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बीकानेर,केंद्रीय राजनीति में राजस्थान का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है। केंद्रीय मंत्रियों के रूप में राजस्थान से गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन मेघवाल, कैलाश चौधरी को बड़ी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।उसके साथ ही ओम बिड़ला को लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया। अब जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति बनने के बाद राजस्थान की गरिमा और प्रतिष्ठा दोनों बढ़ गई है।

हाल ही में सुनील बंसल को भी राष्ट्रीय महामंत्री बनाए जाने के फैसला भी राजस्थान के दृष्टीकोण से बहुत ही महत्पूर्ण है। राजस्थान के नेताओं को निरंतर केंद्र में अहम जिम्मेदारी मिल रही है। ऐसे में केंद्र में राजस्थान की अहमियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। दिल्ली की राजनीति में सक्रिय ये सभी नेताओं का कद राजस्थान में बड़ा रहा है। अब केंद्र में सक्रिय होने से इनके कद में इजाफा हुआ है लेकिन इन सबका राजस्थान की राजनीति में कितना असर रहा है और कितना प्रभाव पड़ेगा, ये कहना अभी जल्दबाजी होगी।

आंतरिक कलह से उबर नहीं पा रही भाजपा
2023 में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं। ये चेहरे विधानसभा चुनाव में कितनी अहम भूमिका निभा पाते हैं, ये देखने वाली बात होगी। राजस्थान से इतने बड़े नाम केंद्र में होने के बावजूद भी प्रदेश स्तर पर भाजपा कोई भी मुद्दा भुनाने में अभी तक विफल रही है। भाजपा प्रदेश संगठन में चल रही अनबन और आंतरिक कलह भाजपा को राजस्थान में उबरने नहीं दे रही है। प्रदेश के कई चेहरों के केंद्र में होने के बावजूद भी राजस्थान भाजपा की परफॉर्मेंस में कोई भी बड़ा परिवर्तन देखने को नहीं मिला है।

किरोड़ी मीणा भीड़ जुटाने में माहिर, पार्टी की पदयात्रा फेल
राजस्थान भाजपा नेता गुटबाजी में बंटे नजर आते हैं। भरतपुर संभाग में भाजपा का कोई बड़ा चेहरा नहीं है। हालांकि, डॉ. किरोड़ी लाल मीणा भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं लेकिन संगठन से कोई मजबूत सपोर्ट नहीं मिलने पर खुद को बड़ा ब्रांड बनाने में लगे हुए हैं। भरतपुर संभाग में आदिवासी दिवस पर किरोड़ी लाल मीणा ने यात्रा निकाली। जिसमें कोई भाजपा नेता नजर नहीं आया। जो कि राजनीतिक गलियारों में काफी सुर्खियां बटोरने में कामयाब रहा। वहीं संगठन की ओर से आयोजित कार्यक्रम की चर्चा भी बमुश्किल से हुई ।

राजनीतिक जानकारों के अनुसार डॉ. किरोड़ी लाल मीणा 50 सीटों को प्रभावित करते हैं। जिसका सीधा उदारहण है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के निर्वाचन के उपलक्ष्य में आदिवासी अंचल में निकाली गई पदयात्रा में 250 लोग शमिल हुए लेकिन प्रदेश भाजपा की ओर से नकारे जाने के बावजूद किरोड़ी लाखों की भीड़ जुटा लेते हैं। यह बताता हैं कि राजस्थान भाजपा की स्थिति क्या है।

कोटा संभाग में भी खींचतान
इसी प्रकार कोटा संभाग से केंद्र में ओम बिरला पहुंचे हैं। लोकसभा स्पीकर बनने के बावजूद भी बीजेपी कोटा के दोनों नगर निगम और बूंदी जिला पारिषद के चुनाव में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है। वहीं बीजेपी प्रदेश संगठन ने कोटा संभाग में कोई बड़ा कार्यक्रम या आयोजन नहीं किया, जो कि स्पष्ट रूप से भाजपा प्रदेश इकाई और ओम बिरला के बीच की खींचतान को दर्शाता है।

