बीकानेर,संसद की एक समिति ने कोरोना संक्रमण का भयावह दौर गुजर जाने के बाद भी स्कूल नहीं खोले जाने पर चिंता जताई है। संसदीय समिति ने कहा कि वैश्विक संक्रामक कोविड-19 महामारी के कारण लंबे समय तक बंद रहने के बाद स्कूलों को दोबारा नहीं खोलने के खतरों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
इसके साथ ही समिति ने स्कूल फिर से खोले जाने के फैसले से पहले कई तरह के अहम सुझाव और दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। समिति ने पाया है कि स्कूलों के बंद होने से न केवल परिवारों के सामाजिक ताने-बाने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, बल्कि इससे घर के कामों में बच्चों की भागीदारी भी बढ़ी है।
संसदीय समिति के अनुसार, एक साल से अधिक समय से स्कूलों के बंद होने से छात्रों की सेहत, विशेष रूप से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है।स्कूल नहीं खोलने के खतरों को नजरअंदाज करना बहुत गंभीर है। स्कूल जाने में असमर्थ होने के कारण छोटे बच्चों को घर की चार दीवारों के भीतर कैद करने से माता-पिता और उनके बच्चों के बीच संबंध प्रतिकूल रूप से बदल गए हैं।
इससे सामाजिक ताने-बाने को नकारात्मक तरीके से प्रभावित किया है, जिससे बाल विवाह बढ़े हैं और घर के कामों में बच्चों की भागीदारी बढ़ी है। समिति ने कहा कि वर्तमान स्थिति ने सीखने के संकट को बढ़ा दिया है, जो कि महामारी से पहले भी मौजूद था। इससे बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, समिति ने महसूस किया है कि स्कूलों को खोलना और भी जरूरी हो जाता है।
समिति ने अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की गौरतलब है कि सांसद विनय सहस्रबुद्धे के नेतृत्व में इस सप्ताह शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की। रिपोर्ट में लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद होने से सीखने की कमी को दूर करने की योजना के साथ-साथ ऑनलाइन और ऑफलाइन निर्देशों और परीक्षाओं की समीक्षा और स्कूलों को फिर से खोलने की योजना पर विचार रखे गए। समिति ने कहा कि मामले की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए और स्कूलों को खोलने के लिए संतुलित तर्कपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
समिति ने की ये सिफारिशें
समिति द्वारा स्कूलों को फिर से खोलने के संबंध में की गई की सिफारिशों में सभी छात्रों, शिक्षकों और संबद्ध कर्मचारियों के लिए वैक्सीन कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, ताकि स्कूल जल्द से जल्द सामान्य रूप से काम करना शुरू कर सकें; शारीरिक दूरी का पालन करने और हर समय फेस मास्क पहनने, बार-बार हाथ साफ करने आदि के साथ-साथ कक्षा कक्षों में छात्रों की संख्या कम करने के लिए वैकल्पिक दिनों या दो पारियों में कक्षाएं आयोजित करना; उपस्थिति के समय नियमित थर्मल स्क्रीनिंग और किसी भी संक्रमित छात्र, शिक्षक या कर्मचारियों को तुरंत पहचानने और अलग करने के लिए रेनडम आरटी-पीसीआर परीक्षण करना हैं। इनके साथ ही प्रत्येक स्कूल में किसी भी घटना से निपटने के लिए प्रशिक्षित कर्मियों के साथ कम से कम दो ऑक्सीजन कंस्ट्रेटर भी होने चाहिए और बाहरी चिकित्सा सहायता पहुंचने तक प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था होनी चाहिए।