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बीकानेर,कहते हैं किसी भी काम में महारत हासिल करने के लिए लगन जरूरी है. कई बार किताबी ज्ञान अनुभव के आगे बौना हो जाता है और ऐसा ही एक उदाहरण है बीकानेर के साइकिल मिस्त्री महफूज अली अच्छे से अच्छे इंजीनियर उनके अनुभव के आगे मात खा जाते हैं.

बीकानेर. साइकिल का कोई अंग दगा दे जाए तो जेहन में सिर्फ एक नाम आता है. सड़क किनारे पंचर लगाने वाले मिस्त्री का (Bikaner Cycle Expert Mehfooz). हर शहर के मोहल्ले में आपको एक न एक मिस्त्री मिल ही जाएगा. एक ऐसा शख्स जो मामूली कीमत में साइकिल ठीक कर देता है. देसी साइकिल के एक्सपर्ट होते हैं ये मोहल्ले वाले साइकिल एक्सपर्ट. बीकानेर में भी ऐसे कई हैं जिनमें से महफूज खास हैं. क्यों? क्योंकि वो देसी नहीं बल्कि विदेशी साइकिलों को पल भर में चकाचक कर देते हैं. इनकी काबिलियत ऐसी की बड़े बड़े सिर झुका लें. ये ऐसे देसी इंजीनियर हैं जो दुकान में पंचर की बजाए विदेशों में बनी साइकिल को न केवल ठीक करते हैं बल्कि देश में उपलब्ध नहीं होने वाले उस विदेशी साइकिल के पार्ट्स तक बना देते हैं (Engineer Without Degree In Bikaner).

अनुभव बड़ी चीज है!: हैरत की बात तो ये है कि विदेशी साइकिल का ये देसी इंजीनियर किताबी ज्ञान में महज पांचवीं दर्जे तक पढ़ पाया है. लेकिन 35 साल के अनुभव ने इस व्यक्ति को एक ऐसा इंजीनियर बना दिया जिसका मुरीद बीकानेर ही नहीं बल्कि देश के हर कोने का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय साइक्लिस्ट है. बीकानेर की कसाईयों की बारी में महज 10/4 (10 फीट गुना चार फीट) की दुकान दिखने में भले ही छोटी है लेकिन इसका चर्चा बेमिसाल है. इस छोटी सी दुकान में बड़ा सा साइकिल एक्सपर्ट महफूज जो बैठता है! दुकान में बैठकर महफूज अली उन साइकिल को रिपेयर करते हैं जो देश में नहीं बल्कि विदेश में बनी हैं.

बिना डिग्री के इंजीनियर ‘महफूज’
नाता बरसों पुराना: महफूज कहते हैं कि 1982 से वे साइकिल की रिपेयरिंग कर रहे हैं. बचपन से ही साइकिल बनाने की इच्छा थी लेकिन घरेलू परिस्थितियों के चलते ऐसा संभव नहीं हुआ और पुश्तैनी साइकिल की दुकान में बैठ साइकिल ठीक करने लगे. मदद मिली साइकिलिंग कोच रामदेव शर्मा की. उनके सहयोग से वो इन साइकिलों को ठीक करने लगे. धीरे-धीरे विदेशी साइकिल को ठीक करने में महारत हासिल कर ली. आज की तारीख में महफूज अपनी इस दुकान में दिनभर विदेशी साइकिल के साथ व्यस्त रहते हैं. रुचि का काम है इसलिए कहते हैं कि पूरा दिन कब गुजर जाता है पता ही नहीं चलता. विदेशी साइकिल डेढ़ लाख रुपए से शुरुआती कीमत की होती है और 5 से ₹7 लाख की साइकिल होना आम बात है. ऐसे में यह साइकिल किसी भी महंगी गाड़ी से कम नहीं है इसलिए इन पर ध्यान लगा कर काम किया जाता है.

