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बीकानेर,श्री श्री 1008 सींथल पीठाधीश्वर महंत क्षमाराम जी महाराज व्यासपीठ पर विराजित होकर गोपेश्वर- भूतेश्वर महादेव मंदिर में चल रही श्राद्ध पक्षीय श्रीमद् भागवत कथा का वाचन कर रहे हैं। कथा का मंगलवार को चौथे दिन रहा, जहां महंत जी ने   महाराज परीक्षित के परमधाम में जाने से पूर्व के एवं महाराज परीक्षित की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि वह कलिकाल के प्रभाव से  ऋषि के गले में मरे हुए सर्प की माला डालने से श्रापित हुए थे। भागवत कथा के श्रवण से ही वे परमधाम को प्राप्त हुए। सुखदेव जी ने महाराज परीक्षित को कथा सुनाने का कारण बताया तो कहते हैं कि उन्होंने कांपते हाथों को जोडक़र प्रणाम करते हुए कहा कि आज पता चला भगवान श्रीकृष्ण की मुझ पर बड़ी कृपा है। यह सब भगवान की कृपा है। महंत जी ने बताया कि ज्ञान को आदमी कहीं पर भी प्राप्त कर सकता है। महाराज परीक्षित की मुक्ति के लिए गंगा तट पर सात दिन तक सुखदेव महाराज ने परीक्षित को श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण कराया था। इस कथा को सुन राजा परीक्षित परमधाम में गए। क्षमाराम जी ने सगुण और निर्गुण में भेद बताए। उन्होंने बताया  कि भगवान का जो मूर्त रूप है, उसे सगुण कहते हैं और जो अमूर्त या निराकार रूप है, उसे निर्गुण कहते हैं। भागवत कथा के बारे में बताते हुए कहा कि यह मन के विकारों को दूर करने वाली है। यह हमें सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। भागवत कथा करने वाले को एकदम खुली बात कहनी चाहिए। निर्भिक, निष्पक्ष होना चाहिए। वक्ता को दुखी करने के हिसाब से नहीं कायदे के हिसाब से बात कहनी चाहिए। वक्ता ऐसा होना चाहिए जो केवल भागवत पर दृष्टि रखे। कौन आया, नहीं आया, क्या मिला, नहीं मिला, इन बातों से उसे कोई सरोकार नहीं होना चाहिए। कथा में महंत जी ने विदुर और युधिष्ठर  तथा विदुर और धृतराष्ट्र के मध्य हुए संवाद का विस्तृत वर्णन किया।
कथा श्रवण को लेकर उत्साह का माहौल
गोपेश्वर-भूतेश्वर महादेव मंदिर में कथा श्रवण के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं व पुरुष पधार रहे हैं। उनके लिए शीतल जल, चाय और नाश्ते की व्यवस्था तथा बैठने के लिए विशाल डोम लगाया गया है। जहां, समिति सदस्यों सहित धर्मप्रेमी बंधु कथा श्रवण करने वालों की सेवा में पलक-पावड़े बिछाए हुए हैं। आवागमन के लिए बसों की व्यवस्था भी सुचारु रूप से जारी है।

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