बीकानेर,भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली ने राजस्थान पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर को अगले पांच वर्षों के लिए अपनी मान्यता (अधिस्वीकरण) प्रदान की है। वेटरनरी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सतीश कुमार गर्ग के नेतृत्व में प्रस्तुत की गई, स्व-अध्ययन रिपोर्ट के बाद आई.सी.ए.आर. की चार सदस्यीय पीयर रिव्यू टीम की आंकलन रिपोर्ट के आधार पर आगामी पांच वर्षों 2021-22 से 2025-26 के लिए ग्रेड़ ‘ए‘ के साथ राजुवास को मान्यता प्रदान की गई है। कुलपति प्रो. सतीश कुमार गर्ग ने बताया कि आई.सी.ए.आर. से आगामी पांच वर्षों के लिए अधिस्वीकरण से विश्वविद्यालय में छात्र शोध, फैकल्टी कौशल विकास, उन्नत पशुधन प्रबंधन एवं उन्नत चिकित्सकीय सुविधाओं को बल मिलेगा तथा वेटरनरी विश्वविद्यालय को एक नई पहचान मिलेगी। कुलपति प्रो. गर्ग ने बताया कि विश्वविद्यालय के सभी महाविद्यालयों एवं इकाईयों के समुचित प्रयासो से हमें यह सफलता मिली है अब हम पशुचिकित्सा शिक्षा के नये आयामों व पशुपालकों के कौशल विकास के साथ-साथ नई परियोजनाओं को अंजाम दे सकेंगे। गौरतलब है कि मान्यता प्रदान करने हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् की चार सदस्य पीयर रिव्यू टीम ने विश्वविद्यालय के संघटक महाविद्यालय पी.जी.आई.वी.ई.आर. जयपुर एवं वेटरनरी महाविद्यालय, नवानियां, उदयपुर के साथ-साथ वेटरनरी कॉलेज, बीकानेर में 1 से 3 दिसम्बर, 2021 को दौरा एवं निरीक्षण किया। कुलपति प्रो. गर्ग ने बताया कि पीयर रिव्यू टीम के सदस्यों ने वेटरनरी विश्वविद्यालय के विभिन्न परिसरों का भ्रमण कर सभी विभागों में शैक्षणिक और अनुसंधान गतिविधियों का जायजा लिया। टीम ने वित्तीय, प्रशासनिक और ढांचागत विकास कार्यों को भी देखा। टीम के सदस्यों ने पशुचिकित्सा शिक्षा, पशुपालक और पशुधन कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रमों को राज्य में अत्यंत उपयोगी बताते हुए राजुवास द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना भी की थी। सदस्यीय दल के निरीक्षण एवं मूल्यांकन के आधार पर तैयार रिपोर्ट के आधार पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा विश्वविद्यालय का पांच वर्षों के लिए अधिस्वीकरण किया किया गया है। जिससे विश्वविद्यालय को वित्तीय सहायता एवं विभिन्न योजनाओं को मंजूरी प्रदान की जा सकेगी।
राजुवास ई-पशुपालक चौपाल का आयोजन
दूधरू पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने के टिप्स दिये डॉ. भोंसले ने
बीकानेर, 25 मई। वेटरनरी विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा राज्य स्तरीय ई-पशुपालक चौपाल बुधवार को आयोजित की गई। दूध देने वाले पशुओं की उत्पादकता कैसे बढ़ाए विषय पर महाराष्ट्र के डॉ. दिनेश भोंसले ने पशुपालकों से वार्ता की। निदेशक प्रसार शिक्षा प्रो. राजेश कुमार धूड़िया ने विषय प्रवर्तन करते हुए बताया कि पशुओं की उत्पादकता के लिए कई कारक जिम्मेदार है जिसमें पशुओं की नस्ल एवं उनका रखरखाव मुख्य कारक है। पशु खाद्य प्रबन्ध को नियंत्रित करके हम पशु को अधिक उत्पादक बना सकते है एवं पशुपालकों को भी अनावश्यक खर्चो से बचाकर उनकों आर्थिक रूप से सम्पन्न बना सकते है। आमंत्रित विशेषज्ञ डॉ. दिनेश भोंसले, निदेशक ए.बी विस्टा साउथ एशिया, पुणे (महाराष्ट्र) ने ई-चौपाल के माध्यम से पशुपालकों को विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि पशुपालन की 70 प्रतिशत लागत पशुओं के खाद्य एवं पोषण पर आती है। पशुओं को अपर्याप्त पोषण या अधिक पोषण दोनों ही पशुपालकों को आर्थिक नुकसान पहुचाता है अतः पशुओं का खाद्य प्रबन्धन उनकी नस्ल, उम्र, भार एवं उत्पादन की अवस्था के अनुरूप होना चाहिए। पशुओं को केवल सुखा चारा, केवल हरा चारा या केवल कपास नहीं खिलाना चाहिए। संतुलित पोषण से पशुओं की उत्पादकता बनी रहती है। अधिक हरे चारे की उपलब्धता की अवस्था में साईलेज बना लेना चाहिए ताकि चारे की अनुपलब्धता की अवस्था में उसे उपयोग किया जा सके। पशु खाद्य में अनाज का दलिया, चूरी, खल एवं चापड़ को खिलाना चाहिए। सुखा एवं हरा चारा 70 प्रतिशत एवं पशु बांटा 30 प्रतिशत के हिसाब से खिलाना चाहिए। शुद्ध पानी पर्याप्त मात्रा में पशुओं को उपलब्ध करवाना चाहिए। इसके साथ ही डॉ. भोंसले ने पशुपालकों को प्रोबायोटिक, बामपास फैट, बामपास प्रोटीन, रूमन बफर एवं मिनरल मिक्सचर की उपयोगिता पर भी विस्तृत जानकारी प्रदान की।