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श्रीडूंगरगढ बीकानेर,.पूजनीय महन्त श्री भरत शरण जी महाराज ने आज के कथा प्रवचन में साधारण कृपा और भगवान की कृपा पर बोलते हुए कहा कि भगवान की कृपा संतों और भक्तों को ही प्राप्त होती है। मीरा बाई और करमा बाई की भांति ही राजस्थान के सीकर जिला के खण्डेला कस्बे में जनमी कृष्ण भक्त करमेती बाई के जीवन चरित्र की कथा पर बोलते हुए उन्होंनें कहा कि काल का अर्थ समय होता है और काल का ही अर्थ मृत्यु भी होती है। समय का चक्र हर वक्त चालू रहता है। हम सो जाते हैं पर हमारी घड़ी चालू रहती है। वह नहीं रूकती। समय बड़ा कठिन है। समय एक न एक दिन सबको खा जाता है। श्रीकृष्ण जिसके मामा थे और अर्जुन जिसके पिता थे, वो भी काल के शिकार हुए। केवल भगवान की भक्ति करके मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।*

*महाराजश्री ने आश्चर्य करते हुए कहा कि जब पड़ौसी के घर में चोरी हो जाती है तो हम अपने घर का सामान सम्भाल कर रखना शुरू कर देते हैं, लेकिन पड़ौसी के घर में मृत्यु को देखते हैं तो हम पर कोई फर्क नहीं पड़ता।*

*किसी ने संत से प्रश्न किया- राजा परीक्षित ने कलियुग को समाप्त क्यों नहीं किया ? तो बताया गया कि कलियुग का रहना जरूरी था, क्योंकि बिना यज्ञ, तपस्या व बरसों तक कड़ी साधना के केवल भगवान का नाम जप कर ही भवसागर पार किया जा सकता है।*

स्वयं कबीरदास जी महान भक्त थे, फिर भी उन्होंनें अपने बारे में ही लिख दिया-*
*”बुरा जो देखन में गया, बुरा न मिलिया कोय।*
*जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय।।”*
*हमारे शास्त्र कहते हैं कि यदि संत प्रशन्न है, महापुरुष प्रशन्न है तो आपसे भगवान प्रशन्न है।*

*करमेती बाई खण्डेला के राजा के राजपुरोहित परशुराम की बेटी थी। राजा के राजपुरोहित की बेटी होकर भी शुरू से ही श्रीकृष्ण में अपना ध्यान लगा लिया। उच्च घराने और दाम्पत्य सुखों को त्याग कर 15 वर्ष की अवस्था में रात को घर से निकल गई और वृन्दावन में वास किया।*

*महाराजश्री ने कहा कि भक्ति के लिए पुरूष को घर बार छोड़ कर तीर्थ व वन में चले जाने में कोई विशेष कठिनाई नहीं आती, लेकिन स्त्रियों के लिए घर छोड़ कर जाना बहुत मुश्किल होता है। उन्होंनें बताया कि स्त्री का शरीर आटे के दीपक की भांति होता है, इसको घर में रखें तो चूहों का खतरा रहता है और यदि घर के बाहर रखो तो कुत्तों से खतरा रहता है। इस कठिन समय में करमेती बाई सदा निष्कलंक रही। सदा खूब भजन भजन भक्ति व खूब रास में डूबी रही*।

*करमेती बाई के पिता परशुराम अपनी बेटी करमेती को वापिस लाने वृन्दावन पहुंचे और कहा- बेटी तुमने घर छोड़ कर इस जीवन में मेरी नाक कटा दी, अब भी तुम घर चलो, तो करमेती बाई ने जबाब दिया कि- “जिसके जीवन में भगवान की भक्ति नहीं है, वो जीवन तो जीवित रहते हुए मरे हुए के समान है। जिसके घर में भक्ति नहीं, उस व्यक्ति की नाक तो पहले से कटी हुई है।*

*करमेती बाई घर में रह कर भक्ति करने को इसलिए तैयार नहीं थी, क्योंकि उसको पता था कि जिस घर में उसका रिश्ता हो रहा है वो परिवार भगवान की भक्ति और संत सेवा से विमुख है। वृन्दावन में करमेती की कठोर भक्ति भाव को समझ पाने के बाद करमेती बाई के पिता उसकी निर्विघ्न भक्ति से अति प्रसन्न हुए।आज आदि अन्य जनो को सम्मानित किया गया ताराचंद सोमानी ताराचंद सोमानी इंदर चंद चौहान पुखराज बाहेती कैलाश तोषनीवाल विजय कुमार जी को सत्यनारायण तापड़िया गौरी शंकर जी अटल गोपाल जी करनानी के अलावा अन्य भक्तो ने भी कथा का आनन्द लिया । भंवरलाल गोदारा इमरता राम गोदारा कटक श्याम लाल शंकर लाल भुवाल तोलाराम मारू स पत्नीक भंवर लाल सारण दीपचंद नाई तुलसीराम शर्मा मदन सदास मामराज सहू सज्जन कुमार विनोद कुमार नाई सत्यनारायण नारायण नाई आदि सम्मानित अन्य भक्तों को सम्मानित किया गया।

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