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बीकानेर, जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की मनोहरश्रीजी म.सा की शुष्यि साध्वीश्री मृगावतीश्रीजी म.सा., बीकानेर मूल की साध्वीश्री सुरप्रियाश्रीजीम.सा व नित्योदया श्रीजी म.सा के सान्निध्य में रविवार को विभिन्न धार्मिक आयोजन हुए।

प्रथम दादा गुरुदेव जिनदत्त सूरिश्वरजी के 868 वें स्वर्गारोहण दिवस पर रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के उपासरे व उदयरामसर दादाबाड़ी में गुरु इकतीसा का सामूहिक पाठ व पूजा तथा नाहटा चौक के बसंत नाहट निवास पर भक्तामर का पाठ व पूजा की गई। एक समुदाय विशेष के त्यौहार पर अनेक श्रावक-श्राविकाओं में उपवास व आयम्बिल की तपस्या की तथा निरीही प्राणियों की आत्मशांति मोक्ष के लिए प्रार्थना की गई।
सुगनजी महाराज के उपासरे में साध्वीश्री मृगावती जी म.सा ने प्रवचन में कहा कि ’’जग में न दूजे ऐसे गुरु है, मरुधर में भी जो कल्पतरु। बावन वीर, 64 जोगनिया और रहे देवता चरणों में चाकर, जयदादा जिनदत्त सूरिश्वर युग प्रधान गुरु ज्ञान दीवाकर’’। प्रथम दादा गुरुदेव जिनदत्त सूरिश्वरजी की र्स्वरोहण दिवस पर उनके आदर्शों का स्मरण करते हुए भक्ति के साथ वंदना करें। दादा गुरुदेव ने अपने जीवनकाल में अनेक चमत्कार किए। लाखों नूतन जैन बनाने वाले और जैन समाज के विभिन्न गोत्रों के रचियता दादा गुरुदेव ने शासन के लिए बहुत काम किया, समग्र जैन समाज को एक करने में काफी योगदान दिया। अपभ्रंश, संस्कृत और प्राकृत भाषा में दादागुरुदेव का पूर्ण अधिकार था। अपभ्रंश में जैन शास्त्र की रचना करने वाले प्रथम आचार्य हुए। संदेह दोहावली, उपदेश रसायन, चर्चरी प्रकरण, आदि ग्रंथों का सृजन कर दादा गुरुदेव ने जैन साहित्य संरचना में भी अपनी प्रतिष्ठा बनाई। साध्वीश्री नित्योदया ने गुरु स्तुति ’’दासानुदासा इव सर्व देवा, यदीय पदाब्जतले लुठंति। मरुस्थली-कल्पतरु-सजीयात, युग प्रधानों जिनदत्त सूरि :। सुनाते हुए कहा कि दादा गुरुदेव की भाव से भक्ति करने से रोग, शोक दूर होते है तथा आर्थिक व परमार्थिक उन्नति होती है।
उदयरामसर दादाबाड़ी में सुश्रावक भंवर लाल कंवर लाल कोठारी परिवार की ओर से सामूहिक प्रसाद व पूजा का आयोजन रखा गया। वर्षात के बावजूद बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने संगीतमयी पूजा व भक्ति तथा प्रसाद में भागीदारी निभाई। श्रावक-श्राविक13ाओं के लिए भांडाशाह जैन मंदिर के पास से विशेष बसों की व्यवस्था की गई। नाहटा चौक के बसंत नाहटा निवास पर भक्तामर पाठ व पूजा के दौरान साध्वीश्री मृगावती व सुरप्रिया ’’रेणुजी’ म.सा. ने कहा कि भक्तामर में प्रथम तीर्थंकर भगवान आदि नाथ की स्तुति व वंदना है। भक्तामर पाठ से सर्वमंगल होता । पूजा के दौरान श्राविकाओं ने चंवर हाथ में लेकर भक्ति गीतों के साथ वंदन किया तथा साध्वीवृंद का अभिनंदन किया।

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