बीकानेर। देश विदेश में पशुओं के लिये महामारी बनी लंपी स्कीन डिजिज बीमारी अब शहर के पशुओं में भी फैलने लगी है। शहर के कई इलाकों में इस घातक बीमारी ने गौवंश को अपनी चपेट में ले लिया है। हालांकि पशुपालन विभाग ने इसकी रोकथाम के लिये एडवाइजरी जारी कर रखी है,लेकिन जागरूकता के अभाव में ज्यादात्तर पशु पालक इस एडवाइजरी से अनभिज्ञ है। चिंता की बात तो यह है कि यह बीमारी अब आवारा घुमने वाले गौवंश में फैल गई है। वजह ये कि एडवाइजरी के अनुसार संक्रमित पशु एक जगह बांध कर रखना पड़ता है लेकिन शहर के गली मौहल्लों में घूमने वाले आवारा गौवंश को झुण्ड बनाकर रहते है। ऐसे में इन पशुओं के घातक बीमारी से संक्रमित होने का खतरा ज्यादा है। इससे पशुपालकों और पशु पालन विभाग की चिंता ज्यादा बढ़ गई है। पशु चिकित्साके के मुताबिक यह बीमारी संक्रमित पशु के संपर्क में आने या किलनी, मच्छर एवं मक्खी द्वारा दूसरे पशुओं में फैलता है। लंपी स्कीन डिजीज कोरोना वायरस की तरह पशुओं में फैल रहा है। बीमारी की अभी तक वैक्सीन नहीं आई है। पशुओं को संक्रमित पशुओं से दूर रखकर ही या समय पर उपचार से ही बचाया जा सकता है। ग्रामीण इलाकों के बाद शहरी इलाके के गौवंश में फैल रही लंपी स्कीन डिजीज अब बड़ा खतरा बन गई है। पशुपालकों ने बचाव को लेकर ध्यान नहीं दिया तो एक-दूसरे मवेशी के संपर्क में आने से फैलने वाली वायरस यह बीमारी पूरे जिले में फैल सकती है। इससे मवेशियों की दिक्कत तो बढ़ेगी ही, रोग की जद में आने वाले दुधारू मवेशियों के चलते दुध उत्पादन पर असर पड़ेगा।
ऐसे फैल रहा है संक्रमण
जानकारी में रहे कि लंपी स्किन डिजिज गाय एवं भैंस में कैप्रीपॉक्स वायरस के संक्रमण से फैलती है। इससे गौवंश की त्वचा पर ढेलेदार गांठ की तरह बन जाता है और नाक एवं आंख से पानी निकलने लगता है। शरीर का तापमान बढ जाता है। मवेशी बुखार की जद में आ जाते हैं। बीमारी से ग्रसित मवेशी के शरीर पर पडऩे वाले गांठ जब तक कड़े रहते हैं तो जकडन व दर्द बना रहता है। पककर फूटने के बाद शरीर में घाव बन जाता है। जिसमें मक्खियां आदि बैठती हो तो कीड़े तक पड़ जाते हैं। संक्रमण हस्तांतरण विषाणु के वाहक जैसे किलनी, मच्छर एवं मक्खी से फैलती है। संक्रमित पशु के शरीर पर बैठने वाली किलनी, मच्छर व मवेशी जब स्वस्थ पशु के शरीर पर पहुंचते हैं तो संक्रमण उनके अंदर भी पहुंच जाता है। बीमार पशुओं को एक से दूसरे जगह ले जाने या उसके संपर्क में आने वाले पशु भी संक्रमित हो जाते हैं। पशु चिकित्सकों के अनुसार इस बीमारी का प्रकोप गर्म एवं आर्द्र नमी वाले मौसम में अधिक होता है। मौजूदा समय में जिस तरह से गर्मी व उमस बढी है। उससे रोग के फैलने का खतरा भी बढ चुका है। हालांकि ठंडी के मौसम में स्वत: इसका प्रभाव कम हो जाता है।