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बीकानेर,नशे का कोई सिद्धांत या उसूल नहीं होता, नशा तो सिर्फ गुलामी की भाषा समझता है। अपने आस-पास फटकने वाले कर शख्स को वह अपना गुलाम बना लेना चाहता है और फिर उसके चेहरे पर धीरे-धीरे बर्बादी की तस्वीर खींचता है। नशा देश के लगभग सभी हिस्सों में अपना फन फैला रहा और धर्मनगरी बीकानेर भी इस से अछूति नहीं है, लेकिन हाल में बीकानेर की जो नई तस्वीर सामने आई है उससे भारत के भविष्य पर ग्रहण लगता दिख रहा है। नशे के दल दल में फंसे नन्ही उम्र के इन बच्चों को देखकर हर किसी मन विचलित हो जाता है। जिस कच्ची उम्र में हाथों में कॉपी, किताबें, बस्ता होना चाहिए और कदम स्कूल की और उस उम्र में वही कदम जब नशे की तरफ तो दृश्य कितना भयानक होगा, इसकी कल्पना मात्र से ही मन कांप उठता है। लेकिन यह दृश्य इन दिनों शहर में नजर आने लगा है। गरीब तबके के बच्चों के साथ-साथ कचरा बीनने वाले बच्चे नशे की जद में आ चुके है,और यह नशा भी ऐसा खतरनाक है। शहर में मटका गली,कैंचियां गली,मालगोदाम रोड़,राजीव गांधी मार्ग पर नन्ही उम्र के बच्चे झुण्ड बनाकर नशा देखे जा सकता है,जगह-जगह कबाड़ एकत्रित करने वाले, भीख मांगकर रेलवे स्टेशन व अन्य सार्वजनिक जगहों पर जिंदगी व्यतीत करने वाले व कचरा बीनने वाले ये बच्चे खतरनाक नशे की जद में आ रहे हैं। जो टायर का पंक्चर निकालने में काम आने वाला सोल्यूशन, बॉनफिक्श, ऑयडेक्श, व्हाइटनर के अलावा खांसी सिरप कॉरेक्स वगैरहा को भी नशे में प्रयुक्त किया जाता है। शहर में नशेड़ी बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है. इन बच्चों को नशे की ऐसी आदत हो गयी है कि उन्हें खाने से भी ज्यादा नशे की जरूरत महसूस होती है।

सरकारी स्तर पर लागू नहीं है कोई योजना
नशे की दलदल में फंसते बचपन को बचाने के लिये केन्द्र या प्रदेश स्तर पर फिलहाल किसी प्रकार की योजना नहीं चलाई गई है,जबकि बीकानेर ही नहीं देशभर के महानगरों में बड़ी तादाद में खाना बदोश परिवारों के मासूम बच्चें नशे की गिरफ्त में आकर भविष्य बर्बाद कर रहे है,इतना ही बच्चों और बचपन के लिये आवाज बुलन्द करने वाली सामाजिक संस्थाएं भी नशे की आगोश में समाते बचपन की रोकथाम के लिये कोई कदम नहीं उठा रही है।

जल्दी से नहीं छूटता यह नशा
इस तरह के नशीले पदार्थ के इस्तेमाल का तरीका भी कुछ अलग है। पहले वे बाजार से बोनफिक्स या सूलेशन खरीदते हैं। उसके बाद एक छोटे से रूमाल या कपड़े पर इसे निकाल कर रखते हैं और फिर मुंह से लगाकर कुछ देर तक उसे चूसते हैं। उसके बाद वे मदहोशी की दुनिया में गोते लगाने लगते हैं। इससे उन्हें हल्का नशा होते हैं। नशा तो हल्का होता है, लेकिन ऐसे यह नशा इतना खतरनाक माना जाता है कि इस नशे की लत में लगे बच्चों को जब इससे दूर किया जाता है तो उनकी हालत मरणासन्न हो जाती है। शहर के मेडिकल स्टोर्स पर भी ऐसे बच्चों को खांसी में काम आने वाली कोरेक्स व अन्य दवाओं को बिना किसी चिकित्सक की पर्ची के आसानी से खरीदते हुए देखा जा सकता है। दवा की 100-150 एमएल की बोतल को एक ही सांस में पीकर नशा किया जाता है।

नशे की दुनिया का पहला कदम
डॉक्टर बताते हैं, नशे की दुनिया का पहला कदम यह नशे का यह तरीका होता है। यह एक आसानी से उपलब्ध होने वाला सामान है और सस्ता भी है। भीख मांग कर यह बच्चे 10 रुपये आसानी से कमा लेते हैं जिसका उपयोग यह नशा लेने में करते हैं।

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