छापर, चूरू (राजस्थान)मंगलवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्यजी की वार्षिक पुण्यतिथि के अवसर पर तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य की जन्मभूमि पर चतुर्मास कर रहे तेरापंथ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मंगल सन्निधि में चतुर्विध धर्मसंघ ने उनका स्मरण किया। आचार्यश्री ने उनके प्रति अपनी श्रद्धाप्रणति अर्पित करते हुए उनसे प्रेरणा लेकर जीवन को अच्छा बनाने हेतु उत्प्रेरित किया।
चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में उपस्थित जनता को आचार्यश्री महाश्रमणजी ने तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य की पुण्यतिथि पर पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि दसवेआलियं में सूर्य की रोशनी और सूर्य के ताप का बहुत महत्त्व बताया गया है। एक सूर्य की रोशनी के समक्ष हजारों-हजारों लाइटों का प्रकाश भी फिका पड़ जाता है। आदमी के जीवन में प्रकाश और ताप का बहुत महत्त्व होता है। सर्दी के मौसम में सर्दी को दूर भगाने के लिए आदमी सूर्य के ताप का आसरा लेता है। शास्त्रकार ने आचार्य की तुलना सूर्य से की है। हालांकि सूर्य की अपनी महिमा है। जिस प्रकार सूर्य अपनी किरणों के मध्य शोभायमान होता है, उसी प्रकार आचार्य भी अपने शिष्यों के मध्य शोभायमान होते हैं। आचार्य का आचार पुष्ट है और कोई आचार्य श्रुत की दृष्टि से कम है तो भी वह पूजनीय होता है। आचार्य श्रुत, शील और बुद्धि से सम्पन्न होते हैं।
आज एक ऐसे ही महान आचार्य का वार्षिक महाप्रयाण दिवस है। तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य का आज के ही दिन जयपुर में लालाजी की हवेली में महाप्रयाण हुआ था। मैं कुछ समय पूर्व जयपुर में उस हवेली और उनके समाधिस्थल पर जाकर भी आया था। वे तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य थे। उनका जन्म आश्विन महीने में हुआ था। उन्हें आचार्य भिक्षु के ही रूप में देखा जा सकता है। आचार्य भिक्षु श्रुत सम्पन्न थे तो श्रीमज्जयाचार्य भी श्रुत सम्पन्न थे। उनके द्वारा रचित ग्रंथों को देखकर ऐसा कहा जा सकता है कि वे आचार्य भिक्षु के रूप में उनके परंपर पट्टधर थे। उन्होंने भगवती सूत्र जैसे विशालकाय आगम की पद्यात्मक व्याख्या राजस्थानी भाषा में कर दी। वे बहुश्रुत थे। वे संस्कृत भाषा के अध्येत्ता थे। उनकी पुस्तक प्रश्नोत्तर, झीणी चरचा जो तत्त्वज्ञान प्रधान हैं। उनका ज्ञान कितना प्रवृद्ध था। उनके शील, आचार और साधना को देखें तो मानों यह तेरापंथ धर्मसंघ का सौभाग्य था कि वे तेरापंथ के आचार्य बने। उनकी बौद्धिकता के कारण धर्मसंघ में नए-नए आयाम उद्घाटित हुए। जयाचार्य को आचार्य भिक्षु कहा जाता है तो परम पूज्य आचार्य तुलसी को भी जयाचार्य जैसा कहा जा सकता है। जयाचार्य ने आगमों पर रचनाएं कीं तो आचार्य तुलसी ने आगम संपादन जैसा कार्य किया। जन्मोत्सव, पट्टोत्सव आदि जयाचार्यप्रवर के समय प्रारम्भ हुए तो आचार्य तुलसी के समय शताब्दी समारोह आदि का आरम्भ हुआ। मैं ऐसे आचार्यप्रवर के प्रति श्रद्धा और वन्दना अर्पित करता हूं।
आचार्यश्री ने ‘जय हो कल्लूसुत …’ गीत का आंशिक संगान भी किया। आचार्यश्री के मंगल उद्बोधन से पूर्व साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी, साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी ने भी अपने चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के जीवनवृत्त को व्याख्यायित किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने स्वरचित गीत का सुमधुर संगान चतुर्थ आचार्य के प्रति अपनी प्रणति अर्पित की। कार्यक्रम में अन्य समाज की बालिका ममता भार्गव व बालक नरेन्द्र दूगड़ ने आचार्यश्री से अठाई की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री पंकज डागा ने इस वर्ष के युवा गौरव के लिए श्री संजय जैन, आचार्य महाप्रज्ञ प्रतिभा पुरस्कार के लिए श्री राजीव सुराणा व आचार्य महाश्रमण युवा व्यक्तित्व पुरस्कार के लिए श्री देवेन्द्र डागलिया के नाम की घोषणा की। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री नरेन्द्र कुमार नाहटा ने जप के संदर्भ में सूचना दी। इन्दौरवासियों व सूरतवासियों ने आचार्यश्री के समक्ष चतुर्मास के संदर्भ में अपनी प्रस्तुति दी।