बीकानेर मेवाड़ का ऐतिहासिक युद्ध हल्दीघाटी एक बार फिर खबरों में है. इस बार हल्दीघाटी का युद्ध भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक एक्शन की वजह से खबरों में है, लेकिन इसके पीछे का कारण पुराना ही है. हल्दीघाटी युद्ध का जिक्र होता है तो सवाल खड़ा हो जाता है कि आखिर इस युद्ध में विजयी कौन था. किताबों से लेकर शिलालेखों तक कई बार हल्दी घाटी के युद्ध से जुड़े तथ्यों को लेकर बदलाव किया गया है और अलग अलग तर्क सामने रखे गए हैं. एक बार फिर ‘इतिहास को बदलने’ की ओर कदम उठाया गया है और एएसआई ने युद्ध से जुड़े कुछ शिलालेख हटा लिए हैं.
इसके बाद से बहस फिर जारी हो गई है महाराणा प्रताप और अकबर के बीच लड़े गए इस युद्ध में जीत किसकी हुई थी.ऐसे में आज हम आपको युद्ध से जुड़े कुछ तथ्य भी बताएंगे और बताएंगे कि आखिर एएसआई ने किन शिलालेखों को हटाया है और उनपर क्या लिखा था.
क्यों खबरों में हल्दी घाटी युद्ध?
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने राजसमंद जिले में स्थित रणभूमि रक्ततलाई में लगे प्राचीन शिलालेख को हटा दिया. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के उच्चाधिकारियों के निर्देश पर उदयपुर उपमंडल स्तर के अधिकारी गुरुवार को रक्ततलाई आए और इन शिलालेखों को हटवाने की कार्रवाई को अंजाम दिया. रक्ततलाई में कुल तीन शिलालेख हटाए गए हैं.
ऐसा क्या लिखा था?
दरअसल, इन शिलालेखों पर लिखी जानकारी में अकबर के सामने मेवाड़ी सेना को कमजोर बताया गया है. साथ ही बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की किताबों में हल्दीघाटी की लड़ाई की तारीख 18 जून 1576 है जबकि पट्टिकाओं पर यह 21 जून 1576 लिखी गई है. ऐसे में गलत तथ्यों को बुनियाद मानते हुए इन शिलालेखों को हटाया गया है. वैसे राजपूत व लोक संगठन लंबे समय से इसकी मांग भी कर रहे थे.
क्या है हल्दी घाटी की कहानी
हल्दी घाटी में हुई जीत-हार के बारे में बताने से पहले आपको बताते हैं कि हल्दीघाटी की लड़ाई 18 जून 1576 को मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप की सेना और आमेर (जयपुर) के महाराजा आमेर के मानसिंह प्रथम के नेतृत्व में मुगल सम्राट अकबर की सेनाओं के बीच लड़ी गई थी. हल्दीघाटी अरावली पर्वतमाला का एक क्षेत्र है, जो राजस्थान में राजसमंद और पाली जिलों को जोड़ता है. यहां पाए जाने वाली पीली मिट्टी की वजह से इसका नाम हल्दी घाटी है. लड़ाई की शुरुआत उस वक्त से हुई जब अकबर राजपूत क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल करके अपने शासन क्षेत्र को बढ़ाने की योजना बना रहा था.
दरअसल, हुआ ये था कि राजस्थान में महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह को छोड़कर लगभग सभी प्रमुख राजाओं ने मुगल वंश को स्वीकार कर लिया था और मेवाड़ के राजघरानों ने अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके थे. ऐसे में अकबर ने राज्य विस्तार के लिए अक्टूबर 1567 में चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी की. राजपूतों को मुगलों ने घेर लिया. इसके बाद उदय सिंह पद छोड़ने पर मजबूर हो गए और रक्षा की जिम्मेदारी मेड़ता के राजा जयमल को दी गई, जो युद्ध के दौरान मारे गए. फिर उदय सिंह चार साल बाद अपनी मृत्यु तक अरावली के जंगलों में रहे.
उदय सिंह की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की कमान संभाली. फिर से अकबर ने कई बार बात की लेकिन प्रताप ने मुगलों की नहीं मानी और अकबर ने प्रताप से युद्ध का फैसला किया. द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘Maharana Pratap: The Invincible Warrior’ के लेखक और इतिहासकार रिमा हूजा ने बताया कि संख्या बल का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है, लेकिन मेवाड़ की सेना, अकबर की सेना के सामने काफी छोटी थी. इसके बाद युद्ध में मेवाड़ की सेना को काफी नुकसान भी हुआ.
हल्दी घाटी में किसकी हुई थी जीत?
अब युद्ध में जीत किसकी हुई, इसके पीछे कई तथ्य हैं. वहीं, दोनों पक्षों का मानना है कि उनकी ही जीत हुई. द प्रिंट की रिपोर्ट में इतिहासकारों के अनुसार कहा गया है कि मेवाड़ ने भी जीत का दावा किया था, क्योंकि कोई आत्मसमर्पण नहीं हुआ था. वहीं, मुगलों ने भी जीत का दावा किया क्योंकि वो अंत समय तक मैदान में थे. वहीं, उदयपुर के मीरा गर्ल्स कॉलेज के एक एसोसिएट प्रोफेसर चंद्र शेखर शर्मा का कहना है कि इतिहासकार इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि प्रताप की सेना हल्दीघाटी की लड़ाई से कभी पीछे नहीं हटी और इसका मतलब है युद्ध प्रताप ने जीता था.
इसके अलावा कई ऐसे इतिहासकार हैं, जो दोनों तरफ से अलग अलग तर्क रहते हैं. राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की किताबों से लेकर अन्य ऐतिहासिक दस्तावेजों में भी बदलाव होते रहते हैं और अलग अलग तथ्य सामने आते रहते हैं. ऐसे में साफ तौर पर किसी की जीत बताना सही नहीं है और हर पक्ष अपनी जीत का गुणगान करता है.