज साहब ने भजन किसी के काम जो आए, उसे इंसान कहते हैं, पराया दर्द अपनाए, उसे इंसान कहते हैं, की पंक्तियों को गाते हुए कहा कि यह भजन दिल को छूने वाला है। इसकी एक-एक पंक्ति सत्य है। आपके दिल को छुए ना छुए मेरे दिल को छूने वाला है। हर इंसान के जीवन में मुश्किल आती है। सांस-संयम-धैर्य, यह संतुलन जो रखता है, वह सुख और दुख में समान रहता है। जो संतुलन नहीं रखते वह सुख में फूलने लगते हैं और दुख में झूलने लगते हैं। सच्चा, जागृत इंसान किसी दायरे में नहीं बंधा होता है। वह नर भी हो सकता है तो नारी भी हो सकती है। वह बुढ़ा, जवान या बच्चा भी हो सकता है। इस संबंध में आचार्य श्री ने एक बच्ची के मन में दया के भाव पैदा होने वाला एक सत्य प्रसंग बताया।
भाव जागृत होने चाहिए
आचार्य श्री ने कहा बंधुओ- हमें हमारी बुद्धी प्रतिकार और तिरस्कार में नहीं लगानी चाहिए। किसी ने यह कह दिया, किसी ने वो कह दिया, इन बातों में ध्यान नहीं देकर अपना काम करना चाहिए, यह संसार है। इसमें यह सब चलता रहता है। पुज्य गुरुवर कहते थे कि दुनिया का काम है कहना, वह तो कहेगी। आप भी यह ध्यान रखो, जो कहते हैं, उन्हें कहने दो। बस उसका प्रतिकार मत करो। क्योंकि यह दुनिया खाए बिना रह सकती है, बोले बिना नहीं रह सकती। इसलिए जैसा हमें अच्छा लगे, वैसा हमें करना चाहिए। जीवन नहीं बदलने का कारण भी यही है। काम- क्रोध- प्रतिशोध मन में रहता है। यही कारण है कि हम सुनते जरूर हैं लेकिन इस कान से सुनकर, उस कान से निकाल देते हैं। जीवन में धारण नहीं करते हैं। आज हमारी कथनी और करनी में अन्तर है, यह जीवन में सच्चाई नहीं लाता, अच्छाई को नहीं लाता, सम्यक ज्ञान को नहीं लाता है।
ज्ञान चालीसा का किया वाचन
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज ने बताया कि बीकानेर चातुर्मास से पूर्व रानीबाजार स्थित सुराणा भवन में स्वाध्याय और मौन के वक्त उन्होंने ज्ञान चालीसा का लेखन किया। इस चालीसा का वाचन आचार्य श्री ने सम्यक ज्ञान विषय के बाद प्रवचन के दौरान किया। प्रवचन से पूर्व भजन किसी के काम जो आए, उसे इंसान कहते हैं, पराया दर्द अपनाए, उसे इंसान कहते हैं, कभी धनवान है कितना, कभी इंसान निर्धन है, कभी सुख है, कभी दुख है, इसी का नाम जीवन है, जो मुश्किल में ना घबराए, उसे इंसान कहते हैं। सुनाकर इसके भावार्थ श्रावक-श्राविकाओं को बताए। संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि प्रेमदेवी तातेड़ की 22 की तपस्या गतिमान है। उन्होंने आचार्य श्री से आगे भी भाव होने और तपस्या का क्रम जारी रखने का आशीर्वाद लिया।
णमोत्थुंण में सौ जोड़ों ने किया सामूहिक जाप
बीकानेर। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि संघ के आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. के 64 वें जन्मोत्सव पर अष्ट दिवसीय विजय जन्मोत्सव कार्यक्रम की शुरूआत गुरुवार को सजोड़े णमोत्थुंण जाप से हुई। दोपहर 1.30 से 3.00 बजे तक चले जाप कार्यक्रम में सौ जोड़े पति-पत्नी ने प्रभु की स्तुति की, इस जाप से रोग, शोक, पाप, दोष हटते हैं और ज्ञान की प्राप्ती होती है।