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बीकानेर,535वें नगर स्थापना दिवस के अवसर पर आयेाजित प्रज्ञालय संस्थान, बीकानेर जिला उद्योग संघ एवं थार विरासत द्वारा आयोजित ‘उछब थरपणा’ कार्यक्रम के दूसरे दिन आज प्रातः 10ः30 बजे नागरी भण्डार स्थित सुदर्शन कला दीर्घा में राजस्थानी साफा, पाग, पगडी, कला संस्कृति संस्थान के वरिष्ठ कलाकार कृष्णचंद पुरोहित की साफा-पाग एवं चंदों की प्रदर्शनी का उद्घाटन हुआ।

उद्घाटनकर्ता वरिष्ठ आलोचक डॉ उमाकान्त गुप्त ने कहा कि साफा पाग एवं चंदा हमारी सांस्कृतिक पहचान तो है ही साथ ही हमारी समृद्ध विरासत की प्रतीक है। जिससे संरक्षित रखना हमारा दायित्व है। चंदों के माध्यम से समाज की विभिन्न समसामयिक समस्याओं को उकेरते हुए मानवीय चेतना तक ले जाने का एक कलात्मक उपक्रम है। जो प्रशंसा योग्य है। उन्होंने कहा कि प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए हमें एक नया कला अनुभव होता है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यानुरागी नंद किशोर सोलंकी ने कहा कि चंदा हमारे नगर स्थापना से जुड़ा हुआ वह कलात्मक प्रतीक है जिसके माध्यम से हम हमारे बीकानेर के गौरव को और ऊँचाईयेंा तक ले जाने की सकारात्मक परिकल्पना करते है। इसी तरह साफा एवं पाग हमारे समाज का गौरव है।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि बीकानेर जिला उद्योग संघ के अध्यक्ष एवं समाजसेवी द्वारका प्रसाद पचीसिया ने कहा कि बीकानेर की कला संस्कृति के वैभव पर हमें गर्व है। नई पीढी को ऐसी कलाओं से हमे जोड़ना चाहिए। साथ ही ऐसी कलाओं के लिए राज्य संरक्षण की जरूरत भी है जिसके लिए सकारात्मक प्रयास होने चाहिए।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि राजस्थानी के साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि चंदा कलाकृतियों के माध्यम से जहां एक ओर मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है। वहीं साफा एवं पाग के विभिन्न आकार एवं रंगों के माध्यम से हमारे सामाजिक जीवन व्यवहार और व्यवस्था की पहचान होती है। ऐसी धरोहर को हमें सुरक्षित रखना होगा।
प्रदर्शनी उद्घाटन कार्यक्रम का संयोजन करते हुए युवा शायर एवं कथाकार कासिम बीकानेरी ने साफा एवं पाग के कलात्मक पक्ष एवं महत्व को उकेरा और चंदों के विभिन्न आकारों के बारे में बताया।
प्रदर्शनी में वरिष्ठ उस्ता कला विशेषज्ञ राम कुमार भादाणी, राजेश रंगा, साहित्यकार हरिशंकर आचार्य, कलाकार मोना सरदार डुडी, मुकेश सांचीहर, कमलकिशोर जोशी, मोहित पुरोहित, शाबीर अली, एस.के.नाथ, विकास पारीक, भवानी सिंह, आदित्य पुरोहित, सहित अनेक कलानुरागियों ने प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए इसे एक अच्छी पहल व अच्छा आयोजन बताया। सभी का आभार शिक्षक कर्मचारी नेता दिलीप जोशी ने ज्ञापित किया।
उछब थरपणा कार्यक्रम के दूसरे दिन के दूसरे सत्र में दोपहर बाद एक विचार गोष्ठी का आयोजन ‘आलीजा बीकानेर’ विषयक रखा गया।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए राजस्थानी के साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि बीकानेर का आलीजापन पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इस शहर का शहरवासी अपने आत्मसंतोष और मनमौजी फक्कड़पन के जीवन दर्शन को जीता हुआ भी संघर्षशील एवं मानवीय चेतना का सशक्त पैरोकार है।
गोष्ठी के मुख्य वक्ता शायर कथाकार कासिम बीकानेरी ने बीकानेर की साझा संस्कृति, जीवन व्यवहार, अपणायत एवं मस्तमोला जीवनशैली आदि विभिन्न पक्षों के साथ-साथ बीकानेर के लोगों द्वारा रिश्तों का निवर्हन करना अपने आप में अनूठा है। इस तरह नगर का आलीजापन अपने आप में महत्वपूर्ण है।
गोष्ठी में वरिष्ठ कवि मईनुद्दीन कोहरी नाचीज, कवि गिरिराज पारीक ने बीकानेर के आलीजापन को रेखांकित करते हुए बताया कि बीकानेर आज भी अपनी सादगी और मानवीय मूल्यों के उच्च निवर्हन के लिए पहचाना जाता है। शिक्षाविद् संजय सांखलां ने कहा कि बीकानेर का आलीजापन हमारी पहचान तो है ही साथ ही आज के वैश्विक युग में जीवन निवर्हन के लिए एक अच्छा वातावरण भी देता है।
गोष्ठी में रम्मत के कलाकार विप्लव व्यास ने अमर सिंह रम्मत के संवाद प्रस्तुत कर आलीजापन को उकेरा। इसी क्रम में हास्य कवि बाबू लाल छंगाणी एवं प्रोफेसर नृसिंह बिन्नाणी ने भी नगर के आलीजापन के रोचक क़िस्से प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में वरिष्ठ लेखक इसरार हसन क़ादरी एवं वरिष्ठ कवि जुगल किशोर पुरोहित ने भी आलीजापन पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
कार्यक्रम में शायर बुनियाद हुसैन, गंगाबिशन बिश्नोई, हरिनारायण आचार्य, अशोक शर्मा ने अपने विचार रखते हुए कहा कि हमारा सौभाग्य है कि हम बीकानेर के जाये जन्मे है जिसका आलीजापन आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में आम आवाम को सुकून देता है। प्रारंभ में प्रज्ञालय के राजेश रंगा ने स्वागत भााषण देते हुए कहा कि ऐसे वैचारिक मंथन से युवा वर्ग को प्रेरणा मिलती है। सभी का आभार प्रज्ञालय के कार्तिक मोदी ने ज्ञापित किया।

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