बीकानेर। जैन महासभा की ओर से रविवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी मे 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. के सानिध्य में समस्त जैन समाज के अनुयायियों की ओर से क्षमापना एवं तप अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम में समस्त समाज के प्रतिनिधियों ने सभी से अनजाने में मन, वचन और काया से किसी प्रकार की कोई असाता (दुख) पहुंचाई है। उसके लिए क्षमा मांगी और चातुर्मास काल में तप- अराधना करने वाले श्रावक-श्राविकाओं का सम्मान महासभा की ओर से माला पहनाकर एवं प्रशस्ति पत्र देकर अनुमोदना की गई। इस अवसर पर श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने अपने संबोधन में कहा कि आज का प्रसंग ना केवल बीकानेर के लिए बल्कि पूरे भारत वर्ष के लिए प्रेरणा का प्रसंग है। उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ जी की एक सुक्ति का उच्चारण करते हुए विस्तार करुंगा। आचार्य महाप्रज्ञ ने ‘ओरों की भूलों को भूलें हम, अपनी भूल सुधारें हम, कभी ना करता मैं गलती, इस अहम वृति को मारें हम’। हर व्यक्ति यह सोचता है कि मैं गलती करता नहीं, गलती कोई और करे तो मैं गलती क्यों मानूं, आचार्य श्री ने कहा कि मानव छद्म वेश है। इनमें काम- दोष, लोभ, मोह, माया भरे हैं। इन दोषों से आत्मा दुष्ट बन जाती है। दुष्ट से हम शिष्ट बनें और शिष्ट से विशिष्ट बन सकते हैं। इसलिए जीव मैत्री, जिन भक्ति और जीवन शुद्धी हमारे दर्शन का सार है। जीवन शुद्धी चाहने वाले जिन भक्ति करेंगे ही करेंगे। महाराज साहब ने कहा कि मानव भूल का पात्र है। यह गलतियों का पुतला है। अरे, हम तो क्या महापुरुषों से भी गलतियां हुई है। लेकिन उन्होंने उसका प्रायश्चित इतनी सहजता और सरलता से करते थे। लेकिन आज कोई इस प्रकार से प्रायश्चित नहीं कर सकता। हम जिनके साथ हमारा बैर- विरोध होता है, उससे क्षमा मांगते नहीं, लेकिन जिनसे कोई बैर ही नहीं उनसे खम्मत खामणा करते हैं, मिच्छामी दुड्डकम बोलते हैं। क्यों, इसलिए कि हमारे अंदर अहंकार रहता है और हम क्षमा करने और मांगने से दूर रहते हैं। आचार्य श्री ने कहा कि संसार में भूल सबसे होती है लेकिन क्षमापना समाधान का घर है। हम समाधान को जीवन में अपनाने की कौशिश करें। तप करने वालों को आचार्य श्री ने गीतिका ‘सौ- सौ साधुवाद, सौ-सौ साधुवाद जिसने तप में शक्ति लगाई है गीत के माध्यम से आशीर्वाद दिया।
इन्होंने दिया संबोधन
साध्वी सौम्यादर्शन जी म.सा. ने अपने संबोधन में कहा कि आज का यह प्रसंग हमारे लिए प्रेरणा लेकर आया है। दो प्रसंग- एक क्षमापना और दूसरा तपस्वियों का अनुमोदन , क्षमापना शब्द में कितनी प्रेरणा है। जिसने सभी को एक साथ, एक स्थान पर तपस्वियों, साधु- महासती को लाकर खड़ा कर दिया है।
साध्वी पद्मश्रीजी म.सा. ने कहा कि राग-द्वेष की गांठे खुलती है जहां, धर्म होता है वहां। हमारे रिश्ते आत्मियता के होने चाहिएं औपचारिकता के नहीं।इससे भावों में विशुद्धी आती है। साध्वी श्री जी ने क्षमापना के शाब्दिक अर्थ की व्याख्या भी की।
साध्वी मृगावतीश्रीजी म.सा. ने कहा कि पर्वराज पर्युषण हमें उच्चतम आदर्श प्राप्त करने के लिए हुआ है। क्षमापना जो कटुवचन सुनकर भी कुछ नहीं करता, वास्तव में वह ही अराधक है। तप करना बहुत मुश्किल है। सरल हद्धय से रहो, किसी से बैर नहीं होगा तो क्षमा करने या मांगने की भी जरूरत नहीं रहेगी।
अनुत्तर मुनि जी म.सा. ने कहा कि क्षमा के भाव को धारण कर लें, क्षमापना दिवस पर मन, वचन, कर्म से प्रायश्चित कर लें, क्षमा मांग लें, क्षमा की शुरूआत घर से करिएगा।
मुनि श्री जितेन्द्र कुमार ने कहा कि जैन धर्म को क्षमा का क्षमा का शस्त्र हासिल है, वह अन्य किसी धर्म में संभवत: नहीं है। भगवान महावीर ने कहा है, तुम किसी को अपना शत्रु मानो ही मत, उन्होंने क्षमा सूत्र को जीवन में अंगीकार किया और हमें भी यही शिक्षा देते हैं। हालांकि क्षमा कहने में और अंगीकार करने में बहुत अंतर है। यह इतना आसान नहीं लेकिन प्रयास किया जाना चाहिए।
इन्होंने किया संबोधित
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि जैन महासभा की ओर से अध्यक्ष लूनकरण छाजेड़ ने स्वागत भाषण दिया। साथ ही महासभा की ओर से आरंभ से लेकर अब तक के किए गए कार्यों और प्रयासों की जानकारी सभा को दी। दिगंबर जैन महासभा के धनेश जैन, श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ श्री संघ के विकास सिरोहिया, श्री जैन श्वेतांबर, खरतरगच्छ श्रीसंघ के अजीतमल खजांची, जैन श्वेताम्बर पार्श्वचन्द्र सुरिश्वर गच्छ के सुरेन्द्र बांठिया, श्री जैन रत्न हितेषी श्रावक संघ के इन्द्रमल सुराणा, श्री ज्ञानगच्छ श्रावक संघ के चम्पकमल सुराणा, हुक्मगच्छिय शान्त क्रान्ति संघ, गंगाशहर के मेघराज सेठिया, हुक्मगच्छिय शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के विनोद सेठिया, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, गंगाशहर के अमरचंद सोनी, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के प्रतिनिधि सुरेश बैद, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, भीनासर के पानमल डागा ने क्षमापना पर्व की महत्ता पर प्रकाश डाला एवं जाने-अनजाने में मन-वचन- काया से हुई किसी प्रकार की भूल के लिए सभी से क्षमा प्रार्थना की। शान्त क्रान्ति संघ की महिला मंडल द्वारा मंगलाचरण नवकार मंत्र की प्रस्तुती दी गई। दर्शना बांठिया ने आचार्य विजयराज जी महाराज साहब के जन्मोत्सव पर होने वाले आठ दिवसीय कार्यक्रम की जानकारी दी। कार्यक्रम कें अंत में धन्यवाद ज्ञापित जैन महासभा बीकानेर के सुरेन्द्र बद्धानी द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। संचालन जितेन्द्र कोचर ने किया।