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बीकानेर,राजस्थान में एक समय बहुत सामान्य दिखाई देने वाला और सुविधाओं के अभाव के साथ-साथ छात्रों के नामांकन में कमी की चुनौतियों का सामना कर रहा एक सरकारी स्कूल आज न केवल आकर्षक विद्यालय के रूप में पहचान बन चुका है।बल्कि यहां नामांकन में भी खासी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। राजस्थान के अलवर जिले के साहोडी गांव स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय की, जिसमें दीवारों पर पेंसिल और किताबों के डिजाइन वाली रंग-बिरंगी चित्रकारी की गई है और इसने न केवल अपने विद्यार्थियों को, बल्कि उनके अभिभावकों को भी आकर्षित किया है और विद्यालय में नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।

दो वर्षों में नामांकन लगभग दोगुना हो गया

स्कूल की दीवारों, उसकी कक्षाओं में पेंसिल, अक्षर, किताबें और प्रेरणादायक उद्धरण चित्रित हैं और पानी की टंकी को एक रंगीन आकर्षक बोतल का आकार देकर एक नया रूप दिया गया है। जिससे विगत दो वर्षों में नामांकन लगभग दोगुना हो गया है। राजस्थान में केवल यही एकमात्र स्कूल नहीं है, जिसने अपनी अलग पहचान बनाई है, बल्कि ऐसे सैकड़ों सरकारी स्कूल हैं, जिन्होंने अपनी अनूठी डिजाइन के साथ एक अलग जगह बनाई है। उन स्कूलों में न केवल नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, बल्कि स्वच्छता, अनुशासन और अध्ययन के माहौल जैसे अन्य पहलुओं में भी सुधार हुआ है। इन स्कूलों का कायाकल्प दानदाताओं, संगठनों के साथ साथ सरकारी फंड से भी किया जा रहा है।

शुरुआत से नहीं थी स्कूल की अच्छी स्तिथि

बता दें, साहोडी के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय की प्रधानाचार्य किरण ने बताया, “जब मैंने प्रिंसिपल का पद संभाला था, तब स्कूल की इमारत अच्छी स्थिति में नहीं थी।” उन्होंने बताया, ”विद्यालय में प्रवेश करने से पहले ही भवन का आकर्षण मन मोह लेता है। दीवारों का आकर्षक ढंग से रंग-रोगन किया गया है और पीने के पानी की टंकी को रंगीन बोतल का आकार दिया गया है। सीखने के लिए सीढ़ियों को वर्ण अक्षरों से रंगकर तैयार किया गया है।” उन्होंने कहा, ”विद्यालय परिसर में एक सेल्फी प्वाइंट भी बनाया गया है, जो छात्रों को आकर्षित करता है और शिक्षा के ‘पंख’ लगाकर उन्हें ऊंची उड़ान भरने के लिए प्रेरित करता है।”

2016 में हुई थी योजना की शुरुआत

वही, सहगल फाउंडेशन द्वारा स्कूल के जीर्णोद्धार और कायाकल्प पर लगभग 40 लाख रुपये की राशि खर्च की गई, जिसमें ग्रामीणों ने भी मदद की। विद्यालय की प्रिंसिपल ने बताया कि “स्कूल के जीर्णोद्धार के बाद नामांकन में काफी वृद्धि हुई है। यह लगभग दोगुना है। स्कूल के जीर्णोद्धार ने स्कूल में अनुशासन, पढ़ाई और साफ सफाई का माहौल बनाने में मदद की है। उन्होंने बताया कि इस साल पांच अगस्त को स्कूल को स्वच्छता में राज्य-स्तरीय पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया था।

अलवर जिले में कई अन्य स्कूल हैं, जिन्हें एक अभिनव तरीके से पुनर्निर्मित किया गया है। अलवर के सरकारी विद्यालयों के भवनों को नयी पहचान देने वाले शिक्षा विभाग में कार्यरत इंजीनियर राजेश लवानिया ने बताया, ” जिले के एक अन्य स्कूल की कक्षाओं को ट्रेन के डिब्बे के आकार में बनाया गया है और विद्यार्थियों में पढने की रुचि पैदा करने के लिए दीवारों को नीले रंग से रंगा गया है। वहीं अन्य विद्यालयों को बस, हवाई जहाज, पानी के जहाज के आकार में कक्षाओं के कमरे बनाकर ‘बच्चों के मनोनुकूल’ बनाने का प्रयास किया गया है।” उन्होंने कहा, ”इससे सभी विद्यालयों में नामांकन बढ़ा है। इसका असर न सिर्फ पढ़ाई में दिख रहा है, बल्कि अनुशासन और साफ-सफाई के मामले में भी सकारात्मक बदलाव साफ नजर आ रहा है।”

आम जनता से शानदार प्रतिक्रिया मिली थी

इसी के साथ उन्होंने बताया, “2016 में एक परियोजना, जिसमें कक्षाओं को ट्रेन के डिब्बों की तरह चित्रित किया गया था, वह पहली ऐसी परियोजना थी, जिसे छात्रों, अभिभावकों और आम जनता से शानदार प्रतिक्रिया मिली थी। तब से जनता, शिक्षकों, गैर-सरकारी संगठनों और कंपनियों के योगदान से सैकड़ों स्कूलों का विकास किया गया है। इन स्कूलों में सरकारी फंड का इस्तेमाल बुनियादी संरचनाओं के विकास के लिए किया जाता है। वहीं निजी फंडिंग का इस्तेमाल स्कूल को आकर्षक बनाने की दृष्टि से ‘इनोवेटिव आइडिया’ लागू करने के लिए किया जाता है। लवानिया ने कहा कि इस तरह की कवायद से औसतन नामांकन में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

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