बीकानेर के कचहरी परिसर में वकीलों के साथ कुछ पत्रकार बंधु ज्वलंत मुद्दों पर आपसी चर्चा के दौरान एक पत्रकार बहुत ही व्यथित मन से अनायास ही बोल पड़े भाई साहब पत्रकारिता और पत्रकारों की स्थिति दयनीय हो गई है। पत्रकार करते क्या हैं इधर उधर की रिलीज का प्रचार प्रसार। इसमें कोन सी पत्रकारिता हुई। घटनाओं,कार्यक्रमों, मीटिंग और पी आर ओ समेत अन्य प्रेस नोट छापना या पार्टल पर जारी करना ही पत्रकारिता रह गई हैं। प्रेस कान्फ्रेस में तो ऐसा रवैया कि पूछो मत। कितनी इज्जत रह गई है समझने वाले ही समझते। खुद पत्रकार क्यों नहीं समझते ? इस सवाल का कोई जवाब नहीं है। पास में बैठे वकीलों ने भी कई मसके लगाए। जैसा वे भरे हों और गुब्बार निकाल रहे हों। बात हंसी ठठो में बिसार दी गई। पर था कटु सत्य। . मैं भी सोचता हूं कि लोकतंत्र बिना चौथे पाइए ( स्तंभ ) का होता जा रहा है। पत्रकारिता बाजार और व्यवस्था के हाथों की कठपुतली बनती जा रही है। ऐसे में पत्रकारिता करने वाले लोगों का कोई ईमान नहीं है ? आखिर पत्रकारिता की अधोगति से उबारने की किस की जिम्मेदारी है ? पत्रकार अपना धर्म बचाना चाहते हैं ? लोग पत्रकार क्यों बनना चाहते हैं। क्या पत्रकारिता का कोई दायित्व, कर्तव्य, धर्म या ईमान नहीं है। अगर है तो पत्रकारिता का धर्म लोकतंत्र की रक्षा, लोक कल्याण और जनहित पत्रकार को ही निभाना है। दूसरा कोन आएगा और क्यों आएगा? पत्रकार की अनायास उभरी इस पीड़ा ने पत्रकारों की हालातों को नीर क्षीर कर दिया। हालत यह हो गए हैं कि खुद को पत्रकार कहते शर्म आती है। पत्रकारिता में आई नैतिक गिरावट पर पत्रकारों को आत्मविश्लेषण करना ही चाहिए। समाज में देख लें पत्रकार किन मुद्दों पर काम कर रहे हैं। सच तो यह है कि वे पत्रकार है भी या नहीं। कुछ माह पहले पत्रकारों के एक शिष्टमंडल ने बीकानेर के जिला कलक्टर से मिलकर मांग की थी पत्रकारिता के नाम पर प्रेस कान्फ्रेस में आने वाले फर्जी लोगों पर पी आर ओ के माध्यम से रोक लगाई जाए। इस मांग के थोड़े दिन बाद ही एक मिलन समारोह में ऐसे ही लोगों का महिमा मंडन किया गया। हाल ही में पत्रकारों का एक शिष्ट मंडल फिर कलक्टर से मिला। वे लोग दर्पण में अपना चेहरा देख लें और आत्मविश्लेषण कर लें। आत्मा नहीं मानती है तो सुधार कर लें। अन्यथा तो पत्रकारिता के गिरते मूल्यों की तस्वीर आईने में रोज ही दिखाई देती है। बहुत ही दुख कि बात है पिछले दशक से मीडिया और पत्रकारों के बारे में नई उपमाएं आ गई है। पहले तो पीत पत्रकारिता ही पतन के रास्ते जाने वाले पत्रकारों को एक गाली थी। अब गोदी मीडिया, दलाल, सत्ता के भोंपू जैसे कई उपमाएं जुड़ गई है। पत्रकार बंधुओं जब आप ही राजनेताओं और सत्ता के पिछलग्गू बन जाओगे तो जनहित का लोकतंत्र में रक्षक कोन होगा ? अन्याय से पीड़ितों की आवाज कोन बनेगा। सत्ता की मनमानी को उजागर कोन करेगा। भ्रष्टाचार, सत्ता लोलुपता, भाई भतीजावाद के विरुद्ध आवाज कोन उठाएगा। दबे, हारे, असहाय, पीड़ित की आवाज को संबल कोन देगा। पत्रकार भाइयों पत्रकारिता की डूबती नाव को तिनके का आपका सहारा मूल्यों की पुनर्स्थापना कर सकता है। बस आप पत्रकारिता को सही दिशा देने के लिए जाग जाओ। मात्र इतनी सी सजगता से पत्रकारिता का आजादी के 75 वर्षों के अमृत महोत्सव पर नया इतिहास रचा जाएगा।
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