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बीकानेर,युवा पीढ़ी को छात्र जीवन में विभिन्न स्तर पर चुनाव की प्रक्रिया से गुजरा जाता है । क्लास प्रतिनिधि से लेकर छात्र संघ अध्यक्ष तक वैसे तो लोकतंत्र में चुनाव और चुने जाने की प्रक्रिया में मतदाताओं के प्रति जिम्मेदारी और व्यवहार की सीख इसमें समाहित है। चुनाव व्यवस्था में स्वच्छ लोकतंत्र की सीख दी जाए। मुद्दा आधारित छात्र राजनीति का वातावरण मनाया जाए। मतदाताओं के समक्ष उम्मीदवार के योग्य होने का पक्ष प्रस्तुत किया जाए। यह भी छात्रों को सिखाया जाना चाहिए की उम्मीदवार की मेरिट_ डी मेरिट का आकलन करके छात्र हितों को समझने वाले छात्र को प्रतिनिधि चुने। बिल्कुल फेयर और फ्री चुनाव हो। जीत के हथकंडे और जातिवाद का सहारा नहीं लिया जाए। चुनाव में अनुचित तरीके नहीं अपनाए जाए। पैसा के बल पर या गुंडागर्दी जैसा व्यवहार कतई नहीं हो। यह बात सही है के आज के छात्र नेता ही कल के राष्ट्रीय नेता बनते है। ऐसे में छात्र संघ चुनाव राजनीतिक दलों के आनुसांगिक संगठनों के माध्यम से पार्टियों का कॉडर मजबूत बनाने का इक्यूपमेंट नहीं बने, बल्कि भारत के विशाल लोकतंत्रिक देश में लोकतंत्र की नींव मजबूत करने का प्रशिक्षण स्थल बनाया जाए। होता यह कि छात्र संघ की आड़ में राजनीति पार्टियां अपने सिट्टे सेकने में लगी रहती है। विधानसभा चुनाव से डेढ़ साल पहले छात्र नेताओं के तैयार होने वाले केडर का राजनीति दल अपना गोल हासिल करने में इस्तेमाल करेगी। यूनिवर्सिटी, कालेज और अन्य शैक्षिक संस्थानों को फेयर और फ्री चुनाव का वातावरण बनाने का प्रयास होना चाहिए। छात्रों में नेतृत्व क्षमता का विकास हो इस बात पर ध्यान दिया जाए। छात्र संघों की नीतियां, कार्य योजना, शैक्षणिक प्राथमिकताएं, खेल, अनुसंधान, सेमीनार और शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कैसे विकास हो इन मुद्दों पर चुनाव केंद्रीत हो। भारतीय लोकतंत्र की विसंगतियां से छात्र संघ चुनाव पूरी तरह मुक्त रहे। अगर छात्र संघ चुनाव में ऐसा हो जाता है तो राष्ट्रीय सरकार को चुनाव सुधार और लोकतंत्र की खामियों से स्वत ही मुक्ति मिल सकेगी। पहल की जरूरत है भले ही छोटे स्तर पर हो, परंतु संदेश दूर तलक तक जाए। बस। लोकतंत्र का भला हो जाएगा।

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