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बीकानेर,दुपहिया वाहन चोरों को पकड़ने में पुलिस की रूचि कम ही नजर आती है। शायद इसीलिए बीकानेर में दुपहिया वाहन चोरों के हौसले बुलंद है। सदर थाना क्षेत्र से जुड़े एक चोरी के मामले ने चोरों को पकड़ने में पुलिस की रूचि कितनी है, इसकी पोल खोल कर रख दी है। अब कोर्ट ने पुलिस को तीन माह का अल्टीमेटम दिया है।

दरअसल, 5 अप्रेल की दोपहर बीकानेर न्यायालय की नकल शाखा के संविदा कर्मी की मोटरसाइकिल नकल शाखा के बाहर से ही चोरी हो गई। दो नकाबपोश चोरों ने धनराज कुम्हार की बाइक चुरा ली। घटना सीसीटीवी कैमरों में भी कैद हो गई।धनराज ने सदर थाने में चोरी का मुकदमा दर्ज करवाया। मामले की जांच हैड कांस्टेबल सुरेंद्र को दी गई। 8 अप्रेल को धनराज के बयान लिए गए। आरोप है कि सुरेंद्र ने शुरू से ही मामले में अधिक रूचि नहीं दिखाई। एडवोकेट अनिल सोनी के अनुसार पुलिस ने 28 अप्रेल को केस डायरी में एफ आर सी काट दी। सोमवार को न्यायालय में बहस हुई तो परिवादी के वकील ने ऑब्जेक्शन कर दिया। पुलिस ने अदम पता एफआर पेश की थी। लिखा कि तीन संदिग्धों के बयान लिए गए। तीनों का ही पूर्व में चोरी का कोई रिकॉर्ड नहीं था। तहकीकात की गई मगर निकट भविष्य में चोरों के मिलने की कोई संभावना नहीं है।

बहस के बाद कोर्ट ने एफ आर लौटाते हुए पुलिस को तीन माह के अंदर चोरों की तलाश करने के निर्देश दिए। अब पुलिस को तीन माह में चोरों की तलाश‌ कर न्यायालय में पेश करना है।

जांच अधिकारी की इस कार्यशैली पर सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर पुलिस ने पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज चोरों से पूछताछ क्यों नहीं की? घटना सीसीटीवी में कैद थी फिर भी साईबर एक्सपर्ट की मदद क्यूं नहीं ली गई? जबकि सीसीटीवी कैमरों के आधार पर कड़ी से कड़ी जोड़ी जाती तो चोरों का क्लू जरूर मिलता। यही पुलिस बड़े मामलों में कुछ ही घंटों में अज्ञात आरोपियों को ट्रेस आउट कर लेती है फिर दुपहिया वाहन चोरी के मामलों में पुलिस को क्या हो जाता है?बता दें कि बीकानेर में दुपहिया वाहन चोरी के अधिकतर मामलों में पीड़ित महीनों तक थानों के चक्कर काटते हैं, बाद में हार मानकर चुपचाप बैठ जाते हैं। वहीं दूसरी ओर वीआईपी मामलों में पुलिस जादुई तरीके से पाताल में छिपे चोरों और बदमाशों को खोज निकालती है। अब देखना यह है कि तीन माह में पुलिस वाहन चोरों का पता लगा पाती है या नहीं।

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