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बीकानेर, जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की मनोहरश्रीजी म.सा की सुशिष्या साध्वीश्री मृगावतीश्रीजी म.सा., बीकानेर मूल की साध्वीश्री सुरप्रियाश्रीजीम.सा व नित्योदया श्रीजी म.सा के सान्निध्य में रविवार को सुगनजी महाराज के उपासरे में ज्ञानधर्म कथा का वाचन-विवेचन शुरू हुआ। आगम सूत्र वाचन विवेचन का लाभ भंवर लाल धनराज परिवार ने लिया।
साध्वीश्री मृगावतीश्रीजी म.सा. ने कहा कि जैन धर्म के 26 आगमों में ज्ञानधर्म कथा सूत्र 6 अंग सूत्र है। आगम में महापुरुषों कथाएं एवं सूत्र हमें सहजता, सरलता से इसमें आत्म ज्ञान के साथ धर्माचरण का मार्ग दिखाते है। उन्होंने बताया कि आगम शब्द का उपयोग जैन दर्शन में साहित्य के लिए किया जाता है। श्रुत, सूत्र, सुतं,ग्रंथ,सिद्धान्त,देशना, प्रज्ञापना, उपदेश, आप्त वचन, जिन वचन आदि सभी आगम के पर्यायवाची शब्द है। आगम शब्द  ’’आ’’ उप सर्ग और गम धातु से निष्पन्न हुआ है। ’आ’’ उपसर्ग  का अर्थ समन्तात अर्थात पूर्ण और गम धातु का अर्थ गति प्राप्त है अर्थात जिस वस्तु तत्व (पदार्थ के रहस्य) का पूर्ण ज्ञान हो वह आगम है। कहा जाता है कि आप्त पुरुष (अरिहंत, तीर्थंकर या केवली) जिनेश्वर रूप में जो ज्ञान उपदेश देते है उन शब्दों को गणधर (उनके प्रमुख शिष्य) जिनकी लिपिबद्ध रूप् में रचना करते है उन सूत्रों को आगम कहते हैं।
साध्वीजी ने कहा कि आगम शब्द का प्रयोग जैनधर्म के मूल ग्रंथों के लिए किया जाता है। केवल ज्ञान, मनः पर्यय ज्ञानी, अवधि ज्ञानी, चतुर्दशपूर्व के धारक तथा दशपूर्व के धारक मुनियों को आगम कहा जाता है। कहीं कहीं नवपूर्व के धारक को भी आगम माना या है। उपचार से इनके वचनों को भी आगम कहा गया है।
उन्होंने कहा कि सभी आगम हमें परमात्म, आत्म तत्व व आत्म बीज को पहचानने, समझने और धर्माचरण करने, शरीर की अनुभूति, आसक्ति को कम करने का संदेश देते है। हमेंं आत्मा के शुद्ध तत्व को पहचानना है, कुल,धर्म की मर्यादा का पालन करते हुए धर्म ध्यान में समय लगाकर जीवन को सार्थक व जीवंत बनाना है। इस अवसर पर श्रीमती शीला बरड़िया ने ’’वंदन नहीं किया, प्रभु दर्शन नहीं किया’’ भजन प्रस्तुत किया। भजन की भी साध्वीजी ने व्याख्या की ।

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