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बीकानेर,डिंगल पिंगल भाषा और साहित्य, संस्कृति और परंपरा नहीं रही तो हमारे ऐतिहासिक जीवन मूल्य लुप्त हो जाएंगे। चारणों के बिना रण भूमि में वीरता और शौर्य के बिगुल की महत्ता भावी पीढ़ी कैसे जान पाएगी? यह एक कैसी विडंबना है कि हम अपने अतीत की थाती को संभाल नहीं पा रहे हैं। डिंगल पिंगल की परम्परा को सहेजना मुश्किल हो गया है। डिंगल के विद्वान भंवर पृथ्वी राज रतनू चारण जीवन संस्कृति की व्याख्या में बताते हैं कि चारण जाति में अवतार हर युग में हुआ है। नो लाख शक्तियां है। हर युग में भगवती का अवतार चारण जाति के उत्थान के खातिर होता आया है। वाल्मीकि रामायण, भागवत, महाभारत में चारण संस्कृति और जाति का संदर्भ मिलता है। स्कंध पुराण में उल्लेख है कि राजा वेन अत्याचारी हुए। देवताओं ने उनका वध कर दिया। प्रजा में अराजकता फैल गई। पुन शांति स्थापित करने के लिए देवताओं ने मंथन कर पृथु को प्रकट किया। पृथु ने उनकी उत्पति का देवताओं से कारण पूछा। देवताओं ने राजधर्म का पालन करने, न्याय, धर्म से राज चलाने का मंतव्य बताया। साथ में सलाहकार देने की बात कही। चारण ऋषि को सलाहकार बनाया। तब से चारण संस्कृति चली आ रही है। चारण के एक हाथ में कलम और एक हाथ में तलवार रहती है। 16 वीं शताब्दी में चारणों के योगदान को कोई भुला नहीं सकता। चारणो की आवड माता , करणी माता के अनुयायी के रूप में समग्र जीवन संस्कृति का समझा जा सकता है। डिंगल संस्कृति को अगली पीढ़ी में संप्रेषित करने के लिए देशनोक करणी माता के मंदिर में होने वाला कवि सम्मेलन बंद हो गया। चारण परंपरा की थाती, ज्ञान और जीवन संस्कृति को किसी स्तर पर संरक्षण नहीं मिल रहा है। चारण साहित्य, डिंगल पिंगल भाषा, संस्कृति कैसे बचेगी ? कोलकाता में राजस्थान फाउंडेशन ने डिंगल के विद्वान भंवर पृथ्वी राज रतनू चारणो में त्याग और साहित्य में योगदान पर आयोजित कार्यक्रम में इस बात पर जरूर चिंता जताई है। राजस्थान की सरकार और राजस्थानी संस्कृति के पुरोधा भी इसे समझे।

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