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बीकानेर,नया शैक्षिक सत्र शुरू होने के साथ ही शहर में स्कूली बालवाहिनियां भी दौडऩे लगी है। बच्चों से भरी हुई बसों की सुरक्षा को लेकर कोई निगरानी नजर नहीं आ रही है। बाल वाहिनियों के संचालन से पहले संचालकों की कोई बैठक भी नहीं हुई और न ही कोई गाइडलाइन जारी की गई। ऐसे में बसों में रोज आने-जाने वाले बच्चों का जीवन खतरे में पडऩे की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन जिम्मेदार शायद इससे अनजान है। जबकि बच्चों की सुरक्षा को लेकर जिला प्रशासन, पुलिस व परिवहन विभाग तीनों की संयुक्त जिम्मेदारी है। स्कूल के बच्चों को लेकर जाने वाली बसें तेज रफ्तार के साथ चलती दिखती है। सुबह के वक्त आवाजाही कम होने पर इनकी रफ्तार ज्यादा रहती है। इसमें कई बार यह भी कारण सामने आया है कि देरी हो जाने पर चालक तेजी से बालवाहिनियों को चलाते हैं। इससे बच्चों का जीवन संकट में पड़ रहा है। लेकिन इनकी कोई निगरानी नहीं होने से बसें मनमर्जी से चल रही है। इस मामले की पड़ताल में सामने आया है कि स्कूली सीजन शुरू होने के बाद ज्यादा बालवाहिनयों की ना तो जांच हुई है ना ही कोई नई गाइड लाइन जारी की गई है। जबकि यह एक नियमित प्रकिया है। कोविड के कारण दो सालों बाद स्कूल समय पर और नियमित रूप से शुरू हुए है। इसलिए इस बार तो यह जरूरत और भी ज्यादा बढ़ जाती है। स्कूल बसों के अलावा ऑटो और वैनों में स्कूली बच्चों को ढोया जा रहा है। इनमें सुरक्षा को लेकर सबसे ज्यादा लापरवाही सामने आती है। बच्चों को ठूंस-ठूस कर भरा जाता है। नियमों को ताक पर रखकर ले जाने वाली यह ‘बालवाहिनियां मासूमों के लिए खतरा बन सकती है। इनमें फस्र्ट एड बॉक्स तक नहीं है। ऐसे में बालवाहिनियों के लिए लागू नियमों की ऑटो और वैनो में पालना कैसी हो रही होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इस मामले को लेकर जिला परिवहन अधिकारी का कहना है कि शहर में बालवाहिनियों को लेकर स्कूल संचालकों की जुलाई में बैठक करेंगे। बसों की अभी कोई जांच नहंी हुई। हालांकि जनवरी 2022 में स्कूल बसों की जांच की गई थी। बैठक के बाद अभियान चलाकर सभी स्कूल बसों की जांच करवाई जाएगी।

कंडम बसों में ढोए जा रहे बच्चे
इस मामले की पड़ताल में चौंकाने वाली बात तो यह सामने आई है कि बीकानेर बच्चों को स्कूल छोडऩे और लाने के लिए कंडम बसों का इस्तेमाल हो रहा है । यहां तक इन बसों को ऐसे ड्राइवर चला रहे हैं जो कि अप्रशिक्षित हैं। इसका खुलासा दो साल पहले हुई जांच के दौरान हो चुका है। लेकिन इसके बावजूद प्रशासन स्कूल बसों के प्रति नरमी बरत रहा है। जबकि हाईकोर्ट के आदेश पर स्कूल बसों में 22 नियम है, जिन्हें अपनाना जरूरी है। जिसमें मुख्य तौर पर स्कूल बस में महिला सहायक, सीसीटीवी कैमरे, फायर सेफ्टी यंत्र, फर्स्ट एड किट, स्पीड गर्वनर, जीपीएस, बस का कलर पीला, वाहन पर चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर, वाहन पर स्कूल का नाम, स्कूल बस के मालिक का नाम और फोन नंबर, ड्राइवर को पांच साल का अनुभव, ड्राइवर का मेडिकल फिट होना आदि शामिल है।

सरकार आदेश भी बेअसर
जानकारी में रहे कि स्कूली बसों के हादसों की रोकथाम के लिये राज्य सरकार ने परिवहन विभाग के साथ ही पुलिस को भी जिम्मेदारी सौंपी है। ताकि इनके संचालन पर त्वरित रूप से प्रभावी रोकथाम लगाई जा सके। आदेश की अनुपालना में परिवहन और पुलिस ने दो साल पहले थोड़ी सक्रियात दिखाई लेकिन इसके बाद मामला ठंडा पड़ गया।

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