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जयपुर,यहां तक ​​कि सीएम-मंत्री भी पदोन्नत आईएएस को जिलों की बागडोर सौंपने से कतरा रहे हैं। करीब 8 साल पहले वसुंधरा सरकार ने जिलों में आईएएस की पदोन्नति में कलेक्टरों की नियुक्ति को प्राथमिकता दी थी।यह गहलोत सरकार में शुरुआती वर्षों तक जारी रहा। लेकिन अब पदोन्नत आईएएस पर सरकार का विश्वास कम होता जा रहा है।

हाल ही में राज्य सरकार ने IAS अधिकारियों की तबादला सूची जारी कर UPSC टॉपर रहीं टीना डाबी को जैसलमेर, रवीन्द्र गोस्वामी बूंदी, इंद्रजीत सिंह यादव को डूंगरपुर, प्रकाश राजपुरोहित को जयपुर जिला कलेक्टर लगाकर भी यही संदेश दिया है कि सरकार को अनुभव से ज्यादा यूथ पर भरोसा है।

2 साल पहले तक जहां 15 जिलों में आरएएस से पदोन्नत आईएएस अधिकारियों को कलेक्टर के रूप में नियुक्त किया जाता था, अब उनकी संख्या 6 जिलों तक सीमित है। राजस्थान की नौकरशाही में यह बदलाव राजनीतिक गलियारों में भी चर्चा का विषय है। दिग्गजों बनाम युवाओं की भी बात चल रही है।

जब भी बदलाव के बारे में जानना चाहा, तो उन्होंने पाया कि अतीत में रिश्वतखोरी और कानून-व्यवस्था की विफलताओं से सरकार का विश्वास डगमगा गया है।

वसुंधरा सरकार को जिलों के आर्च को सौंपना शुरू हुआ
2012 में प्रमोशन ब्रेक हटाने के बाद सरकार ने जल्द ही जिलों की बागडोर पदोन्नत आईएएस को सौंपना शुरू कर दिया। 2013 में वसुंधरा सरकार के सत्ता में आने से लेकर गहलोत सरकार के आने तक 2021 तक 17-18 जिलों की कमान प्रमोटरों के हाथ में थी। हालांकि, एक समय था जब डीपीसी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, जब सरकार ने जिलों में कलेक्टरों के रूप में आरएएस अधिकारियों को नियुक्त किया था। 2008 से 2012 के बीच ज्ञान प्रकाश शुक्ल (भरतपुर), शिव कुमार अग्रवाल (बूंदी), गिरधारी लाल गुप्ता (कोटा), केके गुप्ता (जालोर) को कलेक्टर बनाया गया।

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