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बीकानेर, रांगड़ी चौक के बड़े उपासरे में रविवार को पर्युषण पर्व के दौरान कल्पसूत्र का वांचन विवेचन किया गया तथा दादा गुरुदेव पट््ट परम्परा के खरतरगच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीपूज्य जिनचन्द्र सूरि म.सा. ने जन्म तथा पाटोत्सव, यति-यतनियों की दीक्षा की घोषणा की ।
जैनाचार्य श्रीपूज्य जिनचन्द्र सूरि म.सा. ने जब कल्पसूत्र से भगवान महावीर के जन्म के अंश को सुनाया उसके बाद उपासरे में भक्ति गीतों व नृत्यों की धूम मच गई। ’’त्रिशलानंद वीर की जय बोलो महावीर की’’ ’’आज महावीर का जन्म हुआ’’, ’’जय-जयकार, महावीर तेरी जय जयकार’’ के साथ श्रावक-श्राविकाओं ने स्वर से स्वर मिलाते हुए नृत्य कर भक्ति के साथ आनंद लिया। गीतों की प्रस्तुतियां पीन्टू स्वामी, महेन्द्र कोचर व करण सुखानी ने दी। पार्श्व में गुलाम हुसैन का तबला व ताहिर हुसैन की ढोलक की थाप उपस्थितजनों को भक्ति के साथ थिरकने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे।
भगवान महावीर के माता त्रिशलादेवी को स्वप्न में दिखाई दिए 14 स्वप्न की वस्तुओं व प्रतीकों को प्रदर्शित किया गया तथा चांदी के पालने में भगवान महावीर के बाल स्वरूप् को प्रतिष्ठित कर श्रद्धा भक्ति से झुलाया गया। उपासरे में बच्चों के खिलौने, मिठाई की प्रभावना दी गई।
पाटोत्सव 3 फरवरी से, यति-यतनियों की दीक्षा 26 मार्च 2023 को
दादा गुरुदेव पट््ट परम्परा के खरतरगच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीपूज्य जिनचन्द्र सूरि म.सा. के संयम, शिक्षा, साधना के समर्पण के 50 वर्ष पूर्ण होने पर 3 फरवरी 2023 से वर्ष भर सत्य साधना सहित विविध कार्यक्रम होंगे। जैनाचार्य श्रीपूज्यजी के अपने पटधर श्रीपूज्यजी के नाम की घोषणा करेंगे। जैनाचार्य ने यति-यतिनियों को दीक्षा की अनुमति प्रदान की तथा तीन दिवस कार्यक्रम में 26 मार्च 2023 को कोलकाता की इंद्रा नाहर, महिदपुर (उज्जैन) की अंजलि राखेचा व यहीं के विकास चौपड़ा को महिदपुर में दीक्षा दी जाएगी। मुमु़़क्षु 24 मार्च 2023 को उज्जैन मेंं महापूजन करेंगे, 25 मार्च 23 को इंदौर में वर्षीतप के साथ मुमुक्षुओं की शोभायात्रा निकलेगी। मुमुक्षुओं की दीक्षा 26 मार्च 23 को महिदपुर में होगी।
इनका हुआ सम्मान
मुमुक्षु विकास चौपड़ा के पिताश्री सुश्रावक अशोक चौपड़ा, माताश्री शांति चौपड़ा, सुश्री अंजलि राखेचा के पिता सुश्री यश राखेचा व माता स्नेहलता राखेचा व अन्य परिजनों का अभिनंदन वरिष्ठ सुश्रावक श्रीपाल नाहटा, शशि नाहटा, विपिन व श्रीमती चारू मुसरफ ने किया। मुमुक्षुओं के परिजनों ने जैनाचार्य जिनचन्द्र सूरि के दीक्षा का सहमति पत्र सौंपा। डॉ. श्रेयांस जैन ने मुमुक्षुओं के साथ जैनाचार्य श्रीपूज्यजी, उनकी पट परम्परा के बारे में बताया। इस अवसर पर महिमामयी श्रीपूज्य परम्परा की डिजिटल पुस्तक का विमोचन किया गया।
दो नाटकों की प्रस्तुतियां
बड़ा उपासरा में रविवार को दो नाटकों ’’बड़े उपासरा और पाट की महिमा’’ व ’’यति परम्परा का समाज को योगदान’’ का विज्यूअल के साथ लाईव प्रस्तुति दी गई। बड़े उपासरा और पाट की महिमा’’ में बताया गया कि खरतरगच्छ का पाट एक हजार साल पूर्व अणहिलपुर में स्थापित हुआ। वहां से पाट जैसलमेर और 550 साल पहले जैसलमेर से इसके चार पाए बीकानेर लाए गए। अकबर प्रतिबोधक युग प्रधान चौथे दादा गुरुदेव श्री चिन्द्र चन्द्रसूरि ने इस पाट की स्थापना की थी। पांच सौ साल से यह पाट बीकानेर के बड़े उपासरे में रहा। वर्तमान गच्छाधिपति जैनाचार्य जिनचन्द्र सूरि भगवान महावीर से चल रही परम्परा मं 77 वां और श्री पूज्य परम्परां मेंं 40 वां स्थान पर प्रतिष्ठित है। इस पाट पर चौथेदादा गुरुदेव व वर्तमान जैनाचार्य सहित 17 श्रीपूज्य जी देव, गुरु व धर्म की सेवा, शिक्षा में समर्पित है। इस उपासरे में दादा गुरुदेव ने साधना, आराधना की। यति परम्परा नाटक में बताया गया कि बड़े उपासरे में यतिगण साधना के अलावा ज्योतिष, आयुर्वेद, नीति, साहित्य, दर्शन, व्याकरण, वास्तु, तंत्र-मंत्र,विविध विधान के कुशल जानकार थे। समय सुन्दरजी आदि आचार्यों ने अनेक आगमों व धर्मग्रंथों की टिकाएं लिखी । यतियों में क्षमाकल्याणजी महाराज के नाम से एक साधु परम्परा बनी जिसे क्षमा कल्याणजी महाराज का वासक्षेप के नाम से जाना जाता है।

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