महफूज हैं मकबूल: महफूज की ख्याति दूर दूर तक फैली है. बिना डिग्री के इस साइकिल एक्सपर्ट के हुनर को सब सलाम करते हैं. यही वजह है कि हुनरमंद महफूज राजस्थान साइकलिंग एसोसिएशन के राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय कई टूर्नामेंट में बतौर टीम मैनेजर और टीम मैकेनिक हिस्सा ले चुके हैं. राजस्थान साइकलिंग एसोसिएशन और राष्ट्रीय साइकिल फेडरेशन के पदाधिकारी रहे रामनाथ आचार्य कहते हैं कि वाकई में उनके हाथ में हुनर है और इसका फायदा बीकानेर के साइक्लिस्ट को नहीं बल्कि देशभर के साइकिल को मिलता है. पंजाब, हरियाणा और देश के अन्य राज्यों के साइकलिस्ट भी उन्हीं से अपनी साइकिल ठीक करवाने के लिए आते हैं.

आवश्यकता ने अविष्कारक बना दिया!: कहा जाता है आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है. बस इसी मंत्र की गांठ बांध महफूज ने अपना सफर आगे बढ़ाया. पाया कि इन महंगी साइकिलों का एक नट भी इधर उधर हो जाए तो कस्टमर की फजीहत हो जाती है. आखिर विदेशी साइकिल के पार्ट के लिए और कितने खर्च करे! बस यही सोचा और फिर अपने कौशल से कई पार्टस बना डाले. आज जब भी किसी साइकिल में कोई पार्ट मिस होता है तो ग्राहक इनके पास पहुंच जाता है और उसकी समस्या का समाधान मिनटों में हो जाता है. कुछ उदाहरण भी बताते हैं. कहते हैं कि एक बार राजस्थान साइकलिंग एसोसिएशन से बीकानेर की टीम में कुछ पार्ट्स लगाए और उनकी तैयार की हुई साइकिलों को साइकलिस्ट ने चलाया. टीम ने गोल्ड मेडल जीता. ये मेरे लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं. बड़ा सुकून मिलता है कि जिस काम को कर रहा हूं उसका परिणाम मिल रहा है. साइकलिंग और देश के खिलाड़ियों के लिए अपना योगदान दे सकूं यही मेरी कोशिश है.

महफूज है बेहद खास: महफूज बेहद खास हैं. साइकलिंग की दुनिया से जुड़े लोग उनके मुरीद हैं. केरल स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण के त्रिवेंद्रम केंद्र में साइक्लिंग कोच हर्षवर्धन जोशी कहते हैं कि साइक्लिस्ट के लिए उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण है. वे न सिर्फ साइकिल को ठीक कर देते हैं बल्कि उन पार्ट्स को भी तैयार कर देते हैं जो यहां नहीं मिलते हैं. ये बहुत बड़ी उपलब्धि हैं. उनके इस हुनर से खिलाड़ियों पर आर्थिक भार भी नहीं पड़ता है और उनका साइकिल की मरम्मत का खर्च 10 फ़ीसदी तक रह जाता है. विदेश से पार्ट्स मंगवाने और कहीं बाहर से तैयार करवाने में जो खर्च आता है उसका 10 फ़ीसदी भी वो नहीं लेते. खिलाड़ी भी अपने इस Degree Less Engineer की तारीफ करते हैं. इनका शुक्रिया अदा करते हैं. ऐसे ही एक राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी मनफूल से मुलाकात महफूज की रिपेयरिंग शॉप पर हुई. साइकलिस्ट मनफूल कहते हैं महफूज अली के हाथ में हुनर है. बीकानेर खुशनसीब है जो ऐसी शख्सियत उसे मिली.

अपने बच्चों को कर रहे ट्रेन: कहते हैं कि मेरे दोनों बच्चों को मैंने साइकलिंग के लिए तैयार करने की कोशिश की और दोनों बच्चों ने राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सेदारी की. अब एक बच्चे को इन विदेशी साइकिल की रिपेयरिंग सिखा रहा हूं. परम्परा चलते रहने चाहिए, बस इसी सोच से बेटा संग लगा हुआ हूं.

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