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बीकानेर,इस साल पैलेस ऑन व्हील्स नाम के चालीस साल हो गए। नाम के चालीस साल इसलिए कि नाम वही रहा, पर जिसे दिया गया था, वह खुद ही नहीं। रही, बल्कि उस नाम की उसके नए अवतार को दे दिया गया। अब इस समय न भाप का इंजन नही है रियासत कालीन ट्रेन अब छोटी पटरियों पर नहीं चलती अब बड़ी पटरी हुई तो नए डिब्बे बने और नई तकनीकी का इंजन लगा।

वर्ष 1982 की जनवरी में दिल्ली के स्टेशन से भाप के इंजन के साथ रिवाली रेल गाड़ी के डिब्बों के साथ छोटपटरी पर धूमधाम से जो ट्रेन रवाना की गई उसको नाम दिया गया पैलेस ऑन व्हील्स यानी पर भारतीय रेल मंत्रालय और राजस्थान पर्यटन विकास निगम (आरटीडीसी) दोनों ने इसके जन्म का जश्न धूमधाम से मनाया है कक्षों में पड़ी है। इसे जन्म देने के बीच पिछले कुछ सालों से विवाद रेल की सम्पत्ति है और चलाने को जिम्मेदारी राजस्थान पर्यटन विकास निगम की है। करोड़ों के लेन-देन के चलते दोनों के बीच जो समझौता ज्ञापन बनाया था वह अभी नहीं बन पाया।

अब जब पर्यटन उद्योग खुल रहा है, सितंबर से सत्र शुरू हो रहा है, तो निगम को होश आया, क्योंकि रेल मंत्रालय ने पहले अपनी राशि मय ब्याज मांगी। निगम के हाल में ही निध्यक्ष अपने दल-बल के साथ के दर पर गुहार लेकर गए और छोटा भाई मकर राशि करने की बात कही। हुआ यह कि व्याज माफ हुआ पर ऋण नहीं राजस्थान पर्यटन विकास निगम ने कभी जोरशीर से अपने स्तर पर और जो समय-समय पर नवीनीकृत होता रहा है। अब राजस्थान पर्यटन विकास निगम सलाहकार को अलग से पैसा देकर घंटो माथा-पच्ची कर रहा है कि इसे कैसे चलाया जाए। सवाल यह है कि खुद किसी निजी संस्था के साथ एक और समझौता करे।

आखिर क्या हो गया है दुनियाभर में मशहूर पैलेस ऑन व्हील्स को? यह तो खुद आरटीडीसी का परचम फैला रहा था। आज हालत यह है कि पैलेस ऑन व्हील्स संकट में है। यह संकट पूरे राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगाता है। असल में निगम ने पिछले कुछ सालों से अपनी सभी इकाइयों को भुला कर अपना पूरा ध्यान पैलेस ऑन व्हील्स पर केंद्रित कर रखा था। लिहाजा एक-एक कर के कई इकाइयाया तो बंद हो गई या फिर बंद होने के कगार पर है। यह स्थिति कोविड का परिणाम नहीं है, बल्कि बदइंतजामी और भ्रष्टाचार का परिणाम लगती है। कैसे सिर्फ केंद्रीय ऑडिट को ही पता पड़ा कि करोड़ों की राशि दिए बिना एजेंट यात्रा करवाते रहे और उस समय निरीक्षण अधिकारी ने सब ठीक पाया हुआ बस यह कि कुछ निचले अधिकारियों को कार्य मुक्त कर दिया गया। बड़े अधिकारियों की जिम्मेदारी क्यों नहीं तय की जाती ?

असल में पैलेस ऑन व्हील्स नाम ने कमाई बहुत करवाई। मुश्किल यह है कुछ कमाई पर्यटकों के हित को नजरअंदाज करके भी की गई। सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को काटने जैसा प्रयोग हुआ और तय किया गया कि पर्यटकों की खरीदारी कराने के लिए उन दुकानों के नाम तय कर लें, जो कि सबसे ज्यादा बोली तय करें और पैसा पहले जमा करा दें। अब जब जानकारों से सवाल करो, तो एक जवाब मिलता है राजस्थान पर्यटन विकास निगम के पास अब ‘हाईवेयर’ खत्म हो रहा है और ‘सॉफ्टवेयर’ तो शून्य ही समझिए। इति पैलेस ऑन व्हील्स चालीसा।

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