बीकानेर.दो साल तक मानव जाति ने कोरोना का दंश भोगा। अभी भी वह पूरी तरह से गया नहीं है, लेकिन गुजरे दो साल में कोरोना महामारी ने पूरेे विश्व को जिस तरह का जख्म दिया है, उसका जल्दी भर पाना बहुत ही मुश्किल है। इस महामारी ने कई घर उजाड़े, तो कई बच्चों को मां-बाप से या मां-बाप को बच्चों से जुदा किया। बहनों ने भाई खोया। ऐसा शायद विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले भारत में भी कोई नहीं बचा होगा, जिसने किसी अपने या बेहद करीबी को इस महामारी में खोया न हो। बहरहाल, इसका प्रकोप बहुत हद तक कम हुआ है, लेकिन मानव जाति के बाद प्रकृति ने पशुओं खास कर गोवंश को भी एक खतरनाक वायरस का शिकार बना लिया है। इसे हम लंपी स्किन डिजीज नाम से भी जानते हैं। राजस्थान के कई इलाकों के पशुपालक हजारों पशुओं को इस बीमारी के चलते खो चुके हैं। हमारे समाज को इस बात के लिए प्रशंसा की हकदार माना जाना चाहिए, जिसने जीव-पशु पर आई कोरोना-लंपी रूपी महामारी को अपने हौसले, सेवा भाव, दया भाव और सदकर्म के जरिए एक हद तक काबू पा लिया है। इसमें समाज के कई वर्गों ने अपनी हिस्सेदारी निभाई। किसी ने रुपए पैसे से, किसी ने सेवाभाव से, किसी ने गोसवकों और गोआश्रमों में दान किए। लेकिन कलाकारों का एक ऐसा वर्ग भी रहा, जिसने अपने चित्रों और कला के माध्यम से गाय और उसके बछड़े की पीड़ा को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया।
सेव काऊ नाम से मुहिम चला कर जुटे चित्रकार
बीकानेर के युवा चित्रकारों ने सार्वजनिक स्थलों पर चित्र बनाकर सेव काउ की अनूठी मुहिम छेड़ रखी है। डूंगर कालेज के फाइन आट्र्स के छात्र मुदित शर्मा, विकास मीणा, महेश, महेंद्र सिंह ने जूनागढ़ के सामने चित्र बनाकर समाज को जागरूक करने का प्रयास किया। वे बताते हैं कि अभी गायों को बचाना सबसे महत्वपूर्ण है। इसके लिए हमें अपना योगदान देना चाहिए। अलग-अलग इलाकों में गायों के चित्र बनाकर लोगों से अपील कर रहे हैं कि गायों के संरक्षण के लिए वे आगे आएं। तभी हम लम्पी से लड़ाई जीत सकेंगे।