बीकानेर,गुलाम नबी आजाद के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने भी हिमाचल प्रदेश की चुनाव समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। विगत दिनों ही आजाद ने जम्मू कश्मीर की चुनाव समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। इन दोनों राज्यों में तीन माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं, इसलिए कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आजाद और शर्मा की नियुक्ति की थी, लेकिन इन दोनों नेताओं ने सोनिया गांधी की नियुक्तियों को ठुकरा दिया है। यह कांग्रेस को तो झटका है ही साथ ही राजस्थान के मुख्यमंत्री और मौजूदा समय में गांधी परिवार के सलाहकार अशोक गहलोत की राजनीतिक विफलता भी है। सब जानते हैं कि पिछले दिनों जब सोनिया गांधी और राहुल गांधी से ईडी ने पूछताछ की तो गांधी परिवार के बचाव में अशोक गहलोत राजस्थान को छोड़कर दिल्ली में जम गए। कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते हुए गहलोत गांधी परिवार के बचाव में पुराने कांग्रेसी गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा जयराम नरेश जैसे कई नेताओं को आगे लाए। असंतोष समूह के नेताओं में गहलोत ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस भी करवाई। गहलोत ने यह दिखाने का प्रयास भी किया कि मुसीबत के समय सभी कांग्रेसी गांधी परिवार के साथ हैं। गहलोत को उम्मीद थी कि पुराने कांग्रेसियों पर हाथ फेर देने से नाराजगी दूर हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गहलोत जिन पुराने कांग्रेसियों को आगे लाए उनमें से आजाद और आनंद शर्मा ने कांग्रेस को झटका दे दिया। यानी कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में गहलोत की विफलता का दौर शुरू हो गया है। यदि गहलोत के प्रति पुराने नेताओं के मन में कोई सम्मान होता तो आजाद और आनंद शर्मा अपने अपने गृह प्रदेश की चुनाव समिति से इस्तीफा नहीं देते। आजाद और आनंद शर्मा को पता है कि उनकी नियुक्ति गहलोत की सिफारिश पर हुई है। यह सही है कि राजस्थान में नाराज मंत्रियों विधायकों और नेताओं से सहानुभूति की बात कर गहलोत सफल हो जाते हैं, लेकिन प्रदेश और देश की राजनीति में बहुत अंदर है। कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सफल होना अब इतना आसान नहीं है। गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा राज्यसभा में कांग्रेस संसदीय दल का नेतृत्व कर चुके हैं। लेकिन गांधी परिवार ने अपने विश्वास पात्र मल्लिकार्जुन खडग़े को राज्य सभा में संसदीय दल का नेता बनाने के लिए आजाद और आनंद शर्मा को राजय सभा का सांसद भी नहीं बनवाया। चूंकि गहलोत इन दिनों कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हैं इसलिए गहलोत को अब यह समझना चाहिए कि वो ही नेता कांग्रेस और गांधी परिवार के साथ है, जिन्हें सत्ता का कोई पद मिला हुआ है। गहलोत खदु भी गांधी परिवार के प्रति इतनी वफादारी इसलिए दिखा रहे हैं क्योंकि मुख्यमंत्री के पद पर बैठे हैं। आज यदि गहलोत को मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया जाए तो गहलोत का बागी रवैया कपिल सिब्बल से ज्यादा देखने को मिलेगा। मालूम हो कि सिब्बल अब समाजवादी पार्टी के समर्थन से राज्य सभा के सांसद हैं। सिब्बल को कांग्रेस ने जब केंद्रीय मंत्री और फिर राज्यसभा का सांसद बनाए रखा सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस की नीति के अनुरूप राम मंदिर के निर्माण में अड़चन खड़ी की। आज वही सिब्बल कांग्रेस की कब्र खोदने में लगे हुए हैं। यहां यह खासतौर पर उल्लेखनीय है कि अगले वर्ष राजस्थान में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं। चुनाव के परिणाम का आभास गहलोत को अभी से है। देखना होगा कि 2024 में गहलोत की गांधी परिवार के प्रति कितनी वफादारी नजर आती है।
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