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हिसार,जैसे-जैसे मशीनीकरण आगे बढ़ा, गधों का उपयोग तेज गति से कम होता गया। 20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, देशी गधों की आबादी में लगभग 62 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई।इस लुप्तप्राय प्रजातियों को बचाने के लिए आवश्यक संरक्षण रणनीतियों को अपनाने पर कार्य किया जा रहा है। अब इसी कार्यक्रम के तहत देश के सात राज्यों में जल्द ही गधी डेयरी का कार्य शुरू होगा।

इन राज्यों में राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना शामिल हैं। जिसमें से तमिलनाडु में तो डंकी पैलेस के नाम से इस व्यवसाय से अच्छी आय भी की जा रही है। इस कार्य को युवा अंत्रप्रन्योर्स अब तेजी से करेंगे। इस कार्य में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) उन्हें सक्षम बना रहा है। दरअसल गधा पालन पर उद्यमिता विकास कार्यक्रम के तहत बीकानेर स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई) में तीन दवसीय प्रशिक्षण दिया गया। जिसमें राजस्थान, दिल्ली सहित अन्य राज्यों से आए 13 अंत्रप्रन्योर्स ने इसमें भाग लिया।

गधा पालन से जुड़ी बारीकियों से लेकर उत्पाद बनाने की दी जानकारी

इस प्रशिक्षण में शामिल हिसार स्थित एनआरसीई के निदेशक डा. यश पाल ने बताया कि गधे के दूध और उसके उप-उत्पादों की मांग में वृद्धि मांस उत्पादों के साथ देखी गई है जो यूरोपीय बाजारों में और विशिष्ट आहार उत्पादों के रूप में व्यावसायीकरण कर रहे हैं। भारत में भी युवा अंत्रप्रन्योर्स अब इस क्षेत्र में आगे आ रहे हैं।

उन्हें तीन दिन के प्रशिक्षण में गधों का पालन, गधी का कृत्रिम गर्भाधान, उनकी डाइट, साफ सफाई, बेङ्क्षडग, रखरखाव और गधी के दूध से बनने वाले विभिन्न उत्पादों को बनाना भी सिखाया गया। इसके साथ ही आगे भी तकनीकी रूप से युवाओं की मदद की जाएगी ताकि वह अपने उद्यम को आगे बढ़ा सकें। इस प्रशिक्षण को लेने के बाद अंत्रप्रन्योर्स अपने यहां जेनी फार्म स्थापित कर इस कार्य को करेंगे।

गधी के दूध में रियोलाजिकल गुण

प्रशिक्षण समन्वयक विज्ञानी डा. अनुराधा भारद्वाज ने बताया कि गधी के दूध में अद्वितीय रियोलाजिकल गुण होते हैं। रियोलाजिकल गुण उत्पाद बनाने के लिए काफी मायने रखते हैं। एनआरसीई हिसार व बीकानेर भी गधे की डेयरी इकाई विकसित करने और गधे के दूध के विशेष गुणों का अध्ययन करने के उद्देश्य से इस दिशा में काम कर रहा है। वहीं प्रशिक्षण समन्वयक डा आरए लेगा ने बताया कि प्रशिक्षण कार्यक्रम में गधों के पालन, प्रजनन, दूध देने और नवोन्मेष उत्पादों और पैकेजिंग समाधानों सहित गधे के दूध के मूल्यवर्धन पर सैद्धांतिक और व्यावहारिक प्रशिक्षण शामिल था।

एनआरसाई के निदेशक के अनुसार

गधी के दूध पर मूल्यवर्धन प्रशिक्षण जैसे प्रयासों से थीम को मजबूत तरीके से लोकप्रिय बनाने में मदद मिलेगी और इस तरह की पहल से भारतीय उत्पादों को निर्यात टोकरी में जोडऩे का सुनहरा अवसर मिलेगा।

-डा यशपाल, निदेशक, एनआरसीई।

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