राजे ने जन्मदिन पर जुटाया भीड़
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कोटा संभाग में किसी को बिना बुलाए भी दो लाख से अधिक लोगों के साथ जन्मदिन मनाती है। इस कार्यक्रम का भी भाजपा प्रदेश इकाई से कोई लेना देना नहीं था। नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया के विधानसभा क्षेत्र में धरियावाद, वल्लभगढ, राजसमंद में हुए उप चुनाव में भाजपा को दो सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा राजसमंद विधानसभा में भाजपा की जीत का मार्जिन 25 हजार से घट कर सिर्फ पांच हजार ही रह गया। राजसमंद नगर पालिका को भाजपा का अभेद्य किला माना जाता था, वो भी बीजेपी प्रदेश इकाई के प्रदर्शन के चलते हाथ से चला गया।

गौरव यात्रा में कटारिया ही नहीं आमंत्रित
उदयपुर संभाग में भी कोई बीजेपी प्रदेश इकाई का कोई बड़ा आयोजन नहीं हुआ लेकिन जिस कार्यक्रम की रूपरेखा केंद्र से थी, उसको भी बीजेपी प्रदेश इकाई भुनाने में असफल रही। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण आदिवासी अंचल की गौरव यात्रा में बीजेपी के बड़े नेता गुलाब चंद कटारिया को ही आमंत्रित नहीं किया गया था।

जोधपुर में आरएलपी का बढ़ रहा कद
जोधपुर संभाग से दो केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और कैलाश चौधरी आते हैं। जोधपुर में भी 2 में से 1 नगर निगम में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। तीन पंचायत समिति पर भी भाजपा की जगह आरएलपी काबिज हो जाती है। वहीं बाड़मेर और जोधपुर दोनों ही क्षेत्रों में आरएलपी का कद बढ़ता जा रहा है। इस संभाग में भी बीजेपी प्रदेश इकाई का कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं हुआ है। जबकि आरएलपी बड़ी संख्या में लोगों को एकजुट कर दो कार्यक्रम कर चुकी है।

बीकानेर जिला परिषद चुनाव में भाजपा की हार
बीकानेर संभाग से आने वाले केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल तो अपने ही बेटे को जिला पारिषद का चुनाव नहीं जीता पाए। वहीं सुजानगढ विधानसभा में मेघवाल और जाट बाहुल्य होने के बावजूद भी उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा, जबकि उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौर और सतीश पूनिया भी इसी संभाग से आते हैं, जो मिलकर भी बीजेपी को नहीं बचा पाए।

जयपुर संभाग की भी बात करे तो मांडवा (झुंझुनू) विधानसभा में भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा, मांडवा विधानसभा की उम्मीदवार को टिकट दिलवाने में अहम भुमिका में उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौर एवं बीजेपी संघठन मंत्री चन्द्रशेखर एवं बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया की रही और बीजेपी की तीनों शक्तियों के बाद भी बीजेपी प्रदेश इकाई अपनी खुद की जीती हुई सीट भी नहीं बचा पाई।

जयपुर नगर निगम हेरिटेज भी बीजेपी के हाथ से चली गई और ग्रेटर नगर निगम भी जीत कर भी आपसी कलह का अड्डा बना हुआ है। जिसमें पहेली बार संघ के बड़े पद अधिकारियों को भी लपेटे में ले लिया गया।
अजमेर संभाग की भी बात करे तो मांडलगढ विधानसभा सीट जो कि जाट बाहुल्य विधानसभा होने के बाद भी जाट प्रदेश अध्यक्ष ही जाट सीट को बीजेपी की झोली में नहीं डाल पाए। अगर ध्यानपूर्वक देखा जाए तो बीजेपी के प्रदेश से 4 केंद्रीय मंत्री, 1 लोकसभा अध्यक्ष, 1 उप राष्ट्रपति होने के बाद भी बीजेपी प्रदेश की ये स्थिति है कि भाजपा को सिर्फ हार का ही सामना करना पड़ा है।

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