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बीकानेर,वैसे तो इस देश मे हर समाज का एक अपना संगठन समाज कल्याण के लिए,देश के हर गाँव से लेकर शहर राज्य,राष्ट्रीय स्तर तक बने हुवे है,हर समाज के अपने अपने संस्कार,रीति रिवाज है,और उनका वे अनुशरण भी करते है,आज हमारे ब्राह्मण समाज के भी गाँव से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर अनेक संगठन बने हुवे है,और कुछ संगठनों में मुझे काम करने का अवसर भी मिला है और इस अवसर के अनुभव के हिसाब से ही मुझे बहुत ऐसी कमियां नजर आई या यूं कह दे कि मुझे खटकने लगी । बंधुओ ब्राह्मण की पहली पहचान उनके यज्ञोपवीत,सीखा,तिलक से होती है,किन्तु आज आप देश,राज्य,जिला,गांव स्तर पर संचालित हो रहे ब्राह्मण समाज के संगठनों का नेतृत्व करने वालो को ही देख लीजिए,ये तीनो पहचान आपको दिखाई नही देगी,फिर होती है ब्राह्मण की पहचान उनके खान पान से होती है,किन्तु बड़ा खेद होता है कि एक राष्ट्रीय स्तर के ब्राह्मण समाज के सम्मेलन में खाने की व्यवस्था में लहसुन,प्याज का जमकर इस्तेमाल,बंधुओ ब्राह्मण किसे कहते है,जो दूसरों को दिशा,निर्देश,मार्गदर्शन दे वो है ब्राह्मण । हम दूसरों को कहते है कि लहसुन,प्याज तामसी प्रवर्ति के होते है जो निषेध है और ब्राह्मण के खुद के सामूहिक भोज में लहसुन,प्याज फिर कोई सिगरेट का सोखी,कोई शराब की बोतल खोलकर अपनी शान का प्रदर्शन करता है,क्या ऐसे लोगो से ब्राह्मण कल्याण की उम्मीद की जा सकती है,कतई नही ।

बड़े ही शर्म की बात है कि आज हमें बाहरी यात्रा में जाने के बाद किसी होटल पर जाकर यह कहना पड़ता है कि हमे जैन थाली चाहिए,क्यो न हम गर्व से ये नही कह सकते कि हमे ब्राह्मण थाली चाहिये,दोस्तो जो खुद संस्कार विहीन होते है वो क्या किसी संगठन का नेतृत्व करते हुवे किसी को मार्गदर्शन देंगे,ये ही कारण है कि हम इस देश मे बहुतायत में होते हुवे भी जमीनी कमजोर हो गये ।

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