बीकानेर, जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ की वरिष्ठ साध्वीश्री, सज्जनमणि, प्रवर्तिनी शशि प्रभा म.सा. के सान्निध्य में गंगाशहर रोड की श्री पार्श्वचन्द्र सूरि गच्छीय दादाबाड़ी में चल रहे आठ दिवसीय (अष्टान्हिका) महोत्सव में मंगलवार को भक्तिगीतों व शहनाई की गूंज के साथ श्रीकृष्णा व अंजू लूणियां, पुनीत विजय बोथरा, चंपादेवी कोचर, कृष्णा बांठिया, राज पारख, व मंजू पारख का वर्षीतप का पारणा हुआ।
वरिष्ठ साध्वीश्री, सज्जनमणि, प्रवर्तिनी शशि प्रभा म.सा. व उनकी शिष्याओं व जैन समाज के गणमान्य लोगों, तपस्वियों के परिजनों, पंडित रामेश्वरानंद पुरोहित दाताश्री सहित अनेक प्रतिष्ठित लोगों ने तपस्वियों को इक्षु रस (गन्ने का रस) पिलाया तथा जयकारों से तपस्या की अनुमोदन की। तपस्वियों ने एक वर्ष तक छह माह उपवास रखकर, धर्म, ध्यान करते हुए वर्षीतप की तपस्या की।
महोत्सव के प्रमुख संघवी व वरिष्ठ श्रावक राजेन्द्र लूणियां ने बताया वर्षीतप पारणा के बाद दादाबाड़ी में लघु शांति स्नात्र पूजा व शाम को भक्ति संध्या हुई। महोत्सव का समापन 4 मई बुधवार को सुबह नौ बजे सुकृत अनुमोदनार्थ महोत्सव व दोपहर ढाई बजे से दादा गुरुदेव की पूजा के बाद होगा।
साध्वीजी साध्वीजी ने कहा कि साध्वीजी ने अक्षय तृतीय व वर्षीतप के महत्व को उजागर करते हुए कहा कि जैन समाज में वर्षीतप कोई सिद्धि प्राप्त करने के लिए नहीं बल्कि कर्म खपाकर मोक्ष प्राप्त करने के लिए किया जाता है। उन्हांने श्रीकृष्णा व अंजू लूणियां सहित अनेक श्रावक-श्राविकाओं के वर्षीतप की अनुमोदना करते हुए कहा कि तप का अर्थ है स्वयं का अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर कर्म की निर्जरा करना है। साध्वीजी के आव्हान पर तपस्या की अनुमोदनार्थ अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने रात्रि भोजन, जमीकंद का त्याग करने, विभिन्न तरह की तपस्याएं करने का संकल्प लिया। पुनीत विजय बोथरा ने तपस्या के महत्व को उजागर किया। साध्वीवृंद, विचक्षण महिला मंडल व श्राविकाओं ने देव,गुरु व धर्म तथा तपस्या के अनुमोदनार्थ भक्ति गीत गाएं। पूर्व में शहनाई पार्टी के साथ तपस्वियों की शोभायात्रा दादाबाड़ी परिसर में निकाली गई। अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने अक्षत व केसर-चंदन के घोल की वर्षा कर तपस्या की अनुमोदना की।